मध्य प्रदेश की लोककथाएँ हिंदी में : वसंत निर्गुण हिंदी पुस्तक - कहानी

मध्य प्रदेश की लोककथाएँ हिंदी में : वसंत निर्गुण हिंदी पुस्तक - कहानी | Madhya Pradesh Ki Lok kathayen in Hindi : Vasant Nirgune Hindi Book – Story (Kahani)


संस्कार

[बच्चों में संस्कार माता-पिता द्वारा बचपन से ही डाले जाते हैं। बचपन निकल जाने के बाद फिर मनुष्य संस्कार बड़ी मुश्किल से सीखता है। अन्यथा वह जीवन भर कोरा-का-कोरा रह जाता है। संस्कार अनुशासन सिखाते हैं। अच्छे संस्कार वाली बहू ने ससुराल में आकर इस बात को शिद्दत से देखा और अपनी बौद्धिक चातुरी से सास, ससुर एवं पति को संस्कारवान बना दिया।]

नासी नगर में एक सेठ रहता था। भगवान् की कृपा से उसके यहाँ एक । पुत्र-रत्न हुआ। पुत्र बड़ा हुआ, विवाह के लायक हो गया। वक्त पर उसका विवाह कर दिया। सेठ की कपड़े की दूकान थी। दोनों पिता-पुत्र दूकान को सँभालते थे। सेठानी और पुत्र-वधू दोनों घर का कार्य करती थीं। और एक नौकर था, वह उनकी सेवा में रहता था।

lok katha in hindi,मध्य प्रदेश  की लोककथाएं,भारत की लोक कथाएं,Hindi books,प्राचीन लोककथाएँ,
मध्य प्रदेश  की लोककथाएं



एक दिन एक साधु उनके यहाँ भिक्षा माँगने आया। उस वक्त सेठानी सो रही थीं। उसने अपनी बहू से कहा, 'बहू, जाओ, उस साधु को एक मुट्ठी अनाज दे दो।' बहू अनाज की मुट्ठी देने गई, तब साधु देखकर बोला, 'क्यों बेटी, तुम्हारी उम्र कितनी है?' बहू बोली, 'पच्चीस वर्ष की हूँ महाराज। आपके पति की?' बहू बोली, 'पाँच वर्ष ।' 'सास की?' 'दो वर्ष ।' 'और ससुरजी की?' बहू बोली, 'ससुरजी तो अभी पलने में झूल रहे हैं।' इतनी बात सुनकर साधु चला गया।

यह बात सास सोई-सोई सुन रही थी, उसको गुस्सा आया और जल्दी से उठकर नौकर से कहा, 'जा उस साधु को बुलाकर लेकर आ।' साधु आया। नौकर को कहा, 'दूकान पर से दोनों बाप-बेटे को बुलाकर ला।' सेठजी और बेटा दोनों दूकान से आ गए। सेठानी ने साधु महाराज से कहा, 'ये तो मेरे पति हैं और यह  मेरा बेटा है। यह मैं हूँ और यह मेरी बहू है। अब महाराज, तुम यह बताओ कि मेरी बहू ने कहा वह सत्य है ? या सामने खड़े ये सत्य हैं ?' साधु पूर्ण ज्ञानी था, वह बोला, 'माताराम, जो मैं देख रहा हूँ, उसमें भी सत्य है और आपकी बहू ने कहा, उसमें भी सत्यता है।' सेठानी बोली, 'महाराज, मैं देख रही हूँ, उसमें तो सत्यता है। पर उसने कहा, वह मैं कैसे स्वीकार करूँ कि इसमें भी सत्यता है?' महाराज ने कहा, 'इसका उत्तर तो आपकी बहू ही देगी।'

बहू बोली, 'महाराज, जब मैं अपने पिता के घर पैदा हुई थी, तब पाँच वर्ष तक तो मुझमें अक्ल ही नहीं थी। उसके बाद में ईश्वर को पहचानने लगी। पाँच वर्ष पहले मेरा विवाह हुआ, तब यहाँ भगवान् को कोई जानता भी नहीं था। मेरे विवाह के बाद ही मेरे पति भगवान का नाम लेने लगे, देव-दर्शन करने लगे, इसलिए इनकी उम्र पाँच वर्ष की हुई। मेरी सास दो वर्ष से मंदिर जाने लगीं, कथावार्ता सुनने लगीं, इससे इनकी उम्र दो वर्ष की हुई। मेरे ससुरजी तो अभी भगवान् को जानते ही नहीं हैं, इसलिए वे पालने में झूल रहे हैं।'

इस कथा का यह सार है कि किसी भी परिवार में बचपन से अच्छे संस्कार हों, ईश्वर के नाम का ज्ञान हो, वही परिवार सुखी रह सकता है।


ISBN - 9789355210326 Author - वसंत निर्गुण / Vasant Nirgune To Buy - https://www.amazon.in/dp/9355210329/ To Read Madhya Pradesh Ki Lok kathayen Full Book in Hindi


एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