जनवरी 2022 के लिए पुस्तकें
इस ब्लॉग में, हमने प्रभात प्रकाशन द्वारा जनवरी 2022 में जारी पुस्तकों के बारे में जानकारी प्रकाशित की है ।
1 - Krishi Mein Mahilaon Ki Bhoomika / कृषि में महिला की भूमिका
ISBN - 9789355620460
कृषि में महिलाओं की भूमिका पुस्तक उन महिला किसानों की कहानी है, जिन्होंने समाज, सरकार और अपनी किस्मत को कोसने की बजाय अपनी आत्मनिर्भरता से कुछ ऐसा करने की ठानी कि वे अब एक महिला किसान के साथ-साथ आनेवाली पीढिय़ों और समाज के लिए भी प्रेरणा-स्रोत बन गई हैं। आपने एक तसवीर अनेक बार देखी होगी, जिसमें कतार में खड़ी महिलाएँ धान की रोपाई करती हैं। कीचड़ में धँसी और झुकी, ये महिलाएँ पूरे दिन काम करती हैं और हमारे लिए अनाज उपजाती हैं। ऐसे अनेक उदाहरण देखने को मिलते हैं—उत्तर भारत के मैदानी इलाकों में सिर पर घड़ा रख पानी लाने मीलों दूर जाती महिलाएँ, फसल की कटाई के बाद उसे कटाई मशीन में डालती महिलाएँ; चाय के बागानों में महिला किसानों के पेट पर चुन्नी से बँधा बच्चा और चाय की पत्तियाँ तोड़ती वह महिला किसान। इस पुस्तक में महिला किसानों के साक्षात्कार के माध्यम से उनके संघर्ष और उन्हें सरकारी योजनाओं से मिले लाभों को पाठकों तक पहुँचाने का प्रयास किया गया है।
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2- Hindu Dharma Ki Dharohar : Bharatiya Sanskriti / हिंदू धर्म की धरोहर : भारतीय संस्कृति
ISBN - 9789355212337
यह पुस्तक एक ऐसी कुंजिका है जो भावी पीढ़ी को अपने मूल से जोड़ने और हिंदू संस्कृति को समझने में सक्षम भूमिका का निर्वहन करेगी।
- हिंदू धर्म की धरोहर भारतीय संस्कृति यह शीर्षक स्वयं में इस पुस्तक का समग्र परिचय करवा रहा है। सनातन हिंदू धर्म क्या है और किस प्रकार से यह भारतीय संस्कृति की अमूल्य निधि के रूप में निरंतर क्रियाशील है, यही तथ्य इस पुस्तक के आधार तत्व हैं। यज्ञ, हवन, शंख, पद्म, गाय, त्रिशूल, मंदिर, देवस्थान जैसे शब्द सनातन हिंदू वैदिक संस्कृति में ही हैं। ये केवल शब्द ही नहीं हैं बल्कि इन शब्दों के उच्चारण में ही ऐसा ध्वनित होता है कि जीवन और जीवन का रहस्य क्या है।
- हमारे देवी, देवता और धार्मिक प्रतीक क्या हैं? कैसे हैं? कितने महत्त्वपूर्ण हैं? क्यों हैं? स्वाभाविक है कि जिस प्रकार से समाज बदल रहा है और विश्व पटल पर अनेकानेक उपासना पद्धतियाँ जन्म ले रही हैं, ऐसे परिवेश में किसी को भी यदि हिंदू संस्कृति को जानना और समझना है तो संजय राय ‘शेरपुरिया’ की इस पुस्तक को अवश्य पढ़ना चाहिए। जिस विशिष्टता से इस पुस्तक में सनातन प्रतीकों को मोतियों की माला में पिरोया गया है, वह अद्भुत है।
- भारतीयता, संस्कृति और हिंदू विरासत को समझने के लिए इस पुस्तक में सभी प्रमुख तथ्य, तत्त्व और प्रतीक उपस्थित हैं। यह पुस्तक एक ऐसी कुंजिका है जो भावी पीढ़ी को अपने मूल से जोड़ने और हिंदू संस्कृति को समझने में सक्षम भूमिका का निर्वहन करेगी। सनातन धर्म और भारतीय संस्कृति का वैशिष्ट्य और निरंतरता बताती पठनीय पुस्तक।
3- Sri Guruji : Ek Swayamsewak /श्री गुरुजी: एक स्वयं सेवक
ISBN - 9789355620477
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4-Tokyo Olympic Ke Khiladiyon Ki Prerak Kahaniyan / टोक्यो ओलंपिक के खिलाड़ियों की प्रेरक कहानियां
ISBN - 9789355620484
ये कहानियाँ पाठकों को खिलाडि़यों के समर्पण, निष्ठा और जिजीविषा से परिचित करवाएँगी; साथ ही उनमें भी खेलों के प्रति और अधिक रुचि भी जाग्रत् करेंगी।
- ओलंपिक खेलों का महाकुंभ होता है और हर खिलाड़ी का यह स्वप्न होता है कि वह इन खेलों में न केवल भाग ले, वरन् मेडल भी जीते। सन् 2020 में ओलंपिक खेल टोक्यो में होने थे, पर कोविड-19 के चलते ये नियत समय पर नहीं हुए, पर अंततः बेहतर प्रबंधन, आंतरिक मजबूती, परस्पर विश्वास और समन्वय की मिसाल पेश करते हुए अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति के मार्गदर्शन में जापान ने सफलतापूर्वक 2020 के ओलंपिक खेलों का आयोजन किया।
- करीब 18 अरब डॉलर के खर्च से हुए इस आयोजन से दुनिया में यह संदेश गया है कि हम आपस में ज्यादा संवाद करें; एक-दूसरे की आवश्यकताओं को समझें; अपनी विशेषज्ञता का लाभ दूसरों को दें। जिस तरह ओलंपिक में जीत से अधिक भागीदारी जरूरी है, उसी तरह विश्व के विकास के लिए एकता और साझेदारी जरूरी है।
- इस पुस्तक में टोक्यो ओलंपिक से प्रेरित संघर्ष और सफलता की 21 कहानियों को संकलित किया गया है।
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ये कहानियाँ पाठकों को खिलाडि़यों के समर्पण, निष्ठा और जिजीविषा से परिचित करवाएँगी; साथ ही उनमें भी खेलों के प्रति और अधिक रुचि भी जाग्रत् करेंगी।
- ओलंपिक खेलों का महाकुंभ होता है और हर खिलाड़ी का यह स्वप्न होता है कि वह इन खेलों में न केवल भाग ले, वरन् मेडल भी जीते। सन् 2020 में ओलंपिक खेल टोक्यो में होने थे, पर कोविड-19 के चलते ये नियत समय पर नहीं हुए, पर अंततः बेहतर प्रबंधन, आंतरिक मजबूती, परस्पर विश्वास और समन्वय की मिसाल पेश करते हुए अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति के मार्गदर्शन में जापान ने सफलतापूर्वक 2020 के ओलंपिक खेलों का आयोजन किया।
