हरियाणा की लोककथाएँ हिंदी में : निशा हिंदी पुस्तक - कहानी

हरियाणा की लोककथाएँ हिंदी में : निशा हिंदी पुस्तक - कहानी | Haryana Ki Lok kathayen in Hindi : Nisha Hindi Book – Story (Kahani)

लांडा अढाई का

चार निकम्मे थे। वे कुछ काम नहीं करते थे। एक बार उन्होंने सोचा - चलो
कुछ काम करते हैं। एक ने कहा, “चलो, गाँव से बाहर ईख उगाते हैं।"
दूसरे ने कहा, "गाँव में या गाँव से बाहर ईख उगाने का क्या फायदा? हम मेहनत से पैदा करेंगे। सारा गाँव आते-जाते गन्ना चूस जाएगा। हम देखते रह जाएँगे। नहीं, नहीं, ईख नहीं उगाते।"
तीसरे ने कहा, “ईख बचाने का एक तरीका है। क्यों न गाँववालों को यहाँ से भगा दें।"

चौथे ने समर्थन करते हुए कहा, "हाँ, यही ठीक रहेगा। हम गाँव में आग लगा देते हैं। गाँववाले भाग जाएँगे। हमारे गन्ने की फसल सुरक्षित रहेगी। फिर हम ही उगाएँ, हम ही हमारे गन्ने खाएँगे।"
चारों ने मिलकर गाँव में आग लगा दी। चारों ओर से कहते फिरे, “भाग लो, सारे आग लग गई आग।"
गाँव वालों ने मिलकर उन चारों को पीट दिया। पिटकर चारों शांत बैठ गए। आपस में कहने लगे, "चलो, ईख रहने देते हैं। चोरी करते हैं।"
वे चोरी करने लगे। उन पैसों से उन चारों ने एक बैल खरीदने का मन बना लिया। चारों एक बूढ़े आदमी के पास बैल खरीदने गए। वे बूढ़े से कहने लगे, "ताऊ, बैल बेचोगे?"
बूढ़े ने कहा, "हाँ।"
वे चारों-"कितने का?"
बूढ़े ने कहा-“अढ़ाई का।"
वे चारों—“कुछ दाम कम कर ले।"
बूढ़ा-“नहीं, अढ़ाई का।"

"तीन रुपए ले लो।" निठल्लों ने कहा

बूढ़ा कहने लगा, "यह बैल लांडा (बिना पूंछ वाला।) इसलिए इसके रुपए मैं तीन नहीं, अढाई ही लँगा।"

चारों ने बैल को अढाई रुपए में खरीद लिया। खरीदकर चले। बैल ने रास्ते में गोबर कर दिया। थोड़ी देर में पेशाब कर दिया। वे कहने लगे, “यार, यह क्या हुआ, यह बैल दो जगह पर फूटा हुआ है। इसमें से पानी भी निकलता है और गोबर भी। हमने इसके लिए अढाई रुपए भी दिए हैं। हमारे साथ बूढ़े ने धोखा-धड़ी की है। हम बूढ़े को सबक सिखाकर आएँगे।"

अगले दिन चारों बूढ़े के पास जाकर कहने लगे, “एक तो फूटा बैल दिया, वह भी अढ़ाई का। मारो।" चारों ने मार-मारकर बूढ़े व्यक्ति का बुरा दिन बना दिया।

बूढ़ा कहने लगा, "मारो मत, मेरे वैसे ही प्राण निकले जा रहे हैं। मर जाऊँगा। तुम अपने अढ़ाई रुपए भी ले लो। मेरे घर में पैसे रखे हैं, उन्हें भी लें जाओ। बस मारो मत।"

बूढ़े आदमी के चारों बेटे रात होने पर घर में आए। उन्हें अपने बाप की बदहाली देखकर बुहत दुःख हुआ। बूढ़े आदमी के बेटे अगले दिन काम पर नहीं जाकर घर में ही रह गए। पिता ने बताया कि वे सब कहकर गए हैं कि वे आज फिर आएँगे। सबने सोच लिया कि आज हम बताएँगे कि बाप की पिटाई पर बेटे क्या हाल बना देते हैं।

