आन्ध्र प्रदेश की लोककथाएँ हिंदी में : प्रो. एस शेषरत्नम हिंदी पुस्तक - कहानी

आन्ध्र प्रदेश की लोककथाएँ हिंदी में : प्रो. एस शेषरत्नम हिंदी पुस्तक - कहानी  | Andhra Pradesh Ki Lok kathayen in Hindi : Prof. S. Shesharatnam     Hindi  Book – Story (Kahani)

कौन पति, कौन भाई?

हे राजा ! शोभावती नामक एक नगर था। यजुकेतु नामक राजा इसके शासक राजा थे। वे देव-ब्राह्मण शक्ति संपन्न थे। इतना ही नहीं, वे बड़े राजनीतिज्ञ भी थे। वे अपने गुप्तचरों द्वारा अन्य देशों के रहस्य जानते थे। गुप्तचरों के काम आनेवाले समाचार सुनाने से उन्हें ईनाम एवं वेतन खूब देते थे।

lok katha in hindi,भारत की लोक कथाएं, आन्ध्र प्रदेश की लोककथाएं,Hindi books,प्राचीन लोककथाएँ,
 आन्ध्र प्रदेश की लोककथाएँ


उनका शासन आदर्शयुक्त एवं धर्मबद्ध था। जनता की इच्छा थी कि उनके लिए सदा यही राजा चाहिए। उनकी प्रजा भी काफी खुश रहती थी।

उस नगर के बाहर एक कालीमाता का मंदिर था। हर साल उसमें देवी का उत्सव मनाते थे। उसके सामने एक सरोवर था। उस उत्सव में भाग लेने आई हुई स्त्रियाँ, उस सरोवर में स्नान कर शुचिता से देवी की आराधना करती थीं।

उत्सव के दिन कुछ स्त्रियाँ सरोवर में स्नान कर रही थीं। किसी देश से और कहीं जानेवाला धवल नामक रजक उस जगह पर अनजाने में पहुँच गया था। रजक ने वहाँ के सरोवर में स्नान करनेवाली एक स्त्री को देखा। उस सौंदर्यवती के प्रति वह अत्यंत मोहित हुआ। ___ "वह मेरी पत्नी होने से कुछ समय दांपत्य जीवन बिताने के बाद मैं अपने सिर को काटकर तुझे बलिदान दूंगा।" कहकर काली माता के मंदिर में कालीमाता की मनौती कर देवी पूजा करके उस युवती के पीछे उसके पद चिह्नों का अनुसरण करते हुए"वह जिस काम पर निकला था, उसे भूल गया।

वह अपने देश लौट आकर उस युवती के प्रति प्रेम के कारण दिन-ब-दिन क्षीण होने लगा। उसके माता-पिता बेटे की स्थिति को देखकर बहुत परेशान होने लगे। धवल ने खाट पकड़ ली। बस माता-पिता ने अपनी लालसा एवं डर को रोक न पाने के कारण बेटे से बात की। पूछा कि मामला क्या है? उसने भी कुछ छुपाए बिना सबकुछ बता दिया। उसके कहने के अनुसार चिह्नों का अनुसरण कर शोभावतीपुर पहुँचकर पता लगाने पर पता चला था कि वह भी उसी जाति की है। इससे वे अत्यंत खुश हुए थे और उसके माता-पिता से मिलकर "मेरे बेटा तुम्हारी लड़की को चाहता है। वह उससे बहुत प्यार करता है। क्या मेरे बेटे से अपने बेटी की शादी कर सकते हो?" यों पूछा था।

"जरूर! हमें स्वीकार्य है।" लड़की के माता-पिता ने कहा।

फिर क्या, कुछ ही दिनों में धवल और उसकी शादी हो गई। बाद में धवल अपनी पत्नी के साथ घर आकर सुखमय जीवन बिताने लगा।

कुछ समय बीत जाने के बाद धवल का साला आया। वह अपनी बहिन से अत्यंत प्रेम करता था। "बहनोईजी ! मेरे माता-पिता ने आपको और बहिन को घर लिवा लाने के लिए कहा। आपके माता-पिता ने तो अनुमति दे दी। अब आपकी बारी है।" कहा।