- करीब 18 अरब डॉलर के खर्च से हुए इस आयोजन से दुनिया में यह संदेश गया है कि हम आपस में ज्यादा संवाद करें; एक-दूसरे की आवश्यकताओं को समझें; अपनी विशेषज्ञता का लाभ दूसरों को दें। जिस तरह ओलंपिक में जीत से अधिक भागीदारी जरूरी है, उसी तरह विश्व के विकास के लिए एकता और साझेदारी जरूरी है।
- इस पुस्तक में टोक्यो ओलंपिक से प्रेरित संघर्ष और सफलता की 21 कहानियों को संकलित किया गया है।
5 -Pandey Bechan Sharma ‘Ugra’ Ki Lokpriya Kahaniyan / पांडे बेचन शर्मा 'उगरा' की लोकप्रिय कहानियां
5 -Pandey Bechan Sharma ‘Ugra’ Ki Lokpriya Kahaniyan / पांडे बेचन शर्मा 'उगरा' की लोकप्रिय कहानियां
Pandey Bechan Sharma ‘Ugra’ Ki Lokpriya Kahaniyan
- ‘उग्र’ ने अपना विख्यात नाम ‘उग्र’, जिससे वे हिंदी जगत् में जाने लाते हैं, राष्ट्रीय जागरण द्वंद्व में शामिल होने से पूर्व ही चुन लिया था, ‘अपनी खबर’ में उन्होंने अपने इस नामकरण पर लिखा है—“आज मुझे अपने लिए उपनाम चुनना हो तो संभव है बुरा न होने पर भी ‘उग्र’ मैं न चुनूँ, लेकिन आज से चालीस वर्ष पूर्व, राष्ट्रभक्त लेखक ऐसे कर्कश नाम चुना करते थे। इसलिए कि बलवान ब्रिटिश राज्य के नृशंस शासक नाम से ही दहल जाएँ, शायद शक्तिहीनता छुपाने को लोग प्रचंड नामोपनाम चुना करने थे, जैसे—त्रिशूल, बज्रपाणि, धूमकेतु, भीष्म, भीम, भयंकर, प्रलयंकर या अपना ढाई अक्षर का ‘उग्र’।”
- भीड़ से अलग रहकर भी उग्र जहाँ अपनी सबलता और सद्गुणों की सीमा से अपरिचित नहीं थे, वहीं अपने दुर्गुणों और दुर्बलताओं से भी अपरिचित नहीं रहे। निश्छल, निर्मल हृदय से निर्भीक-निश्चिंत, विचारों की धुंध से मुक्त, वाणी को मनोभावा देने में समर्थ मन, वचन और कर्म से एक, ‘उग्र’ आत्मा से ‘महात्मा’ थे—‘उग्र’ तुलसी की ‘विनय पत्रिका’ और गालिब के दीवान के अनन्य प्रशंसक रहे। यह दोनों उनके धर्मग्रंथ हो गए थे। गालिब पर तो उन्होंने अपने अंतिम दिनों में विलक्षण व्याख्या लिखी थी—‘गालिब और उग्र’। तुलसी के हजारों उद्धरण उनकी समस्त रचनाओं में यहाँ-वहाँ मिल जाते हैं।
- जिन दिनों हिंदी में रोमांटिक, भावपूर्ण कथा-लेखन का दौर चल रहा था, उस समय राष्ट्रीय चेतना से ओत-प्रोत क्रांतिकारी भावों से भरपूर ‘उग्र’ के सारे कहानी-संग्रह, विस्फोटक, विद्रोहजन्य होने के कारण जब्त कर लिये गए थे।
6- Shivprasad Singh Ki Lokpriya Kahaniyan / शिवप्रसाद सिंह की लोकप्रिय कहानियां
ISBN - 9789390923243
Shivprasad Singh Ki Lokpriya Kahaniyan by Shivprasad Singh (Author)
- डॉ. शिवप्रसाद सिंहजी की कहानियाँ प्रायः ग्रामीण पृष्ठभूमि पर आधारित हैं उन्होंने लिखा भी है—
6- Shivprasad Singh Ki Lokpriya Kahaniyan / शिवप्रसाद सिंह की लोकप्रिय कहानियां
Shivprasad Singh Ki Lokpriya Kahaniyan by Shivprasad Singh (Author)
- डॉ. शिवप्रसाद सिंहजी की कहानियाँ प्रायः ग्रामीण पृष्ठभूमि पर आधारित हैं उन्होंने लिखा भी है—
- “मेरी जिंदगी में गाँव एक ऐसी हकीकत है, जिसे मैं चाहकर भी काट नहीं सकता। गाँव की अछोर हरियाली में डूबे सीमांत, फसलों के रंग-बिरंगे गलीचे बिछाकर किसी अनागत की प्रतीक्षा में डूबी धरती, सरसों, जलकुंभी और झरबेरी के जंगली फूलों से मदहोश वातावरण के बीच अपनी सामान्य जिंदगी के लिए संघर्षरत किसान मेरी कहानियों के अविभाज्य अंग हैं। शहर के जीवन ने जहाँ एक ओर मेरे आधुनिकता बोध को निरंतर सक्रिय बनाया है, वहीं गाँव के जीवन की धड़कनें, जो अब भी सड़ी-गली परंपरा और कूटस्थ रूढ़ियों का कचरा ढोती हुई कराह रही हैं, मेरे कहानीकार के लिए सदा एक चुनौती रही हैं।”
- डॉ. शिवप्रसाद सिंह की सौ से अधिक कहानियों में से दस-पंद्रह लोकप्रिय कहानियाँ खोजना आसान काम नहीं है, फिर भी मैंने कोशिश की है कि उनकी प्रतिनिधि कहानियाँ इसमें शामिल हों।
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- “मेरी जिंदगी में गाँव एक ऐसी हकीकत है, जिसे मैं चाहकर भी काट नहीं सकता। गाँव की अछोर हरियाली में डूबे सीमांत, फसलों के रंग-बिरंगे गलीचे बिछाकर किसी अनागत की प्रतीक्षा में डूबी धरती, सरसों, जलकुंभी और झरबेरी के जंगली फूलों से मदहोश वातावरण के बीच अपनी सामान्य जिंदगी के लिए संघर्षरत किसान मेरी कहानियों के अविभाज्य अंग हैं। शहर के जीवन ने जहाँ एक ओर मेरे आधुनिकता बोध को निरंतर सक्रिय बनाया है, वहीं गाँव के जीवन की धड़कनें, जो अब भी सड़ी-गली परंपरा और कूटस्थ रूढ़ियों का कचरा ढोती हुई कराह रही हैं, मेरे कहानीकार के लिए सदा एक चुनौती रही हैं।”
- डॉ. शिवप्रसाद सिंह की सौ से अधिक कहानियों में से दस-पंद्रह लोकप्रिय कहानियाँ खोजना आसान काम नहीं है, फिर भी मैंने कोशिश की है कि उनकी प्रतिनिधि कहानियाँ इसमें शामिल हों।
7 - Subhadra Kumari Chauhan Ki Lokpriya Kahaniyan / सुभद्रा कुमारी चौहान की लोकप्रिय कहानियाँ
Subhadra Kumari Chauhan Ki Lokpriya Kahaniyan by Subhadra Kumari Chauhan (Author), Anil Kumar (Editor)