अगली सुबह वे सब वैद्य बनकर आए और उसी गाँव में जोर-जोर से चिल्लाकर-चिल्लाकर दवाई बेचने लगे, "टूटे-फूटे की दवाई ले लो। नई-पुरानी कैसी भी चोट हो। लगाए, आराम पाए। चोट की दवाई लो, चोट की दवाई लो।"

बूढ़े के बेटों ने उन्हें बुलाया और कहने लगे, "हमारे घर चलकर मेरे पिताजी का इलाज करो। उन्हें चोट लगी है। चारों वहाँ गए, जाकर देखा। बूढ़ा मुँह फेरे सो रहा है। के बूढ़े के बेटों से कहने लगे, "तुम चारों चार दिशाओं में जाओ। जाकर अपनी-अपनी दिशाओं से इस तरह का पौधा ले आओ।"

वैद्यों के कहने पर बेटे अपनी-अपनी दिशाओं में चले गए। बूढ़े आदमी ने मुँह उनकी तरफ मुँह किया ही था कि बूढ़े को मारते हुए बोले, "हैं ताऊ, तेरा लांडा बैल वो भी अढाई का।"

चारों ने मिलकर बूढ़े को मार-मारकर अधमरा कर दिया। बूढ़े के बेटे वैद्यों का बताया पौधा लेकर पहुँचे। देखा-उनका पिता जमीन पर पड़ा दर्द के मारे हाय-हाय कर रहा है। बूढ़े की इस हालत को देखकर वे तड़फकर रह गए। उन्होंने संकल्प किया कि वे छोड़ेंगे नहीं।

अगले दिन बूढ़े के बेटे फिर सब घर में ही रहे। चारों निक्कमे आदमी वहीं से जा रहे थे। उन्होंने देखा-एक गड़रिया बालक अपनी भेड़-बकरियाँ चराने के लिए उसी गली में से जा रहा है। उन्होंने उस बालक को अपने पास बुलाकर कहा, "बच्चे, एक काम करो। (दूर से दिखाते हुए) उस घर में जाकर एक बात कह आओ- है ताऊँ लांडा अढाई का। तब तक हम तुम्हारी बकरियों की देखभाल करते हैं। कहकर भाग लेना। देखते हैं तुम कितना तेज दौड़ सकते हो।"

बालक था, बहकावे में आ गया। दौड़कर बताए घर में जाकर कहने लगा, "हैं ताऊ, लांडा अढाई का।"

बूढ़े ने सुना, चिल्लाकर अपने बेटों को कहने लगा, "वे आ गए, पकड़ो उनको।"

लड़का तो कहकर भाग लिया। घर में लाठी लेकर बैठे बूढ़े के बेटे उस लड़के के पीछे दौड़ पड़े। आगे चलकर उन्होंने बालक को दबोच लिया। उसे मारने लगे, "बालक कहे, मुझे क्यों मार रहे हो? मुझे उन लोगों ने यह कहने को कहा था। वे मेरी भेड़-बकरियाँ भी ले गए।"
मौके का फायदा उठाकर चारों निकम्मे बूढ़े के पास आ गए। बेचारे बूढ़े को मारते हुए बोले, “है ताऊ, तेरा लांडा अढाई का।" मार-पीटकर फिर चले गए।
ताऊ कराहते हुए हाय-हाय करे। बेटों ने कहा, “चिंता मत करो, पिताजी। हम उसे दूर भगा आए हैं।"
बूढ़े ने दर्द को पीते हुए कहा, "अरे! बेवकफ, कहाँ मर गए थे। तुम बाहर निकले थे। वे सब अंदर आ गए थे। वे फिर से मेरा भुरता बना गए।"


इससे आगे हरियाणा की लोककथाएँ पढ़ने के लिए 



Title -  हरियाणा की लोककथाएं

ISBN - 9789355210548

Author - निशा /  Nisha 

 


 

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