हिंदू धर्म की धरोहर भारतीय संस्कृति | Hindu Dharma ki Dharohar Bhartiya Sanskriti

हिंदू धर्म की धरोहर भारतीय संस्कृति

Hindu Dharma ki Dharohar Bhartiya Sanskriti

लेखक संजय राय 'शेरपुरिया' की पुस्तक हिंदू धर्म की धरोहर भारतीय संस्कृति को प्रभात प्रकाशन द्वारा प्रकाशित किया गया हैं । 

Hindu Religion Books ,Hindu Dharm ki Dharohar Bhartiya Sanskriti
Hindu Dharm ki Dharohar Bhartiya Sanskriti


"‘हिंदू धर्म की धरोहरः भारतीय संस्कृति’ यह शीर्षक स्वयं में इस पुस्तक का समग्र परिचय करवा रहा है। सनातन हिंदू धर्म क्या है और किस प्रकार से यह भारतीय संस्कृति की अमूल्य निधि के रूप में निरंतर क्रियाशील है, यही तथ्य इस पुस्तक के आधार तत्व हैं। यज्ञ, हवन, शंख, पद्म, गाय, त्रिशूल, मंदिर, देवस्थान जैसे शब्द सनातन हिंदू वैदिक संस्कृति में ही हैं। ये केवल शब्द ही नहीं हैं बल्कि इन शब्दों के उच्चारण में ही ऐसा ध्वनित होता है कि जीवन और जीवन का रहस्य क्या है। हमारे देवी, देवता और धार्मिक प्रतीक क्या हैं? कैसे हैं? कितने महत्त्वपूर्ण हैं? क्यों हैं? स्वाभाविक है कि जिस प्रकार से समाज बदल रहा है और विश्व पटल पर अनेकानेक उपासना पद्धतियाँ जन्म ले रही हैं, ऐसे परिवेश में किसी को भी यदि हिंदू संस्कृति को जानना और समझना है तो संजय राय ‘शेरपुरिया’ की इस पुस्तक को अवश्य पढ़ना चाहिए। जिस विशिष्टता से इस पुस्तक में सनातन प्रतीकों को मोतियों की माला में पिरोया गया है, वह अद्भुत है। भारतीयता, संस्कृति और हिंदू विरासत को समझने के लिए इस पुस्तक में सभी प्रमुख तथ्य, तत्त्व और प्रतीक उपस्थित हैं। यह पुस्तक एक ऐसी कुंजिका है जो भावी पीढ़ी को अपने मूल से जोड़ने और हिंदू संस्कृति को समझने में सक्षम भूमिका का निर्वहन करेगी। सनातन धर्म और भारतीय संस्कृति का वैशिष्ट्य और निरंतरता बताती पठनीय पुस्तक।

भारतीय संस्कृति

जब हम भारतीय संस्कृति के बारे में लिखते और पढ़ते हैं, तब भारतीय संस्कृति

के अनुसार सबसे पहले हमें परमात्मा को वंदन एवं उसका ध्यान करना चाहिए -

जन्माद्यस्य यतोड़न्वयादितरतशचार्थेश्वभिग्नः

स्वराट, तेने ब्रह्म हृदा य आदिकवये मुह्यन्ति यत्सुरयः।

तेजोवारीमृदांम यथा विनिमयो यत्र विसर्गेडमृषा,

धाम्ना स्वेन सदा निरस्तकुहकं सत्यं परं धीमहि॥

अर्थात् “जिससे इस जगत् की सृष्टि, स्थिति और विलय होता है, जो समस्त पदार्थों में स्थित है, जो अस्तित्वविहीन पदार्थों से अलग है, जो जड़ नहीं अपितु चेतन है, जो परतंत्र नहीं, परंतु स्वयं प्रकाश है, जो ब्रह्मा अथवा हिरण्यगर्भ नहीं, अपितु अपने संकल्प मात्र से ही जो वेदज्ञान को देनेवाला है, जिसे जानने के लिए बड़े-बड़े मनीषी और विद्वान् भ्रमित हो जाते हैं, जैसे सूर्य रश्मियों में जल का, जल में स्थल का और स्थल में जल का भ्रम हो जाता है, वैसे ही, जिसमें यह त्रिगुणी-जाग्रत्, स्वप्न और सुषुप्ति सृष्टि मिथ्या होने पर भी वस्तुतः सत्य प्रतीत होती है, उस स्वयं प्रकाश तथा सर्वथा माया से परिपूर्ण होते हुए भी उससे मुक्त रहनेवाले परम सत्यस्वरूप परमात्मा को हम नमन करते हैं एवं उसका ध्यान करते हैं।"

