Chhatrapati Shivaji: Vidhata Hindvi Swarajya ka | Shrinivas Kutumbale

छत्रपति शिवाजी: विधाता हिंदवी स्वराज्य का श्रीनिवास कुटुम्बले द्वारा / Chhatrapati Shivaji: Vidhata Hindvi Swarajya ka (Hindi Book) By Shrinivas Kutumbale


Chhatrapati Shivaji: Vidhata Hindvi Swarajya ka

Chhatrapati Shivaji: Vidhata Hindvi Swarajya ka (Hindi Book) (छत्रपति शिवाजी: विधाता हिंदवी स्वराज्य का) is a biography of greatest Maratha warrior Chhatrapati Shivaji Maharaj by Shrinivas Kutumbale



              शिवाजी का जन्म

प्राचीन भारत के इतिहास में जितने भी हिंदू राजा हुए, उन में जो  महान् व्यक्तित्व प्रभु रामचंद्र के, भगवान् श्रीकृष्ण के चरित्र से प्रेरित रहा है तथा जिनके पराक्रम के कारण हिंदू राष्ट्र, हिंदू धर्म तथा हिंदू संस्कृति जीवित और अविनाशी रही, ऐसे छत्रपति शिवाजी का जीवन चरित्र अद्भुत अलौकिक है। जिस कालखंड में स्वराज्य, स्वधर्म तथा स्वतंत्रता जैसे शब्दों का उच्चारण करना भी असंभव था, उस कालखंड में शिवाजी ने अपने पराक्रम और कर्तव्यनिष्ठा से जो राज्य स्थापित किया, उसके परिणामस्वरूप इतिहास में शिवाजी राजा एक महान् शासक के रूप में यशस्वी एवं आदरणीय कहलाए।

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत,
अभ्युत्थानम अधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥
परित्राणाय साधुनां विनाशाय दुष्कृताम्,
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे॥
भगवान् श्रीकृष्ण द्वारा कहे गए वचनों के अनुसार संभवतः कलियुग में यह ईश्वर का अवतार ही था। शिवाजी के जीवन के प्रत्येक प्रसंग में प्रगट हुई दूरदर्शिता एवं प्रत्येक प्रसंग में दर्शाई हुई सावधानियाँ और उनमें दिखनेवाला उनका रूप देखकर मन अभिभूत हो जाता है, इतना चरित्र-संपन्न दूरदृष्टा और विविधतापूर्ण व्यक्तित्व का धनी, ऐसा व्यक्ति इतिहास में निश्चित ही बिरला है।

शिवाजी महाराज के जीवनकाल में अनेक प्रसंगों में प्रकट हुई उनकी दूरदृष्टि, उस वक्त बनाई गई योजना तथा योजना बनाते समय दिखाई गई सावधानियाँ, योजना को साकार करने के लिए उचित व्यक्तियों का चयन तथा हमेशा आगे आकर नेतृत्व करनायह सब देखकर मन अचंभित हो जाता है। इतना अष्टपैलू अष्टावधानी संपूर्ण पुरुष बिरला ही होता है। राज्यकर्ता, महान् नायक, वीर सेनानी, प्रजादक्ष, धर्माभिमानी, परधर्मसहिष्णु, चारित्र्यसंपन्न, दूरदृष्टि वाला ऐसा राजा विश्व के इतिहास में मिलना कठिन है।
पुर्तगाली इतिहासकार कास्मो डि गार्डा के विचार में, ‘‘शिवाजी अलेक्जेंडर दी ग्रेट जूलियस सीजर से भी श्रेष्ठ शासक था।’’
राज्य स्थापना करते समय प्रजा के समस्त कल्याण की जवाबदारी सिर्फ राजा की होती है। यह वे भली-भाँति जानते थे, इसीलिए अनेकों युद्ध लड़ने के बाद भी उन्होंने प्रजा पर नए कर कभी भी नहीं थोपे। प्रजा का सभी प्रकार से कल्याण करने के लिए सदैव तत्पर शिवाजी महाराज का रूप उनके जीवन इतिहास के अनेक प्रसंगों में दिखता है। उनकी इसी भूमिका के कारण प्रजा उन्हें देवतुल्य मानती थीं।।
नए गाँव स्थापित करना, जागीरदारी प्रथा बंद करना, गढ़ों को सुरक्षित करना तथा वहाँ पूरे रसद का भंडार करना, खेती के लिए उन्नत बीज तथा औजारों की व्यवस्था करना, किसानों को ऋण सुविधा उपलब्ध कराना, भाषा सुधार के लिए राज्य व्यवहार कोष, पंचांग सुधार के लिए करणकौस्तुभ, धर्म सुधार के लिए प्रायश्चित्त देकर हिंदूधर्म में वापसी करना, नए किलों का निर्माण करना, सैनिकों को प्रशिक्षण युद्ध में हताहत सैनिकों के परिवार को उचित मुआवजा, वीरों का सम्मान, पंडितों का सम्मान, ऐसी अनेक बातों पर सदैव ध्यान देनेवाले शिवाजी महाराज इतिहास के अनेक प्रसंगों में दृष्टिगोचर होते हैं। और इसी कारण प्रजा उन्हें सिर्फ राजा के रूप में देखते हुए देवतुल्य प्राणों से प्रिय मानती थी।
धर्म एवं भगवान् में आस्था रखनेवाले शिवाजी महाराज मानते थे किस्वराज्यकी स्थापना हो, यह तोश्रीकी इच्छा से ही संभव है।
उनकी महानता को देखते हुए आज के मैनेजमेंट के विद्यार्थियों के लिए शिवाजी महाराज, यह अभ्यास का एक अनूठा एवं सर्वोत्तम विषय है।

