त्रिपुरा की लोककथाएँ हिंदी में : मिलन रानी जमातिया हिंदी पुस्तक - कहानी

त्रिपुरा की लोककथाएँ हिंदी में : मिलन रानी जमातिया हिंदी पुस्तक - कहानी | Tripura Ki Lok kathayen in Hindi : Milan Rani Jamatia Hindi Book – Story (Kahani)

चेमसोरमोनपा

एक समय एक नदी के किनारे चेमसोरमोनपा नाम का एक आदमी रहता था।
एक बार वह बहती नदी के किनारे बैठकर अपने चेमकुबार (भारी चाकू) को तल्लीन होकर धार देने में लगा था, तभी पानी के तेज बहाव के साथ एक केकड़ा वहाँ आ गया और उसके लिंग को काट खाया। अचानक हुई चुभन से चेमसोरमोनपा हड़बड़ा गया और उसने अपने पीछे लगी लता को काट डाला, जिस पर एक बड़ा सा रेंगनेवाला कीड़ा था। नतीजतन वह कीड़ा एक गर्भवती हिरणी पर गिरा और उसके पीछे काट खाया।
हिरणी इससे कूदने-फाँदने लगी और उससे एक जंगल मुरगी का घोंसला नष्ट हो गया। जंगली मुरगी गुस्से में पहाड़ी चींटियों की कॉलोनी को तितर-बितर कर देती है। बदले में चींटियाँ जंगली सूअर को काट खाती हैं। दर्द और गुस्से से बिलबिलाता सूअर सूखे बाँसों में घुस जाता है, वहाँ बाँस में चमगादड़ों का घर था। इस अचानक हमले से डरकर चमगादड़ उड़ गए और जब छिपने की कोई जगह नहीं मिली तो वे जाकर हाथी के कान में छिप गए। हाथी के कान में इससे बेहिसाब दर्द हो गया, वह पागलों की ताह इधर-उधर विचरने लगा और इसी क्रम में गलती से एक गरीब विधवा बुढ़िया का घर नष्ट कर डाला। बुढ़िया को डर के मार कुछ समझ में नहीं आता कि क्या करे, गाँव की नदी के पास वह मल त्याग कर देती है। जैसे ही गाँववालों को इसका पता चलता है, आग-बबूला हो जाते हैं। नदी के पास मिले मल को लेकर चर्चा करने के लिए एक पंचायत बुलाई जाती है, जिसकी जाँच में बुढ़िया का पता चल जाता है और उसे पंचायत के सामने पूछताछ के लिए बुलाया जाता है।

पंचायत ने पूछा कि उसने नदी के पास मल क्यों त्यागा? तो बुढ़िया ने जवाब दिया, "मैंने जानबूझकर नहीं किया; एक हाथी ने मेरे घर को नष्ट कर दिया, इसलिए मैं बहुत डर गई और उसी डर में नदी के किनारे मेरा मल निकल गया।"
अब नाराज पंचायत ने हाथी को बुलवाया और पूछा, “तो आपकी वजह से यह सब हुआ है?"
हाथी ने उत्तर दिया, “मैं इसके लिए अकेला जिम्मेदार नहीं हूँ। एक चमगादड़ मेरे कान में आ घुसा था, जिससे मुझे दर्द होने लगा और उसी कारण बुढ़िया का घर नष्ट हुआ।"

