छत्तीसगढ़ की लोककथाएँ हिंदी में : परदेशी राम वर्मा हिंदी पुस्तक - कहानी | Chhattisgarh Ki Lok kathayen in Hindi : Pardeshi Ram Verma Hindi Book – Story (Kahani)
ढोल में पोल
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Chhattisgarh Ki Lok kathayen |
जंगल के लोग थे भोले-भाले। उनका राजा भी सरल था। राजा स्वयं पेड़ लगाता था। उनकी रक्षा करता था। मेहनत कर पेट भरता था। कोई भी पेड़ नहीं काटता था। पेड़ को देव की तरह पूजते थे और सिर्फ जरूरत भर की लकड़ी जंगल से ले जाते थे लोग। इसीलिए जंगल बढ़ रहा था।
मगर एक समय उस जंगल में भी गड़बड़ी होने लगी। पेड़ अचानक कम होने लगे। राजा दुःखी हो गया। उसने सबसे पूछा। कोई बता न पाता। उसकी चिंता देख जंगल के पेड़ दुःखी हो जाते, मगर कर कुछ नहीं सकते थे।
लकड़ी चोर रोज दो-एक पेड़ काट ले जाते, उन पेड़ों में एक था गुनगुन पेड़। वह गाता था, गुनगुनाता था। सब उसके लिए चिंता करते। सोचते-कहीं इसे न काट ले कोई, मगर काटनेवाला तो होता है दुष्ट। उसे गाने-बजाने से क्या मतलब ! उसे होता है लाभ से मतलब। अपने लाभ के लिए वह दूसरों को दुःख देता है। आखिर में स्वयं भी दुःख पाता है। दूसरों को सुख देनेवाला ही स्वयं सुखी होता है। जो भी दूसरों को ठगता है, एक दिन पकड़ा जाता है।
यही उस जंगल में हुआ। काटनेवाले की हिम्मत बढ़ती गई। वह रात को चुपके से काट ले जाता पेड़। उसका नाम था काटूराम। वह भी उस राजा के राज्य में ही रहता था। दिन को राजा की मालिश करता और रात को जंगल में पेड़ काट
लेता राजा को शक भी नहीं होता।
काटूराम बात भी अच्छी करता। राजा उसे बहुत मानता। काटूराम ने एक रात गुनगुन को काट लिया। पेड़ रो उठा, मगर काटूराम ने तुरंत उस पेड़ को ठिकाने लगा दिया। उसने सोचा, राजा को खुश करना चाहिए। सो पेड़ की लकड़ी से उसने बनाई ढोलक। ढोलक को उसने भेंट किया राजा को।
दरबार लगा था। नई ढोलक पर थाप दी कलाकार ने। ढोलक से निकले बोल
'तेल लगाकर सुबह और शाम, बना रहा है अपना काम। बैरी है यह काटूराम, काट रहा है पेड़ तमाम।'
राजा को आश्चर्य हुआ। थाप मारते ही ऐसी आवाज आने लगी। काटूराम वहीं खड़ा था दरबार में। वह डर गया।
राजा ने कहा, "फिर से दो जी थाप। यह कैसी अनहोनी हो रही है। ढोल खोल रहा है पोल ! बड़ी अच्छी बात है।" फिर पड़ी थाप ढोल पर। ढोल ने फिर कहा
'पोल खोलनेवाला ढोल, बोल रहा है सच्चे बोल। काटूराम भाई काटूराम, करो न जंगल को बदनाम।'
अब तो काटूराम थर-थर काँपने लगा। राजा ने कहा, “इसे पकड़ लो। यह है हत्यारा। पेड़ हमारे भाई-बंधु हैं। पेड़ हमें देते हैं छाया। दवा, फल और सारे सुख देते हैं पेड़। उन्हें यह काटता है। इसे जीने का अधिकार नहीं।"
काटूराम ने रोते हुए कहा, “मालिक, माफ करो। मैं लालच में अंधा हो गया था।"
राजा ने कहा, "हम कौन होते हैं माफ करनेवाले। जिसे तुमने काटा है, वह बताए कि तुम्हें माफ करें कि नहीं।" राजा ने फिर कहा, "लगाओ जी एक थाप और पूछो कि इसे क्या सजा दें।"
थाप लगने पर ढोल ने कहा'एक तरीका है अब बाकी,
राजा को ढोल की बात अच्छी लगी। काटूराम ने उस दिन से तेल लगाना छोड़ दिया। पेड़ लगाने लगा काटूराम। उसकी देखा-देखी दूसरे लोग भी पेड़ लगाने लगे
और पेड़ों के साथी कहलाने लगे। जंगल बढ़ता गया। उस राजा की कहानी जंगल के लोग सुनाते हैं। ढोल बजाकर गाते हैं। गीतों में राजा और जंगल की बातें होती हैं। राजा के वंशज जंगल को बचाकर रख सके, इसलिए हम जंगल देख पाते हैं।
काटूराम ने जीवन भर पेड़ लगाए, मगर गीतों में वह आज भी 'काटूराम' ही कहलाता है। पेड़ काटने का कलंक है भी भारी। ढोल ने तो कर दिया माफ, मगर उसकी बदनामी कम नहीं हुई, बल्कि चारों ओर फैल गई। काटूराम बनता था चालाक। सोचता था, तेल लगाकर काम बना लूँगा, मगर खुल गई पोल। ढोल देकर पोल छुपाना चाहता था, लेकिन पोल तो खोल दी उसी ढोल ने। तब से ही यह मुहावरा बन गया है, 'ढोल की पोल'।
ISBN - 9789355210319
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