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Perfection of Planning,
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वैसे देखा जाए तो उस काल में शिवाजी महाराज का तत्कालीन राज्य महाराष्ट्र के आज के छह जिलों के बराबर ही था। अखंडित हिंदुस्तान का आकार देखें तो यह लगभग नगण्य सा ही है, फिर इसका इतना महत्त्व क्यों है? पर जब ध्यान में आता है कि मुसलिम आक्रमण के पाँच सौ वर्षों के कालखंड में सिर्फ शिवाजी नामक राजा ने अपने साथियों को एकत्रत कर मुसलिम आक्रांताओं का सामना किया तथा अपने प्रजाजनों में एक अपूर्व विश्वास और स्वाभिमान जाग्रत् किया।
जब मुगल सम्राट् औरंगजेब के ध्यान में यह बात आई कि अगर यह भावना हिंदुस्तान के अन्य भागों में फैली और हिंदू प्रजा एकत्रत होने लगे तो मुसलिम राज्य समाप्त होने में देर नहीं लगेगी। इसी कारण औरंगजेब ने अपनी सारी शक्ति शिवाजी को खत्म करने में लगा दी। अपनी जिंदगी के आखिरी छब्बीस साल सम्राट् महाराष्ट्र में ही डटा रहा और अंत में यहीं उसकी मौत भी हुई। यहीं से शिवाजी की प्रजा में जाग्रत् स्वाभिमान की भावना का महत्त्व ध्यान में आया।
शिवाजी के जन्मपूर्व भारत की परिस्थिति देखें तो मोहम्मद गजनी .. 1008, मोहम्मद गौरी .. 1178, मोहम्मद खिलजी .. 1292 और बाद में मोहम्मद तुगलक के आक्रमणों से उत्तर भारत में मुसलिम राज्यों की स्थापना हो चुकी थी। आगे चलकर मुगल वंश का आक्रमणकर्ता बाबर .. 1526 में भारत आया और मुगल साम्राज्य की स्थापना हुई।
दक्षिण भारत तथा महाराष्ट्र में प्रथम मुसलिम आक्रमण अलाउद्दीन खिलजी के द्वारा किया गया। मात्र आठ हजार की फौज लेकर आए अलाउद्दीन खिलजी का तत्कालीन राजे सामना नहीं कर सके और दक्षिण भारत तथा महाराष्ट्र में मुसलिम राज्य की स्थापना हुई। तत्पश्चात् मोहम्मद तुगलक, जिसे पागल तुगलक के नाम से जाना गया, ने अपनी राजधानी देवगिरी/दौलताबाद में स्थापित करने का प्रयास किया। किंतु जब तुगलक ने राजधानी वापस दिल्ली को स्थानांतरित की, तब उसके सरदारों ने अपने-अपने प्रभाव क्षेत्र में अपना स्वयं का राज्य स्थापित कर लिया, जिनमें
गुलबर्गाबहमनी
बीदरबेरीदशाही
वराड़इमादशाही
बीजापूरआदिलशाही
खानदेशफरूकी सुलतान
अहमदनगरनिजामशाही
आदि राज्यों का समावेश है। इन सभी में आदिलशाही और निजामशाही काफी लंबे समय तक चली।
वैसे देखा जाए तो इस राजकाज में मुसलिम मुट्ठी भर थे, पर उनको सहयोग करनेवाले हमारे ही भाई बंधु थे। जागीरदारी के छोटे से टुकड़े के लिए ये मुसलिम राजकर्ताओं के ग़ुलाम हो गए थे और आपसी दुश्मनी भी पालते थे। जाधव तथा भोंसले परिवार में एक छोटे से विवाद के कारण दुश्मनी हो गई। दुश्मनी भी इतनी कि जीजाबाई के पिता लखुजी राव जाधव अपने जँवाई शहाजी राजा के खून के प्यासे हो गए। शिवाजी के जन्म के पूर्व, तब जीजाबाई गर्भवती थीं, पति-पत्नी अपने प्राणों की रक्षा के लिए दर-दर की ठोकरें खाते, एक गाँव से दूसरे गाँव भाग रहे थे।


 Title  - Chhatrapati Shivaji: Vidhata Hindvi Swarajya ka

Book ISBN - 9789386001214

Author Shrinivas Kutumbale / श्रीनिवास कुटुम्बले 



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