- सुभद्रा कुमारी चौहान ने अपनी कहानियों में दहेज, परदाप्रथा, छुआछूत, स्त्री की पीड़ा का बड़ा ही मार्मिक वर्णन किया है। उनकी कहानियों का फलक बहुत विस्तृत है। उनकी कहानियाँ बहुरंगी हैं। जहाँ एक ओर आजादी की लड़ाई के संदर्भों को रेखांकित करनेवाली कहानियाँ हैं, वहीं दूसरी ओर सामाजिक कुरीतियों को उकेरनेवाली कहानियाँ भी हैं।
- सुभद्राजी की कहानियों में कहानीपन है। भाषा की रवानगी है। शब्दों का सटीक प्रयोग है और कहानी कला की दृष्टि से श्रेष्ठ कहानियों को द्योतित करनेवाले संवाद की शैली है।
- यदि हम सुभद्राजी की कहानियों का मूल्यांकन करें तो पाएँगे कि सुभद्रा कुमारी चौहान की कहानियों में प्रेमचंद की कहानियों की तुलना में किसी प्रकार कम नहीं हैं, चाहे उनकी संख्या कम है। वैसा ही विषय, वैसी ही भाषा।
- हिंदी के समीक्षकों ने शायद इस तरह की तुलना करने का प्रयास न किया हो, क्योंकि उन्हें कवयित्री के रूप में अधिक जाना जाता है।
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8 - Roop Singh Chandel Ki Lokpriya Kahaniyan / रूप सिंह चंदेल की लोकप्रिय कहानियाँ
- सुभद्राजी की कहानियों में कहानीपन है। भाषा की रवानगी है। शब्दों का सटीक प्रयोग है और कहानी कला की दृष्टि से श्रेष्ठ कहानियों को द्योतित करनेवाले संवाद की शैली है।
- यदि हम सुभद्राजी की कहानियों का मूल्यांकन करें तो पाएँगे कि सुभद्रा कुमारी चौहान की कहानियों में प्रेमचंद की कहानियों की तुलना में किसी प्रकार कम नहीं हैं, चाहे उनकी संख्या कम है। वैसा ही विषय, वैसी ही भाषा।
- हिंदी के समीक्षकों ने शायद इस तरह की तुलना करने का प्रयास न किया हो, क्योंकि उन्हें कवयित्री के रूप में अधिक जाना जाता है।
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8 - Roop Singh Chandel Ki Lokpriya Kahaniyan / रूप सिंह चंदेल की लोकप्रिय कहानियाँ
ISBN - 9789390923168
Roop Singh Chandel Ki Lokpriya Kahaniyan by Roopsingh Chandel (Author)
- आलोचकों ने माना है कि मैं हाशिए पर पड़े पात्रों का लेखक हूँ। यह सच है। मेरी अधिकांश कहानियाँ ऐसे ही पात्रों को केंद्र में रखकर लिखी गई हैं। यहाँ एक बार पुनः स्पष्ट कर दूँ कि मेरी कहानियाँ हों या उपन्यास, मैंने अधिकांशतया उन्हीं पात्रों और घटनाओं को अपने सृजन का विषय बनाया, जो वास्तविक थे—जिन्हें मैंने जाना-पहचाना। यहाँ मैं मुख्य पात्रों की बात कर रहा हूँ।
- कथा को विकास देने के लिए कुछ काल्पनिक पात्रों और स्थितियों का सृजन अपरिहार्य होता है। मेरा स्वयं का जीवन बहुत ही संघर्षपूर्ण रहा और आज भी किसी-न-किसी रूप में संघर्ष ने पीछा नहीं छोड़ा। स्थितियाँ बदलती रहीं, संघर्ष के स्वरूप बदलते रहे, लेकिन वह किसी-न-किसी रूप में मेरे साथ रहा। संघर्ष यदि तोड़ता है तो वह शक्ति भी देता है और मैंने सदैव उससे शक्ति अर्जित की तभी इतना सब लिख सका। ऐसी स्थिति में मेरे संपर्क में आए लोग आभिजात्य कैसे हो सकते थे, लेकिन लेखक केवल उन्हीं पात्रों और घटनाओं को अपने सृजन का आधार नहीं बनाता, जिन्हें वह जानता और भोगा होता है, वे पात्र और घटनाएँ भी उसकी सृजनात्मकता का आधार बनती हैं, जिनके विषय में उसने पढ़ा, सुना और गुना होता है।
- संग्रह की ‘हासिम का’, ‘खाकी वर्दी’, ‘हादसा’ कहानियाँ ऐसी ही कहानियाँ हैं। इन पात्रों के बारे में इतर आधार से जाना और इन्होंने इतना विचलित किया कि मैंने इनपर गंभीर चिंतन-मनन किया। ऐसे पात्रों की जीवन स्थितियों को लेखक आत्मसात् करता है, उसे जीता है और वह उसकी स्वानुभूति बन जाती है। पिछले लंबे समय से स्वानुभूति और सहानुभूति की चर्चा हो रही है, लेकिन सहानुभूति जैसा कुछ होता नहीं, क्योंकि जब लेखक दूसरे की पीड़ा को आत्मसात् करके किसी रचना को जन्म देता है, तब वह उसकी स्वानुभूति का हिस्सा बनकर ही जन्म लेती है।
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Roop Singh Chandel Ki Lokpriya Kahaniyan by Roopsingh Chandel (Author)
- आलोचकों ने माना है कि मैं हाशिए पर पड़े पात्रों का लेखक हूँ। यह सच है। मेरी अधिकांश कहानियाँ ऐसे ही पात्रों को केंद्र में रखकर लिखी गई हैं। यहाँ एक बार पुनः स्पष्ट कर दूँ कि मेरी कहानियाँ हों या उपन्यास, मैंने अधिकांशतया उन्हीं पात्रों और घटनाओं को अपने सृजन का विषय बनाया, जो वास्तविक थे—जिन्हें मैंने जाना-पहचाना। यहाँ मैं मुख्य पात्रों की बात कर रहा हूँ।
- कथा को विकास देने के लिए कुछ काल्पनिक पात्रों और स्थितियों का सृजन अपरिहार्य होता है। मेरा स्वयं का जीवन बहुत ही संघर्षपूर्ण रहा और आज भी किसी-न-किसी रूप में संघर्ष ने पीछा नहीं छोड़ा। स्थितियाँ बदलती रहीं, संघर्ष के स्वरूप बदलते रहे, लेकिन वह किसी-न-किसी रूप में मेरे साथ रहा। संघर्ष यदि तोड़ता है तो वह शक्ति भी देता है और मैंने सदैव उससे शक्ति अर्जित की तभी इतना सब लिख सका। ऐसी स्थिति में मेरे संपर्क में आए लोग आभिजात्य कैसे हो सकते थे, लेकिन लेखक केवल उन्हीं पात्रों और घटनाओं को अपने सृजन का आधार नहीं बनाता, जिन्हें वह जानता और भोगा होता है, वे पात्र और घटनाएँ भी उसकी सृजनात्मकता का आधार बनती हैं, जिनके विषय में उसने पढ़ा, सुना और गुना होता है।