धवल ने कोई आपत्ति नहीं की। पत्नी को साथ लेकर साले के साथ अपने ससुराल चल पड़े।

वे तीनों सफर कर शोभावती नगर की सरहद पर पहुँच गए थे। थके हुए वे वहीं रुक गए। कालीमाता के मंदिर एवं सरोवर को देखते ही धवल को गत की याद आई। देवी के प्रति उसने जो मनौती की थी, स्मरण में आई। बस, पत्नी और साले से कहे बिना ही मंदिर में जाकर अपने सिर को काटकर माता को बलिदान दिया।

बहनोई कहाँ पर है? पता नहीं लगने के कारण, ढूँढ़ आऊँगा, कहकर साला निकल पड़ा। उस परिसर में खूब घूमकर, आखिर में उसने मंदिर में प्रवेश किया। सिर कटे हुए बहनोई को देखा। उसे कुछ सूझा नहीं। वह भी सिर काटकर, बहनोई की बगल में गिर पड़ा।

उसका भाई, बहनोई को ढूँढ़ने गए थे, लेकिन अभी तक नहीं लौटा, इसलिए वह खुद उन दोनों को ढूँढ़ने के लिए निकल पड़ी। ढूँढ-ढूँढ़कर थक गई। आखिर में उसने भी कालीमाता के मंदिर में प्रवेश किया। वहाँ पर अपने पति और भाई के सिर देखे। उनकी बगल में धड़ दिखाई पड़े। वह डर गई। असीम दुःख के कारण नि:शक्त हुई। उस बीभत्स दृश्य को देखकर वह दुःख को नहीं रोक पाई।

"पति और भाई के बिना, मुझे यह जीवन किसलिए?" यों सोचकर कालीमाता की मूर्तियों के सामने फाँसी से लटककर मरने के लिए तैयार हो गई। तब कालीमाता ने प्रत्यक्ष होकर कहा, "हे युवती ! तुम्हारी पति-भक्ति और भातृ प्रेम से मैं अत्यंत खुश हूँ। आप जैसी उत्तम स्त्री का असमय में मरना ठीक नहीं है। क्यों मरोगी? अपने आत्मीय के दोनों सिर एवं धड़ को जोड़ना, वे तत्क्षण जिएँगे।" कहा और उसकी ओर दया की दृष्टि से देखती हुई वह अदृश्य हो गई।

देवी के द्वारा प्रदान किए गए असंभव एवं अत्यंत आनंददायक वर प्राप्त कर वह आश्चर्यचकित होकर अपने पति और भाई फिर जीवित होंगे, इस विशेष खुशी एवं हकलाहट में उसने अपने पति के सिर को भाई के धड़ से, भाई के सिर को पति के धड़ से जोड़ दिया। असीम आनंद में घबराहट होना सहज ही है न। वे दोनों जीकर उठे थे।

उसने उन दोनों को देखा। उसको अपनी गलती समझ में आ गई। अपनी बेअक्ल के काम पर चिंतित होती हुई रोने लगी। इन दोनों में कौन उसका पति है और कौन भाई है, निर्णय नहीं ले पाने के कारण सफेद मुख बनाकर बैठी थी। उसे कुछ नहीं सूझ रहा था।

"हे राजा उन दोनों में उसके पति कौन, उसके भाई बनने योग्य कौन है ? कारण सहित उत्तर दो।" बेताल ने कहा। उत्तर जानते हुए विक्रमार्क समस्या का समाधान दिए बिना नहीं रह सका।"सर्वेद्रियानाम नयनम प्रधानम्', कहा गया है, वैसे ही 'सर्वेद्रियाणाम सिरः प्रधानम' भी बड़ों ने कहा है। उनके कहने के अनुसार, न्याय, धर्म, नयन एवं बुद्धि सभी सिर में ही होते हैं। अतः मनुष्य की पहचान उसके सिर भाग से होना उचित है, इसलिए पति का सिर, जिसमें है, वही उसका पति है। दूसरा पुरुष उसका भाई है।" विक्रमादित्य ने कहा।

बेताल ने उसके समाधान की प्रशंसा की, लेकिन विक्रमादित्य का मौन भंग हो गया, इसलिए राजा के सिर पर से शव और उसमें रहा बेताल फिर पेड़ पर लटकने लगे।


इससे आगे आन्ध्र प्रदेश की लोककथाएँ पढ़ने के लिए

Title - आन्ध्र प्रदेश की लोककथाएं ISBN - 9789355210180 Author - एस शेषरत्नम / S. Shesharatnam To Buy - https://www.amazon.in/dp/9355210183/ To Read Andhra Pradesh Ki Lok kathayen Full Book


एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