अरुणाचल प्रदेश की लोककथाएँ हिंदी में : नंद किशोर पांडे / हरीश कुमार शर्मा हिंदी पुस्तक - कहानी | Arunachal Pradesh Ki Lok kathayen in Hindi : Nand Kishore Pandey / Harish Kumar Sharma Hindi Book – Story (Kahani)
आबोतानी और मिथुन (आबोतानी ला सोब)
प्रस्तुति : डॉ. जमुना बीनी तादर
आबोतानी की पत्नी दुञ येञा (सूर्यदेवी) उनसे रुष्ट होकर अपने मायके ञीदो-कोलो (आकाश) चली गई। आबोतानी भी अभिमानी थे, उन्होंने सोचा–'जाती है तो चली जाए। मैं उसे मनाने के लिए पीछे-पीछे नहीं जाऊँगा। कुछ दिन मायके में रहकर स्वयं चली आएगी। काफी समय गुजर जाने के पश्चात् भी दुञ येञा धरती पर लौटकर नहीं आई तो आबोतानी चिंतित हो उठे। स्वयं को ढाढ़स बंधाते हुए आबोतानी ने कहा, "रूठकर गई है, मान कर रही है।
जल्दी नहीं लौटेगी, लंबी प्रतीक्षा करवाएगी।" किंतु यह प्रतीक्षा आबोतानी के अनुमान से अधिक लंबी होती जा रही थी। ज्यों-ज्यों समय बीतने लगा, त्यों-त्यों आबोतानी धीरज खोने लगे। विरह-वेदना से आबोतानी तड़पने लगे। दिन बीतते जाते और आबोतानी का मन डूबता जाता। अंतत: आबोतानी ने अपना अभिमान त्याग दिया और स्वयं दुब येबा को लिवाने आकाश में पहुंच गए।
दुञ येञा और उसके समस्त परिवार ने स्वर्गलोक में आबोतानी का यथोचित स्वागत किया। दुञ येञा भी अपने पति आबोतानी को देखकर बहुत आह्लादित हुई और अपना मान भूलकर उसने आबोतानी को आलिंगन में भर लिया। स्वर्गलोक अनेक सुख-सुविधाओं और ऐश्वर्य से भरा हुआ था। इस वैभव नगरी में किसी वस्तु की कोई कमी नहीं थी। खाने-पीने की सामग्रियों की प्रचुरता थी, जबकि आबोतानी का तानी-मोक (तानी का संसार) अभावों का संसार था। तानी-मोक में दो वक्त पेट भरने के लिए भी कठिन परिश्रम करना पड़ता था। आबोतानी इस संपन्न-लोक के आकर्षण में बँधकर कई दिनों तक सारी सुविधाओं का उपभोग करते रहे। इन सारी
दम साधकर बड़े ध्यानमग्न होकर सुनने लगे। ओहहो! यह क्या ! ये आवाजें तो इस बाँस के चोंगे से आ रही हैं।' आबोतानी ने बिल्कुल सही पकड़ा, चोंगे के भीतर से ही विविध प्रकार की ध्वनियाँ आ रही थीं।
आबोतानी का मन किया कि इसे तुरंत खोलकर देखें कि इसके भीतर क्या है। फिर उन्हें अपनी पत्नी की बात याद आई। दुञ येञा ने इसे खोलने को मना किया था। आबोतानी ने अपने मन को काबू में किया। स्वयं से वायदा किया कि अब धरती पर पहुँचकर ही इसे खोलकर देगा। फिर सीढ़ियों से उतरने लगे। परंतु आबोतानी का ध्यान अब यात्रा पर नहीं, इस चोंगे पर अटक गया। वह सोचते रहे कि क्या है इस चोंगे के भीतर; क्या कोई मनुष्य है, जो भिन्न-भिन्न ध्वनियाँ उत्पन्न कर रहा है? आखिर है क्या इसके भीतर? आबोतानी का हाथ स्वयं चोंगे पर टिक जाता। चोंगे से ध्यान हटाने के लिए वह कभी कुछ गुनगुनाते तो कभी स्वयं से बातें करते। मगर सारे प्रयास विफल। जब कई प्रयासों के बाद भी आबोतानी अपना ध्यान हटाने में सफल नहीं हुए, तो वे सीढ़ी पर फिर बैठ गए। मन-ही-मन उन्होंने अपनी पत्नी से क्षमा माँगी कि वे उसकी बात न रख सके। फिर अपने काँपते हाथों से उन्होंने चोंगे के सिरे में ठुसे पत्तों को हटाया ।
जब पत्तों को हटाया, तो चोंगे के भीतर से रंग-बिरंगे पक्षी फुर्र से उड़ निकले। शेर, भालू, हिरण आदि भीतर से तुरंत भाग निकले। इन विविध आकार-प्रकार के प्राणियों को देख आबोतानी हक्का-बक्का रह गए। क्षण भर के लिए उन्हें समझ नहीं आया कि क्या करें। असमंजस में इन प्राणियों को देखते रहे। तभी चोंगे के भीतर से सोब अर्थात् मिथुन (भैंस जैसा पहाड़ी पशु) ने झाँका। मिथुन ने भी बाहर निकलने का प्रयास किया, पर वह फँस गया। उसका आधा शरीर चोंगे से बाहर और आधा चोंगे के भीतर फँसा रह गया। अब आबोतानी को सुध आई और उन्होंने मिथुन को हाथ से भीतर धकेला और फिर पत्तों से चोंगे के मुँह को ढंक दिया। पुनः अपनी यात्रा आरंभ करते हुए आबोतानी सीढ़ी से उतरते गए और अंत में धरती पर पहुँच गए।