- संग्रह की ‘हासिम का’, ‘खाकी वर्दी’, ‘हादसा’ कहानियाँ ऐसी ही कहानियाँ हैं। इन पात्रों के बारे में इतर आधार से जाना और इन्होंने इतना विचलित किया कि मैंने इनपर गंभीर चिंतन-मनन किया। ऐसे पात्रों की जीवन स्थितियों को लेखक आत्मसात् करता है, उसे जीता है और वह उसकी स्वानुभूति बन जाती है। पिछले लंबे समय से स्वानुभूति और सहानुभूति की चर्चा हो रही है, लेकिन सहानुभूति जैसा कुछ होता नहीं, क्योंकि जब लेखक दूसरे की पीड़ा को आत्मसात् करके किसी रचना को जन्म देता है, तब वह उसकी स्वानुभूति का हिस्सा बनकर ही जन्म लेती है।
9 - Kamleshwar Ki Lokpriya Kahaniyan / कमलेश्वर की लोकप्रिय कहानियाँ
9 - Kamleshwar Ki Lokpriya Kahaniyan / कमलेश्वर की लोकप्रिय कहानियाँ
ISBN - 9789390900794
Kamleshwar Ki Lokpriya Kahaniyan by Kamleshwar (Author)
- मन्नूजी की कहानियों में से कुछ चुनिंदा कहानियाँ इस संग्रह में संकलित हैं, जिसमें उनकी 1957 में प्रकाशित पहली कहानी ‘मैं हार गई’ से लेकर 2013 में प्रकाशित उनकी कहानी ‘गोपाल को किसने मारा?’ भी शामिल हैं। दोनों कहानियाँ स्त्री से इतर उनके बड़े सामाजिक सरोकारों को दरशाती हैं और उनके उपन्यास ‘महाभोज’ की पृष्ठभूमि को भी छूकर गुजरती हैं।
- मन्नूजी की पहली प्रकाशित कहानी ‘मैं हार गई’ में भ्रष्ट राजनीति के माहौल में एक रचनाकार की प्रतिबद्धता के साथ-साथ उसके कुछ न कर सकने की अक्षमता की सशक्त कहानी है। कहानी में कथा एक साथ कई स्तरों पर चलती है; जो हो रहा है और जो होना चाहिए के बीच तालमेल बिठाने में भाषा और शिल्प की बुनावट अपने में बेजोड़ है। मन्नूजी की कहानियों का
- कैनवास बहुत व्यापक है और इसकी विराटता में शिल्प लगातार परिपक्व होता गया है। उनकी कहानियों में व्यंग्य की धार तो उनकी शुरुआती कहानियों से ही दिखाई देने लगती है, पर कालांतर में यह धार बहुत पैनी और बेबाक होती गई है।
- मन्नू भंडारी का छह दशकों का रचनात्मक सफर इन कहानियों के आलोक में देखा जा सकता है। उनके समय, उनके परिवेश और सामाजिक स्थितियों के बरक्स मन्नू भंडारी की अधिकांश कहानियाँ घरेलू स्थितियों, पारिवारिक विडंबनाओं, पुरुष के सामंती स्वरूप, समय के साथ बदलती सामाजिक स्थितियों में व्यक्ति के अकेले होने और अपने इच्छित प्राप्य तक न पहुँच पाने की मनोदशा की सशक्त कहानियाँ हैं। हम सब जानते हैं कि स्त्री का भीतरी घरेलू ‘स्पेस’ पुरुष के बाहरी व्यापक ‘स्पेस’ के मुकाबले छोटा है। इस छोटे स्पेस में होने के बावजूद लेखिका का कथानक के चुनाव और उसके निर्वाह का अपना एक व्यापक और विश्लेषणात्मक नजरिया है, जो स्त्री की विशिष्ट संवेदनात्मक दृष्टि और लेखक की ईमानदार निगाह से जुड़ा है।
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Kamleshwar Ki Lokpriya Kahaniyan by Kamleshwar (Author)
- मन्नूजी की कहानियों में से कुछ चुनिंदा कहानियाँ इस संग्रह में संकलित हैं, जिसमें उनकी 1957 में प्रकाशित पहली कहानी ‘मैं हार गई’ से लेकर 2013 में प्रकाशित उनकी कहानी ‘गोपाल को किसने मारा?’ भी शामिल हैं। दोनों कहानियाँ स्त्री से इतर उनके बड़े सामाजिक सरोकारों को दरशाती हैं और उनके उपन्यास ‘महाभोज’ की पृष्ठभूमि को भी छूकर गुजरती हैं।
- मन्नूजी की पहली प्रकाशित कहानी ‘मैं हार गई’ में भ्रष्ट राजनीति के माहौल में एक रचनाकार की प्रतिबद्धता के साथ-साथ उसके कुछ न कर सकने की अक्षमता की सशक्त कहानी है। कहानी में कथा एक साथ कई स्तरों पर चलती है; जो हो रहा है और जो होना चाहिए के बीच तालमेल बिठाने में भाषा और शिल्प की बुनावट अपने में बेजोड़ है। मन्नूजी की कहानियों का
- कैनवास बहुत व्यापक है और इसकी विराटता में शिल्प लगातार परिपक्व होता गया है। उनकी कहानियों में व्यंग्य की धार तो उनकी शुरुआती कहानियों से ही दिखाई देने लगती है, पर कालांतर में यह धार बहुत पैनी और बेबाक होती गई है।
- मन्नू भंडारी का छह दशकों का रचनात्मक सफर इन कहानियों के आलोक में देखा जा सकता है। उनके समय, उनके परिवेश और सामाजिक स्थितियों के बरक्स मन्नू भंडारी की अधिकांश कहानियाँ घरेलू स्थितियों, पारिवारिक विडंबनाओं, पुरुष के सामंती स्वरूप, समय के साथ बदलती सामाजिक स्थितियों में व्यक्ति के अकेले होने और अपने इच्छित प्राप्य तक न पहुँच पाने की मनोदशा की सशक्त कहानियाँ हैं। हम सब जानते हैं कि स्त्री का भीतरी घरेलू ‘स्पेस’ पुरुष के बाहरी व्यापक ‘स्पेस’ के मुकाबले छोटा है। इस छोटे स्पेस में होने के बावजूद लेखिका का कथानक के चुनाव और उसके निर्वाह का अपना एक व्यापक और विश्लेषणात्मक नजरिया है, जो स्त्री की विशिष्ट संवेदनात्मक दृष्टि और लेखक की ईमानदार निगाह से जुड़ा है।
10 - Mannu Bhandari Ki Lokpriya Kahaniyan / मन्नू भंडारी की लोकप्रिय कहानियाँ
10 - Mannu Bhandari Ki Lokpriya Kahaniyan / मन्नू भंडारी की लोकप्रिय कहानियाँ
Mannu Bhandari Ki Lokpriya Kahaniyan by Mannu Bhandari (Author)
