हिमाचल प्रदेश की लोककथाएँ हिंदी में : आशु फुल्ल हिंदी पुस्तक - कहानी

हिमाचल प्रदेश  की लोककथाएँ हिंदी में : आशु फुल्ल   हिंदी पुस्तक - कहानी | Himachal Pradesh Ki Lok kathayen in Hindi : Ashu Phull  Hindi Book – Story (Kahani)


सृष्टि के आरंभ में संसार में कुछ भी नहीं था। सब जगह अंधकार फैला हुआ था।
न तो आकाश था, न धरती ही। जब धरती ही नहीं थी तो समुद्र, नदियाँ, पेड़पौधे और जीव-जंतु कहाँ से होते? बस चारों तरफ धुआँ ही धुआँ फैला हुआ था। अचानक इस धुएँ में से एक विशाल अंडा पैदा हुआ, जो सारे ब्रह्मांड में फैल गया। या यों कहें कि यह विराट् अंडा जहाँ तक फैला, वह ब्रह्मांड कहलाया।
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हिमाचल प्रदेश  की लोककथाएँ



उड़ते-उड़ते इसमें इतनी प्रचंड गरमी पैदा हुई कि यह अपने आप ही दो भागों में बँट गया। इसका एक भाग आकाश बना और दूसरा धरती। धरती वाले अंडे से एक महान् पुरुष ने जन्म लिया, जिसे 'परमात्मा' कहा गया। परमात्मा के अंगों से अनेक देवताओं ने जन्म लिया। उसके सिर से ब्रह्मा पैदा हुए। दाईं भुजा से विष्णु और बाईं भुजा से शिवजी पैदा हुए। उस विराट् पुरुष की साँसों से वायु, पसीने से जल और समुद्र पैदा हुए। वह परमात्मा सर्वत्र छाया हुआ था, इसलिए उसे परमेश्वर कहा गया है। परमेश्वर के नेत्रों से सूर्य-चंद्रमा और तारे उत्पन्न हुए। समुद्र जल से विशाल भाप और झंझावात पैदा हुए, जिससे धरती पर मूसलधार वर्षा होने लगी।

कुछ ही दिनों में धरती के तल पर भिन्न-भिन्न प्रकार के पेड़-पौधे और वनस्पतियाँ पैदा हुईं। धरती पर रंग-बिरंगे फूल खिलने लगे। उन पर रंग-बिरंगी तितलियाँ फुदकने लगीं। पंछी डाल-डाल पर कलरव करने लगे। समुद्र से धरती पर रेंगनेवाले जंतु घूमने लगे। लाखों प्रकार के कीट-पतंगे ऋतुचक्र के साथ पैदा होने लगे।
परंतु अभी भी मनुष्य पैदा नहीं हुआ था। परमेश्वर मनुष्य को अपने जैसा बनाना चाहते थे। पहले उसने मनुष्य का रूप बनाने के लिए एक सोने की आदम मूर्ति बनाई, फिर उसमें नाक, कान, मुँह आदि लगाकर जान डाली। परंतु वह मूर्ति सख्त थी, हिल-डुल नहीं सकती थी। तब परमेश्वर ने चाँदी, ताँबे और लोहे की मानव मूर्तियाँ बनाईं, परंतु वे भी कठोर थीं और हिल-डुल नहीं सकती थीं।

अब परमेश्वर बहुत चिंतित हुए। एक दिन वे निराश होकर भटकते हुए एक पीपल के पेड़ के नीचे बैठ गए। तीव्र गरमी थी, उनके शरीर से पसीना बह रहा था। उनके कान के पीछे खुजली हुई। उन्होंने खुजली मिटाने को उस कान पर हाथ फेरा। उनके हाथ में पसीने का मैल आ गया। उन्होंने बगल के नीचे भी हाथ फेरा । इसी प्रकार सारे शरीर पर पसीने से मैल निकालकर उन्होंने मिट्टी के पुतले को इस पसीने की मैल से जोड़ डाला। मिट्टी-पसीने से यह मनुष्य की मूर्ति अच्छी प्रकार जुड़ गई। यह अन्य मूर्तियों से नर्म थी

और लचकदार भी। तब परमेश्वर ने इस मूर्ति में जान डाल दी। मनुष्य की मूर्ति चलनेफिरने लगी और मुँह से शब्द भी निकालने लगी। परमेश्वर बहुत खुश हुए।

परमेश्वर ने उस मानव मूर्ति को बिल्कुल अपने अनुरूप बनाया था। यह तेजी से धरती पर इधर-उधर दौड़ सकती थी। इसके सभी अंग काम कर रहे थे। विशेषकर हाथ, पाँव और मुँह । फिर इनके अतिरिक्त ईश्वर ने इसमें विशेष बुद्धि भी डाल दी, जो अन्य जंतुओं से श्रेष्ठ थी। बुद्धि की ताकत से मनुष्य सभी प्राणियों पर राज कर सकता था। उन्होंने मनुष्य के अंदर चंचल मन भी डाल दिया। मनुष्य जीवधारियों में श्रेष्ठ रचना बन गई थी। वह सब प्राणियों में अजेय था।

परंतु यह क्या? यह मनुष्य तो किसी को कुछ समझता ही न था! सबको मार डालने को तत्पर रहता था। अब ईश्वर डरे, उन्हें शंका हुई कि यदि यह मनुष्य लंबी उम्र जीएगा तो सभी प्राणियों को मार देगा, मनुष्य में ईश्वर के बराबर अहंकार आ गया था। परंतु ईश्वर ने मनुष्य में जो मन डाला था, वह बहुत चंचल था। इसलिए ईश्वर ने उसका व्यंग्य से नाम रखा-मन। मन की परीक्षा लेनी चाही। उन्होंने उसे पुकार-"माण्हू ओ माण्हू ..... हू..... हू....."

मनुष्य ने फूहड़ता से सुना। "रे आगे गोटा पीछे तू।" परमेश्वर ने क्रोध में फटकार दी।

जिसका मतलब था कि 'जब तू मरेगा तो तेरे आगे सुलगता गोटा (उपला) श्मशान तक तेरे साथ चलेगा और पीछे तेरी मृत देह होगी।' परमेश्वर ने सोचा कि मनुष्य प्रेम की भाषा ही बोलेगा-समझेगा, पर ऐसा नहीं हुआ। उसमें अहंकार भरा था। उसने अहंकार से आवाज सुनी थी। यदि मनुष्य शिष्टाचार से सुनता

"हाँ जी ई।" तब ईश्वर ने आशीर्वाद देना था"जीयो लाखों बरस जी"

परंतु मनुष्य की उदंडता के कारण उसे जन्म-मृत्यु का वरदान मिला। इस प्रकार लाखों बरसों से मनुष्य जन्म-मृत्यु के बंधन में बँधा हुआ है और कर्मों का फल भुगत रहा है।


Title - हिमाचल प्रदेश की लोककथाएं ISBN - 9789355210579 Author - आशु फुल्ल / Ashu Phull To Buy - https://www.amazon.in/dp/9355210574/ To Read Himachal Pradesh Ki Lok kathayen Full Book in hindi



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