ञीशी जनजाति में यह धारणा प्रचलित है कि जो पशु-पक्षी चोंगे से बाहर निकल स्वतंत्र हो गए, वे जंगलों में वास करने लगे। अत: वे जंगली कहलाए। और जो बाहर नहीं निकल पाए, जिन्हें आबोतानी धरती पर स्थित अपने घर ले आए, वे घरों में और घरों के आस-पास विचरण करने लगे। अतः वे पालतू कहलाए; चूँकि मिथुन चोंगे से आधा बाहर निकला था; अतः वह न जंगली कहलाया, न पालतू। मिथुन न तो जंगली पशु है, न पालतू। वह इन दोनों के बीच का है। मिथुन को लोग पालते अवश्य हैं, किंतु घरों में नहीं, जंगलों में।दम साधकर बड़े ध्यानमग्न होकर सुनने लगे। ओहहो! यह क्या ! ये आवाजें तो इस बाँस के चोंगे से आ रही हैं।' आबोतानी ने बिल्कुल सही पकड़ा, चोंगे के भीतर से ही विविध प्रकार की ध्वनियाँ आ रही थीं। आबोतानी का मन किया कि इसे तुरंत खोलकर देखें कि इसके भीतर क्या है। फिर उन्हें अपनी पत्नी की बात याद आई। दुब येञा ने इसे खोलने को मना किया था। आबोतानी ने अपने मन को काबू में किया। स्वयं से वायदा किया कि अब धरती पर पहुँचकर ही इसे खोलकर देगा। फिर सीढ़ियों से उतरने लगे। परंतु आबोतानी का ध्यान अब यात्रा पर नहीं, इस चोंगे पर अटक गया। वह सोचते रहे कि क्या है इस चोंगे के भीतर; क्या कोई मनुष्य है, जो भिन्न-भिन्न ध्वनियाँ उत्पन्न कर रहा है?
आखिर है क्या इसके भीतर? आबोतानी का हाथ स्वयं चोंगे पर टिक जाता। चोंगे से ध्यान हटाने के लिए वह कभी कुछ गुनगुनाते तो कभी स्वयं से बातें करते। मगर सारे प्रयास विफल। जब कई प्रयासों के बाद भी आबोतानी अपना ध्यान हटाने में सफल नहीं हुए, तो वे सीढ़ी पर फिर बैठ गए। मन-ही-मन उन्होंने अपनी पत्नी से क्षमा माँगी कि वे उसकी बात न रख सके। फिर अपने काँपते हाथों से उन्होंने चोंगे के सिरे में ठुसे पत्तों को हटाया ।
जब पत्तों को हटाया, तो चोंगे के भीतर से रंग-बिरंगे पक्षी फुर्र से उड़ निकले। शेर, भालू, हिरण आदि भीतर से तुरंत भाग निकले। इन विविध आकार-प्रकार के प्राणियों को देख आबोतानी हक्का-बक्का रह गए। क्षण भर के लिए उन्हें समझ नहीं आया कि क्या करें। असमंजस में इन प्राणियों को देखते रहे। तभी चोंगे के भीतर से सोब अर्थात् मिथुन (भैंस जैसा पहाड़ी पशु) ने झाँका। मिथुन ने भी बाहर निकलने का प्रयास किया, पर वह फँस गया। उसका आधा शरीर चोंगे से बाहर और आधा चोंगे के भीतर फँसा रह गया। अब आबोतानी को सुध आई और उन्होंने मिथुन को हाथ से भीतर धकेला और फिर पत्तों से चोंगे के मुँह को ढंक दिया। पुनः अपनी यात्रा आरंभ करते हुए आबोतानी सीढ़ी से उतरते गए और अंत में धरती पर पहुँच गए।
ञीशी जनजाति में यह धारणा प्रचलित है कि जो पशु-पक्षी चोंगे से बाहर निकल स्वतंत्र हो गए, वे जंगलों में वास करने लगे। अत: वे जंगली कहलाए। और जो बाहर नहीं निकल पाए, जिन्हें आबोतानी धरती पर स्थित अपने घर ले आए, वे घरों में और घरों के आस-पास विचरण करने लगे। अतः वे पालतू कहलाए; चूँकि मिथुन चोंगे से आधा बाहर निकला था; अतः वह न जंगली कहलाया, न पालतू। मिथुन न तो जंगली पशु है, न पालतू। वह इन दोनों के बीच का है। मिथुन को लोग पालते अवश्य हैं, किंतु घरों में नहीं, जंगलों में।
Title - अरुणाचल प्रदेश की लोककथाएं ISBN - 9789355210128 Author - नंद किशोर पांडे / हरीश कुमार शर्मा / Nand Kishore Pandey / Harish Kumar Sharma To Buy - https://www.amazon.in/dp/9355210124/ To Read Arunachal Pradesh Ki Lok kathayen Full Book in Hindi
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