- मन्नूजी की कहानियों में से कुछ चुनिंदा कहानियाँ इस संग्रह में संकलित हैं, जिसमें उनकी 1957 में प्रकाशित पहली कहानी ‘मैं हार गई’ से लेकर 2013 में प्रकाशित उनकी कहानी ‘गोपाल को किसने मारा?’ भी शामिल हैं। दोनों कहानियाँ स्त्री से इतर उनके बड़े सामाजिक सरोकारों को दरशाती हैं और उनके उपन्यास ‘महाभोज’ की पृष्ठभूमि को भी छूकर गुजरती हैं।
- मन्नूजी की पहली प्रकाशित कहानी ‘मैं हार गई’ में भ्रष्ट राजनीति के माहौल में एक रचनाकार की प्रतिबद्धता के साथ-साथ उसके कुछ न कर सकने की अक्षमता की सशक्त कहानी है। कहानी में कथा एक साथ कई स्तरों पर चलती है; जो हो रहा है और जो होना चाहिए के बीच तालमेल बिठाने में भाषा और शिल्प की बुनावट अपने में बेजोड़ है। मन्नूजी की कहानियों का
- कैनवास बहुत व्यापक है और इसकी विराटता में शिल्प लगातार परिपक्व होता गया है। उनकी कहानियों में व्यंग्य की धार तो उनकी शुरुआती कहानियों से ही दिखाई देने लगती है, पर कालांतर में यह धार बहुत पैनी और बेबाक होती गई है।
- मन्नू भंडारी का छह दशकों का रचनात्मक सफर इन कहानियों के आलोक में देखा जा सकता है। उनके समय, उनके परिवेश और सामाजिक स्थितियों के बरक्स मन्नू भंडारी की अधिकांश कहानियाँ घरेलू स्थितियों, पारिवारिक विडंबनाओं, पुरुष के सामंती स्वरूप, समय के साथ बदलती सामाजिक स्थितियों में व्यक्ति के अकेले होने और अपने इच्छित प्राप्य तक न पहुँच पाने की मनोदशा की सशक्त कहानियाँ हैं। हम सब जानते हैं कि स्त्री का भीतरी घरेलू ‘स्पेस’ पुरुष के बाहरी व्यापक ‘स्पेस’ के मुकाबले छोटा है। इस छोटे स्पेस में होने के बावजूद लेखिका का कथानक के चुनाव और उसके निर्वाह का अपना एक व्यापक और विश्लेषणात्मक नजरिया है, जो स्त्री की विशिष्ट संवेदनात्मक दृष्टि और लेखक की ईमानदार निगाह से जुड़ा है।
---------------------------------------------------------------------------------------------------------11 - Shailesh Matiyani Ki Lokpriya Kahaniyan / शैलेश मटियानी की लोकप्रिय कहानियाँ
11 - Shailesh Matiyani Ki Lokpriya Kahaniyan / शैलेश मटियानी की लोकप्रिय कहानियाँ
Shailesh Matiyani Ki Lokpriya Kahaniyan by Shailesh Matiyani (Author)
- मटियानीजी ने लेखक होना स्वयं तय किया। वे आत्मनिर्णय का अधिकार सदैव अपने हाथ में रखना चाहते थे। स्त्री उनके यहाँ बड़े ही महत्त्वपूर्ण रूप में उपस्थित है। वह एक जरूरी पुर्जे की तरह है, सामाजिक स्थितियों के बीच, किंतु विवश होकर भी उसका निकुंठ रूप आकर्षित करता है। यदि इस दृष्टि से देखें तो ‘शैलेश मटियानी की लोकप्रिय कहानियाँ’ में संगृहीत पहली ही कहानी ‘अर्धांगिनी’ एक विस्मरणीय रचना है।
- कोई पूछे कि हिंदी में पत्नी पर लिखी सर्वश्रेष्ठ कहानी कौन सी है? तो मैं निस्संकोच ‘अर्धांगिनी’ का ही नाम लेना चाहूँगा।इस रचना में नैन सिंह सूबेदार छुट्टियों में घर वापस आते हैं। छुट्टी समाप्त होने पर वह वापस चले जाते हैं। कहने को तो यह कहानी इस एक ही पंक्ति में सिमट जाती है, किंतु सच बात यह है कि जिस छुअन भरी धड़कन से कथाकार ने इस एक पंक्ति को भरा-पूरा किया है, उससे यह एक उल्लेखनीय और बड़ी रचना हो गई है। मैंने इसे पहली बार सन् 1987 में पढ़ा था, जब यह जून के ‘हंस’ में प्रकाशित हुई थी।
- इस कहानी में नैन सिंह ‘सरप्राइज विजिट’ देकर पत्नी को अबूझी खुशी से भर देना चाहते हैं। बस इसके बाद गाँव पहुँचने तक पल-पल की धड़कन को इस तरह पकड़ा है कथाकार ने कि छुट्टियों पर जाने की कल्पना भर से चित्त के भटकने को जो सिलसिला शुरू होता है, उसका तार-तार वह खींच लेता है। घर पहुँचने की खुशी में यात्रा के दौरान नैन सिंह की विकलता देखते ही बनती है।
- पत्नी उनकी कल्पना में बसी भले हो, लेकिन साकार हो उठती है। जरा देखिए—“घर पहुँच चुकने के बाद तो उतना ध्यान नहीं रहता, लेकिन पहले यही कि सुबह के उजाले में क्या आलम रहता है और शाम के धुँधलके या रात के अँधेरे में क्या, उस स्थान का, जहाँ कि सूबेदारनी हुआ करती है। स्मृति के संसार में विचरण करने में जैसे और ज्यादा रूप पकड़ती जाती है। स्वभाव भी क्या पाया है। अकेले ही सारी सृष्टि चलाती जान पड़ती है। सृष्टि है भी कितनी। जितनी हमसे जुड़ी रहे।”
12 - Jainendra Kumar Ki Lokpriya Kahaniyan / जैनेंद्र कुमार की लोकप्रिय कहानियाँ
Jainendra Kumar Ki Lokpriya Kahaniyan by Jainendra Kumar (Author)
- जैनेन्द्र की कहानियों का संसार बड़ा है और उनकी लगभग सौ से अधिक कहानियों के पात्रों की संख्या उनके कुल उपन्यासों के पात्रों से अधिक है, उनमें एक रूपात्मकता नहीं है। मुझे कहानीकार जैनेन्द्र उपन्यासकार जैनेन्द्र से बड़े लगते हैं, क्योंकि उनकी संवेदना में वैविध्य है और पात्रों की दुनिया बड़ी है, यद्यपि अपनी कहानियों में भी जैनेन्द्र का उपन्यासकार तथा विचारक अनुपस्थित नहीं रहता।
