श्रीमद्भागवत गीता की व्याख्या
Interpretations Of The Shrimad Bhagwat Gita
भगवत गीता क्या है?
गीता हिंदू धर्म की पवित्र रचनाओं में से एक है जो कई भागवत गीता श्लोकों में जीवन का सार समाहित करती है। इसमें मनुष्य को जीवन जीने का उचित तरीका सिखाया गया है। इस पुस्तक के अनुसार कर्म ही मनुष्य का सबसे महत्वपूर्ण धर्म है। इस जीवन में हमें अपने प्रयासों का फल मिलता है। महाभारत युद्ध के दौरान श्री कृष्ण ने अर्जुन को भगवत गीता का ज्ञान दिया था।
यह लड़ाई का वह बिंदु था जब अर्जुन अपने प्रतिद्वंद्वी पर हमला करने में असमर्थ था क्योंकि वह अपने गुरु और दादा का सामना कर रहा था, जिनका वह बहुत सम्मान करता था।
उस समय चिंतित और परेशान अर्जुन को सीधा रास्ता दिखाने के लिए श्री कृष्ण अपने असली रूप विष्णु जी के रूप में प्रकट हुए और उन्हें गीता का ज्ञान दिया। इसे द्वापर काल के नाम से जाना जाता है। द्वापर से लाखों वर्ष पहले भगवान विष्णु ने सूर्य देव को भगवत गीता का पाठ सुनाया था। तब सूर्य देव ने अपनी विशेषज्ञता मनु को प्रदान की, जो अब भी संशय में थे। सुवाकु को इस ज्ञान भूमि की पूर्ति मनु से प्राप्त हुई। सुवाकु ने इसे राज्य के ऋषियों के सामने प्रस्तुत किया।
इसी तरह, यह जानकारी एक से दूसरे तक पहुंचाई गई। यह ज्ञान लंबे समय तक विलुप्त हो गया था, लेकिन द्वापर युग में यह फिर से प्रकट हुआ जब कृष्ण ने अर्जुन को गीता सार का ज्ञान दिया। हम सभी के पास गीता पुस्तकों के आकार में हिंदी संग्रह में भागवत गीता श्लोक हैं।
भगवत गीता किसने लिखी है?
भगवत गीता, भारतीय धर्मशास्त्र की प्रमुख ग्रंथों में से एक है जो महाभारत के भीष्म पर्व के अंतर्गत संवाद के रूप में प्रस्तुत है। इस ग्रंथ का अन्तर्भूत विषय धर्म, कर्म, ज्ञान, भक्ति और भाग्य से संबंधित है। यह ग्रंथ एक युद्ध के दिनों में अर्जुन नामक राजपुत्र और भगवान श्रीकृष्ण के बीच हुए संवाद के रूप में प्रस्तुत किया गया है।
भगवत गीता को आदि शंकराचार्य ने अपने ग्रंथ "भगवद्गीताभाष्य" में प्रथम बार उद्धृत किया था। इसके बाद इसे वेदव्यास जी द्वारा रचित महाभारत में शामिल किया गया। वेदव्यास, महाभारत के लेखक माने जाते हैं जिन्होंने इस महाकाव्य को संवाद, कथा और उपाख्यानों से भर दिया था।
भगवत गीता में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को अध्यात्मिक ज्ञान और अर्थात् धर्म, कर्म, भक्ति और ज्ञान के विभिन्न पहलुओं का उपदेश दिया था। गीता के द्वारा मानवता को समझाने, उसके जीवन को दिशा देने और उसे धार्मिक एवं आध्यात्मिक सफलता की प्राप्ति के मार्ग को जानने का अद्भुत साधना मिलता है।
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भगवत गीता भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण धार्मिक ग्रंथ है जो विभिन्न अनुयायियों, धर्मग्रंथों, विचारधाराओं, और सम्प्रदायों में व्यापक सम्मान प्राप्त करता है। इसे अनगिनत भाषाओं में अनुवादित किया गया है और विश्व भर में इसके प्रचार-प्रसार से लाखों लोगों को धार्मिक और आध्यात्मिक अनुभव का आदर्श मिला है।
भगवत गीता में कुल मिलाकर 700 श्लोक हैं। यह श्लोक ग्रंथ के विभिन्न अध्यायों में बिखरे हुए हैं, और इनमें भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को विभिन्न विषयों पर उपदेश और सवालों का समाधान दिया है। गीता के श्लोक धर्म, ज्ञान, भक्ति, कर्म, समर्थन, स्वधर्म, और आध्यात्मिक ज्ञान जैसे विभिन्न मुद्दों पर विचार करने का अवसर प्रदान करते हैं। भगवत गीता को समझने और इसके उपदेशों को अपने जीवन में अमल करने से मानवता को जीवन का सही मार्ग प्राप्त होता है।
भगवत गीता के हर अध्याय का अलग-अलग नाम है। गीता के संपूर्ण 18 अध्यायों के नाम निम्नलिखित हैं:
अर्जुनविषादयोग - Arjuna Vishadayoga
सांख्ययोग - Sankhyayoga
कर्मयोग - Karmayoga
ज्ञानयोग - Jnānayoga
कर्मसन्न्यासयोग - Karmasannyāsayoga
आत्मसंयमयोग - Ātmasanyamayoga
ज्ञानविज्ञानयोग - Jnānavijñānayoga
अक्षरब्रह्मयोग - Akṣarabrahmayoga
राजविद्याराजगुह्ययोग - Rājavidyārājaguhya Yoga
विभूतियोग - Vibhūtiyoga
विश्वरूपदर्शनयोग - Viśvarūpadarśanayoga
भक्तियोग - Bhakti Yoga
क्षेत्रक्षेत्रज्ञविभागयोग - Kṣetrakṣetrajñavibhāgayoga
गुणत्रयविभागयोग - Guṇatrayavibhāgayoga
पुरुषोत्तमयोग - Puruṣottamayoga
दैवासुरसम्पद्विभागयोग - Daivāsurasampadvibhāgayoga
श्रद्धात्रयविभागयोग - Śraddhātrayavibhāgayoga
मोक्षसंन्यासयोग - Mokṣasannyāsayoga
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