अब चमगादड़ को बुलाकर पूछताछ की गई, “आपने हाथी के कान में क्यों प्रवेश किया?" चमगादड ने जवाब दिया, "मैं इसके लिए दोषी नहीं हूँ। एक जंगली सूअर ने सूखे बाँसों पर हमला किया, जहाँ मैं रहता था, इसलिए अपने आप को छिपाने के लिए मैं हाथी के कान में घुस गया।" इसके बाद सूअर को बुलाया गया। उससे पूछा गया, "ऐ सूअर ! तुमने इस चमगादड़ का घर क्यों तोड़ा?" सूअर ने उत्तर दिया, “मैंने सोच-समझकर कुछ नहीं किया। पहाड़ी चींटियों ने मुझे बुरी तरह काट लिया। सो दर्द में मुझसे यह हो गया।" अब पहाड़ी चींटियाँ बुलाई गईं। उनसे पूछा गया। चींटियों ने कहा, "हमने जानबूझकर नहीं किया। वो तो जंगली मुरगी ने हमारी कॉलोनी तोड़ दी, इसलिए हमसे ऐसा हो गया।" अब मुरगी बुलाई गई गई। मुरगी ने कहा, "मेरी गलती नहीं है, ये सब हिरणी की वजह से हुआ।" अब हिरणी बुलाई गई। हिरणी ने कहा, "मैंने जानबूझकर नहीं किया। मुझे कीड़े ने काटा, इसलिए ऐसा हो गया।" अब कीड़ा बुलाया गया। कीड़े ने अपनी सफाई में चेमसोरमोनपा का नाम लिया। आखिर चेमसोरमोनपा आए। चेमसोरमोनपा ने कहा, "मेरी कोई गलती नहीं है। मुझे चाकू पर धार लगाते समय एक केकड़े ने मेरे लिंग पर काट लिया था। बस उसी के दर्द में मेरा हाथ कीड़े की लता पर चला गया।" अब पूरे गाँव की पंचायत के सामने केकड़े को तलब किया गया। गाँववालों ने उससे पूछा, "तुच्छ केकड़े, तुमने चेमसोरमोनपा को क्यों काटा?"

"मैंने कुछ भी नहीं किया, मैं निर्दोष हूँ।" केकड़े ने झटके से कहा। पर उसके पास अपनी बात साबित करने के लिए कोई तर्क नहीं था। आखिर पंचायत द्वारा उसे ही मुख्य दोषी ठहराया गया और यह निर्णय लिया गया कि केकड़े को उसकी शरारत के लिए दंडित किया जाना चाहिए।
पंचायत द्वारा सर्वसम्मति से केंकड़ा के लिए दो दंड सोचे गए-या तो उसे आग के हवाले कर दिया दिया जाए, या फिर पानी में मरने के लिए फेंक दिया जाए। इस पर केकड़े ने चतुराई से चुनाव किया कि वह आग में जलकर मरना
और लकड़ी के कोयले के साथ जलकर मैं एकदम गरम, स्वादिष्ट और खस्ता बन जाऊँगा।" मुसकराते हुए केकड़े ने कहा।
जब गाँववालों ने उसे पानी दिखाया तो केंकड़ा डर के मारे चीखने और रोने लगा। फिर बोला, "अरे नहीं, कृपया मुझे पानी में मत फेंको, नहीं तो मैं सड़कर मर जाऊँगा।" उसके चेहरे के भावों को देखकर पंचायत धोखा खा गई और उसे पानी में फेंक दिया। पर तुरंत ही सबको पता चल गया कि उन्हें केकड़े द्वारा धोखा दिया गया है। केंकड़ा खुशी से पानी में डुबकी लगाता हुआ चट्टानों के बीच जा छिपा। वहीं एक हाथी अपनी सूंड से पानी को बाहर निकालने में लगा था।

गाँववाले वहीं पहुँचे और गुस्से में एक लंबे हरे पौधे की टहनी से केकड़े को बार-बार लूंसे मारने लगे। इससे केकड़ा बुरी तरह नाराज हो गया और उसने उस हरे पौधे को शाप दे दिया कि आज के बाद तुम जड़ से नहीं, टहनी के माध्यम से ही फलोगे। कहते हैं, वह पौधा केकड़े के उस शाप के कारण ही जड़ से नहीं, टहनी से फलता है।

Title - त्रिपुरा की लोककथाएं ISBN - 9789355210388 Author - मिलन रानी जमातिया / Milan Rani Jamatia To Buy - https://www.amazon.in/dp/9355210388/ To Read Tripura Ki Lok kathayen Full Book in Hindi


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