- एक लेखक की रचनात्मकता विभिन्न विधाओं में बँटकर भी समग्रता में एक रूपात्मक तथा संश्लिष्ट होती है और वह एक नदी की विभिन्न धाराओं के रूप में बँटी होती है। जैनेन्द्र की कहानियों का संसार उनकी पहली कहानी ‘खेल’ से शुरू होता है और यह किसी नौसिखिए लेखक की कहानी प्रतीत नहीं होती। यह लेखक ने 22 वर्ष की आयु में लिखी थी। जैनेन्द्र अपने जीवन में गांधी के आत्मीय और विचारनिष्ठ रहे हैं, गांधी पर ‘अकालपुरुष गांधी’ पुस्तक भी लिखते हैं, लेकिन उनके कथा साहित्य में गांधी गायब हैं। प्रेमचंद समय-सापेक्ष हैं, जैनेन्द्र निरपेक्ष, और यह आद्योपांत दिखाई देता है।
- जैनेन्द्र में वात्सल्य भाव है, जो ‘खेल’ कहानी से ही प्रकट होता है। कहानी में गंगा किनारे रेत से भाड़ बनाने तथा तोड़ने का बच्चों का खेल दिखाते हैं। सुरबाला भाड़ बनाती है तो कुटी-परिवार की कल्पना करती है, पर मनोहर उसे लात मारकर तोड़ देता है तो वह रूठ जाती है, लेकिन जब मनोहर भाड़ बनाता है तो वह भी उसे तोड़कर पुरुष सत्ता को चुनौती देती है।
- सुरबाला का यह विद्रोही स्त्री-भाव तथा भाड़ के विध्वंस से अपने मान-मर्दन का मनोहर को उत्तर देने की शक्ति इसके बाद की रचनाओं में फिर दिखाई नहीं देती; वह आत्मपीड़ा एवं भाड़ की रक्षा में बदल जाती है। जैनेन्द्र सुरबाला जैसा स्त्री पात्र फिर पैदा नहीं कर पाए।
13 - Acharya Chatursen Ki Lokpriya Kahaniyan / आचार्य चतुरसेन की लोकप्रिय कहानियाँ
ISBN - 9789390923762
Acharya Chatursen Ki Lokpriya Kahaniyan by Acharya Chatursen (Author)
- प्रस्तुत कहानी-संग्रह में आचार्यजी की तेरह कहानियाँ हैं, जिनमें से आठ इतिहास प्रधान, तीन सामाजिक और शेष दो कहानियाँ इतिहास और राजनीति आधारित हैं। किसी भी कहानी से आशा की जाती है कि वह मनोरंजन करेगी।
- लेकिन इन कहानियों से मनोरंजन के साथ-साथ आपको और भी बहुत कुछ मिलता है—आप उसी काल में खो जाते हैं, जिस काल से कहानी का संबंध है। ‘सफेद कौआ’ में आप भारत में अंग्रेजों के आगमन से लेकर उनके यहाँ से विदा होने तक उसी काल और मनःस्थिति में रहते हैं; ‘लंबग्रीव’ में आप भारत के विभाजन की त्रासदी और उसके बाद के संस्कारविहीनता के काल में जीते हैं; ‘सोने की पत्नी’ का हाल देखकर आपके मन में अपने परिजनों के प्रति प्रेम का ज्वार उमड़ आएगा और धन की निस्सारता का भाव उत्पन्न होगा; ‘अंबपाली’ के साथ आप ढाई हजार वर्ष पहले की वैशाली में चले जाते हैं और सर्व सुख-सुविधासंपन्न परम रूपवती अंबपाली को बुद्ध की शरण में जाता देख वैभव की व्यर्थता का अनुभव करते हैं; ‘दे खुदा की राह पर’ आपको वैभवहीन अवस्था में भी शाही संस्कार के दर्शन होंगे; ‘दुखवा कासे कहूँ मोरी सजनी’ में भी आप पात्रों के दुःख से दुःखी होंगे; ‘नवाब ननकू’ के सभी पात्र सभ्य समाज के मानदंडों के अनुसार हीन-चरित्री होते हुए भी आपके प्यार के काबिल होंगे; ‘बड़ी बेगम’ से मिलकर आप उस सर्व शक्तिसंपन्न शहजादी की विवशता और पीड़ा को अनुभव करेंगे और राजपूत युवा के चरित्र की ऊँचाई से चमत्कृत होंगे; ‘आचार्य चाणक्य’ की छोटी सी घटना भी आपको तत्कालीन पाटलिपुत्र और युवा चाणक्य की एक झलक दिखा जाती है
- ‘हल्दी घाटी में’ आप राणा प्रताप के साथ युद्ध के मैदान में स्वयं को पाते हैं और राजपूती शौर्य से अभिभूत होते हैं; ‘सिंहवाहिनी’ की नायिका की चारित्रिक दृढ़ता और अजेय संकल्प-शीलता विमोहित करती है तथा एक पथच्युत् युवा को सही राह पर डाल देती है; ‘ककड़ी की कीमत’ आपको उस जमाने में ले जाकर खड़ा कर देती है, जब रईस होते थे और अपनी प्रतिष्ठा पर प्राणों का त्याग तक कर देते थे; ‘कहानी खत्म हो गई’ इस संग्रह की अंतिम कहानी है।
14 - Pakshdroha / पक्षद्रोह:
Pakshdroha by Pradeep Pandey (Author)
श्री प्रदीप पांडेय की सूक्ष्म और संवेदनशील दृष्टि अपने लेखकीय दायित्व का भरपूर निर्वाह करती है।
- देश की समकालीन आंतरिक विडंबनाओं में से एक है—घूसखोरी। इस बिंदु पर न तो कोई बड़ा वैचारिक आंदोलन खड़ा हुआ और न ही इस पर कोई सुचिंतित विमर्श हुआ। एक अनथक प्रयास का निरर्थक अंत उपन्यास की उपलब्धि है। यही वह आवश्यक प्रयत्न है, जो सोते हुए देश को घूसखोरी के विरुद्ध जाग्रत् करने का कार्य कर सकता है।
- रिश्वत के भ्रष्टाचार को शिष्टाचार कहनेवाले वे पिछलग्गुए आज भी मिल जाएँगे, जो अंग्रेज अधिकारियों के यहाँ डाली में फ्रूट्स के नीचे नोटों की गड्डियाँ ले जाते थे और बदले में अपने कार्य में सफलता प्राप्त करते थे। यह ब्रिटिश परंपरा आज तक जारी है। जब गोरों की जगह काली जेहनियत की अंग्रेजी आकर डट गई, तो सिस्टम के कर्ता-धर्ताओं ने फल-मिठाई जैसे व्यर्थ और दिखाऊ आवरण निरस्त करते हुए डायरेक्ट लेन-देन, रेट-लिस्ट और परसेंटेज के नए आधार-नियम बनाए। यह इतने परफेक्ट और लोकप्रिय हुए कि काका हाथरसी जैसे प्रसिद्ध कवि ने पकड़े गए रिश्वतखोरों को ठेठ सलाह देते हुए लिखा—
कह काका कवि, काँप रहा क्यों रिश्वत लेकर।
रिश्वत पकड़ी जाए, छूट जा रिश्वत देकर॥
- घूसखोरी जैसी महामारी पर केंद्रित यह संभवतः पहला उपन्यास है, जो मेरे पढ़ने में आया। यह लेखक श्री प्रदीप पांडेय की तीव्र और प्रभावी सामाजिक चेतना को भी रेखांकित करता है। अपने आसपास के वातावरण और उसमें व्याप्त विसंगतियों, विडंबनाओं, मिथ्याचार और घूसखोरी जैसी विकृतियों पर उनकी पैनी नजर है, जो उन्हें रचनात्मकता के लिए सामग्री उपलब्ध कराती है। इस उपन्यास में उठाए गए, उनके विषय से एक व्यापक और बृहत् सामाजिक चिंता रेखांकित होती है। वे ‘सोशल थिंकर’ की भूमिका में हैं। उपन्यास की सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि यह पाठक की उत्सुकता और जिज्ञासा बनाए रखता है। श्री प्रदीप पांडेय ने इसमें पकड़ बनाए रखी है। वे अपने विषय से कहीं भी भटकते नहीं हैं। यह उनके लेखन की विशेष सार्थकता है।
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15 - Ravindra Gita / रवींद्र गीता
Ravindra Gita by Ravindra Jain (Author)
रवीन्द्र जैनजी के गीत लेखन, संगीत सृजन और विलक्षण गायन प्रतिभा से पूरा विश्व परिचित है; परंतु उनकी साहित्य सृजन की प्रतिभा का आभास कम लोगों को ही है।
- ‘रवीन्द्र गीता’ भगवान् श्रीकृष्ण द्वारा उपदेशित मूल ‘श्रीमद्भगवद्गीता’ का सरल हिंदी पद्यानुवाद है। संस्कृत देवभाषा है। यह ऋषियों, मुनियों, मनीषियों की भाषा है। यद्यपि आज भी संस्कृत बोलने, समझने और व्यवहार में लानेवाले विद्वानों का अभाव नहीं है, तथापि वर्तमान में संस्कृत भाषा जनभाषा नहीं है। चूँकि ‘श्रीमद्भगवद्गीता’ जीवमात्र के लिए परम उपयोगी और संपूर्ण मानवता के लिए एक संविधानस्वरूप है, इसलिए इस महा उपयोगी महाग्रंथ का सरल और सर्वग्राही होना परम आवश्यक है।
- यद्यपि समय-समय पर मानव समाज के पथ प्रदर्शक बुद्धिजीवियों और धर्मप्रेमियों द्वारा इस महाग्रंथ का सरलीकरण करके उसे अगणित भाषाओं में अनूदित करके सर्वग्राही एवं सहज सुलभ कराने का प्रयास होता रहा है, जो उपलब्ध भी है और पर्याप्त भी; तथापि ज्ञान और ईश्वर की महिमा को कभी किसी मर्यादा, सीमा या पूर्णता में नहीं रखा जा सकता। कोई कितना भी कह जाए, पर बहुत कुछ कहने को बाकी रह जाता है।
- सरस्वती-पुत्र, परम संगीत-साधक, विलक्षण सृजन प्रतिभा के धनी रवीन्द्र जैनजी ने संगीत की सेवा से संपूर्ण विश्व में ईश्वर की महिमा और भक्ति-भावना को एक नई ऊँचाई, एक नया स्वरूप, एक नया आकर्षण दिया। ‘रामायण’, ‘श्रीकृष्णा’, ‘जय हनुमान’ जैसे अनेकानेक पौराणिक विषयों को ग्रंथों से निकालकर संगीत और स्वर से सजाकर जनसामान्य तक सरलता, व्यापकता और पूरी सफलता के साथ पहुँचाया।
- रवीन्द्र जैनजी के गीत लेखन, संगीत सृजन और विलक्षण गायन प्रतिभा से पूरा विश्व परिचित है; परंतु उनकी साहित्य सृजन की प्रतिभा का आभास कम लोगों को ही है। उनकी धर्मपत्नी, अर्धांगिनी और परम प्रशंसिका होने के कारण मेरे मन में सदैव यह परिकल्पना रहती थी कि जैसे रवीन्द्र जैनजी की फिल्में, उनके धारावाहिक, उनके एल्बम, उनके गीत आदि जन-जन तक पहुँच रहे हैं, लोकप्रिय हो रहे हैं, वैसे ही उनकी साहित्य रचना भी जन-जन तक पहुँचे। इसी संकल्प को मूर्त रूप देने के प्रयास में ‘रवीन्द्र रामायण’ का लेखन और गायन तो हुआ ही, साथ ही इसे ग्रंथ रूप में परिणत करके इसका प्रकाशन भी हुआ। अब इसी क्रम में मेरे संकल्प एवं पावन प्रयास को एक और बड़ी सफलता उपलब्ध हो रही है ‘रवीन्द्र गीता’ के प्रकाशन के रूप में।
16 - Parivaar-Kalyan / परिवार कल्याण
परिवार नियोजन जैसे महत्त्वपूर्ण, किंतु नीरस विषय पर काव्य-पुस्तिका रचकर डॉ. सुरेश ने बड़े साहस तथा महत्त्व का काम किया है। भारत के लिए परिवार नियोजन एक राष्ट्रीय आवश्यक है, ऐसी आवश्यकता जिसके बिना आर्थिक विकास की हमारी योजनाओं पर, फिर चाहे ये कितनी भी उपयोगी तथा फलदायी क्यों न हों, पानी फिर जाएगा। डॉ. सुरेश की काव्य-कला इस काम में हिस्सा बँटा रही है। अटल बिहारी वाजपेयी पद्य विधा में परिवार-कल्याण के सभी पहलुओं पर प्रकाश डालना एक टेढ़ी खीर थी, पर डॉ. प्रसाद ने अपनी सधी कलम और अनुभव से इस समस्या को इतना हृदयग्राही बनाया है कि पाठक का झुकाव बरबस परिवार नियोजन तथा परिवार-कल्याण की ओर हो जाता है। अतः मेरी शुभकामना है कि इस पद्य-प्रबंध को प्राप्त करने की ललक हर परिवार में हो, जिससे वह परिवार सुखी बन सके। —डॉ. ए.के.एन. सिन्हा
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17 - Swami Vivekananda Ka Yuva Jagran / स्वामी विवेकानंद का युवा जागरण
- भारत की आध्यात्मिकता तथा पश्चिम की विज्ञान और तकनीक—इन दोनों के समन्वय से आनेवाले समय में एक नए भारत का निर्माण होगा, इस दिशा में महान् युगप्रवर्तक स्वामी विवेकानंद ने जोर दिया। ऐसा करना है, तो युवा और आनेवाली पीढ़ी के मानस में परिवर्तन करना होगा।
- अगर भारत वर्ष का उत्थान करना है तो सबसे पहले भारत के विभिन्न घटकों पर विश्वास आवश्यक है—अपनी धरती पर, अपनी परंपराओं पर, अपनी संस्कृति पर, अपने गौरवशाली अतीत पर।
- यह एक प्रखर संदेश हमें स्वामीजी से प्राप्त होता है। एक बात उन्होंने हमेशा कही कि एक नया भारत खड़ा हो रहा है। स्वामी विवेकानंद ने युवकों से यह भी अपेक्षा रखी थी—क्या तुम्हें अपने देश से प्रेम है? यदि हाँ, तो आओ, हम लोग उच्चता और उन्नति के मार्ग पर प्रयत्नशील हों। पीछे मुडक़र, मत देखो।
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18 - Gandhi Aur Islam / गाँधी और इस्लाम
ISBN - 9789355620521
बीते कुछ दशकों में अरब देशों ने अतिवाद, हिंसा और आतंकवाद की सबसे घिनौनी और खौफनाक तसवीरों को देखा है, जिन्हें धर्म के नाम पर ध्रुवीकरण करनेवाली सोच और तकरीरों से भड़काया व उकसाया जाता है। ऐसे विचारों और तकरीरों से नफरत व खून-खराबा को बढ़ावा दिया जाता है, जिससे समाज बँट जाता है और सभ्यता की बुनियाद ही खतरे में पड़ जाती है। अगर ऐसी सोच का इलाज नहीं होगा, तो उनका अंतिम परिणाम खतरनाक बौद्धिक भटकाव के रूप में दिखेगा, जो सारे अरब देशों को निराशा, हताशा, संकट एवं विघटन के गर्त में धकेल देगा। इन मुश्किल और निराशाजनक परिस्थितियों के बीच लेखक महात्मा गांधी की बौद्धिक विरासत को फिर से याद करते हैं और उनके मुख्य संदेशों पर विचार करते हैं। उनके जीवन के विभिन्न चरणों के माध्यम से लेखक उन विरोधाभासी परिस्थितियों पर रोशनी डालते हैं, जो पहले से मौजूद थीं और जिनके कारण मुसलमानों की राय भारत से अलग हो गई, चाहे खिलाफत का मुद्दा हो या फिर गांधी के कुछ विचारों के प्रति मुसलमानों की आशंका। ‘गांधी और इस्लाम’ इस्लाम और मुस्लिम देशों के सामने आई चुनौतियों से गांधीवादी तरीके से निपटने का एक प्रयास है।
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19 - Asamiya Ki Lokpriya Kahaniyan / असमिया की लोकप्रिय कहानियाँ
ISBN - 9789355620224
भारतवर्ष में जो विविध भाषा-परिवारों की अनेक भाषाएँ आधुनिक काल में प्रचलित हैं, उनमें सभी में गद्य विधा सबसे पहले असमीया भाषा में ही शुरू हुई, अतः उसका गल्प-साहित्य भी काफी पुराना है। प्रस्तुत पुस्तक में आधुनिक काल की श्रेष्ठ कहानियों को संकलित किया गया है। इनमें असमीया भाषा के प्रतिष्ठित कथाकारों की लोकप्रिय कहानियाँ संकलित की गई हैं, जो अपने कथ्य, शिल्प, भाव, रोचकता, पठनीयता और सामाजिक सरोकारों केचलते पाठकों को बाँध लेंगी।
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20 - Bangla Ki Lokpriya Kahaniyan / बांग्ला की लोकप्रिय कहानियाँ
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21 - Sindhi Ki Lokpriya Kahaniyan / सिंधी की लोकप्रिय कहानियाँ
ISBN - 9789390923953
अखंड भारत के भूखंड सिंध की मिट्टी में पल्लवित-पुष्पित कहानियाँ ही प्रमुख रूप से सिंधी कहानियों की अविरल बहती धारा का उद्गम बिंदु है। सिंधु नदी की निर्मल जलधारा की भाँति ही सिंधी कहानियाँ भी अपनी गति के साथ निर्बाध रूप से बह रही हैं। भारत-विभाजन के भूचाल से सिंध का सामाजिक, सांस्कृतिक व भौगोलिक ताना-बाना तहस-नहस हो गया। सिंध का हिंदू समाज निर्वासित हो गया। निर्वासन की इस पीड़ा का प्रभाव सिंधी कहानियों के विकास की गति पर भी पड़ा। सिंधी समाज का हर वर्ग खंडित भारत भूखंड में ‘अटो, लटो, अझो’, अर्थात् रोटी, कपड़ा और मकान के चक्कर में फँस गया। इससे लेखक वर्ग भी अछूता न रहा, उनका जीवन भी प्रभावित हुआ। कुछ ही वर्षों के अंतराल में कहानी लेखन की गति फिर बढ़ने लगी। अब कहानी जगत् के विषय भी अनेक थे। सिंध की भूमि से प्रेम, बिछोह, यादें, दर्द, पीड़ा, सरकारी निर्णय की निंदा के साथ-साथ विस्थापितों के कैंप में रहने के अनुभव, स्थानीय समाज के व्यवहार, संबंध, जीवन की संवेदनाएँ, कोमल व कठोर भावनाएँ सिंधी लेखक की कहानियों के विषय बने हैं। सिंध की लोकप्रिय कहानियों के इस संकलन में विविध विषयों, शैलियों को समेटने का प्रयास किया गया है। सिंधी कहानियों का आसमान अति विशाल है; उसमें से कुछ रत्न यहाँ हिंदी पाठकों के लिए इस पुस्तक में संकलित किए गए हैं।
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22 - Ramesh Pokhriyal ‘Nishank’ Ki Lokpriya Kahaniyan / रमेश पोखरियाल 'निशंक' की लोकप्रिय कहानियाँ
रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ जी का साहित्य में एक महत्त्वपूर्ण स्थान है। समय और समाज की विद्रूपता को रेखांकित करना, विसंगतियों को उकेरना और विषमताओं पर कलम चलाना, निशंकजी के साहित्य सृजन का एक ऐसा पक्ष है, जो साहित्य को आमजन का साहित्य बनाता है। निशंकजी की कहानियों में समाहित यथार्थ एक बदली हुई रचनाशीलता का गहरा अहसास कराता है। ये कहानियाँ हर्ष, विषाद, सुख, दुःख, संघर्ष और जिजीविषा की कहानियाँ हैं। इन कहानियों में मानव-मन की उन अतल गहराइयों को नाप लेने की ताकत भी दिखलाई देती है, जिन्हें पाकर कोई भी लेखक ‘लेखक’ हो जाने का विश्वास सँजो सकता है। कोमल शरीर और सबल आत्मा की ये कहानियाँ पढ़कर विश्वास हो जाता है कि लेखक के पास केवल आज की भयावह दुनिया का सच ही नहीं है, बल्कि उस सच को काटने के लिए पैनी कलम भी है। इस संग्रह की कहानियाँ रचनाशीलता के तथाकथित साँचों को तोड़ते हुए अत्यंत सरल भाषा और वाक्य-विन्यास से भाषावादी तराश और पच्चीकारी को नकारती हैं। भाषा से अलग तंत्र, व्यवस्था, समाज और मनुष्य की निपट निरीहता को जितने सही संदर्भों में लेखक ने समझा है, उनकी वह चेतना और जागरूकता कहानी के स्तर पर हमें दंशित करती है और हमारी नागरिक तथा सामाजिक चेतना को बुरी तरह आहत भी करती है।
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