भारतीय संस्कृति विश्व की प्राचीन संस्कृतियों में से एक है, जो व्यक्ति, समाज और राष्ट्र के जीवन का संचय कर उसे पल्लवित एवं पुष्पित फलयुक्त बनानेवाली अमृत स्रोतस्विनी चिरप्रवाहिता सरिता है। भारतीय संस्कृति का महत्त्व इसलिए है कि उनका मुख्य आधार धर्म और अध्यात्म है, जिसके कारण उसमें दृढ़ता और विश्वास की नींव है। भारत का इतिहास एक गौरवशाली इतिहास है, जहाँ पर वेद-उपनिषद्

भगवद्गीता-पुराण के द्वारा मनुष्य जाति को दी गई जीवन प्रणाली जीने के पाठ की एक महत्त्वपूर्ण श्रृंखला है और इसलिए विश्व में अन्य कई संस्कृतियाँ लुप्त हो गई, नष्ट हो गईं, पर भारतीय संस्कृति आज भी अपने मुकाम पर विश्व का मार्गदर्शन करनेवाली संस्कृतियों में से एक है।
भारतीय संस्कृति विविधता में एकतावाली संस्कृति है, जहाँ पर हिंदू, सिख, इसाई, मुसलिम, जैन, बौद्ध जैसे कई प्रकार के धर्मों का पालन करनेवाले अलग-अलग लोग और अलग-अलग प्रांत हैं, भाषाएँ भी भिन्न-भिन्न हैं। यह एक ही ऐसा देश है, जहाँ पर हर गाँव, प्रदेश और हर घर में भिन्न प्रकार के देवताओं की पूजा की जाती है। देखने में यह संस्कृति एक नहीं लगती, पर वास्तविक रूप से यह सब धर्मों और प्रणालियों का आधारस्तंभ ही है। समग्र देश में एक ही विचारधारा बनी हुई है और यह विचारधारा है 'कर्म' की विचारधारा। भगवद्गीता और वेद-उपनिषद् के विचारों से प्रभावित इस संस्कृति में कर्म को श्रेष्ठ माना जाता है। भाषा सबकी भले ही अलग हो, कपड़े अलग हों, धर्म अलग हों, पर विचारधारा का स्रोत एक ही है। शायद भारत ही एक ऐसा देश है, जहाँ पर लोग 'दूसरे' की चिंता करते हैं, सुख-दुःख में भागीदार बनते हैं और जब भी कोई मुश्किल आ जाए, तब सब साथ मिलकर उसका सामना करते हैं और उसका हल निकालते हैं।

भारतीय संस्कृति एक ऐसी वैभवशाली संस्कृति है, जिसमें भगवान् ने खुद दस अवतार लिये और हर अवतार के द्वारा समग्र मानव जीवन का उत्थान किया। राम और कृष्ण के विभिन्न विचारों के माध्यम से समाज में समय-समय पर विविधता आई और नैतिक मूल्यों का पदार्पण हुआ। वेद व्यास, वाल्मीकि, विश्वामित्र, पराशर, संदीपनी जैसे कई महान् ऋषियों का अवतरण हुआ, जिन्होंने घर-घर जाकर लोगों को जीवन जीने की प्रेरणा दी। ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद जैसे चार वैश्विक ग्रंथ,
भगवद्गीता-रामायण-महाभारत जैसे जीवन को उत्कृष्ट करनेवाले ग्रंथों की हारमाला, जीवन जीने के सही तरीके दिखानेवाले पुराण"यह सबका निर्माण भी इसी भूमि पर हुआ। ग्रंथों के माध्यम से योग और सूर्य उपासना, ध्यान और स्वाध्याय जैसी महत्त्वपूर्ण वैदिक प्रवृत्तियों का उद्गमस्थान भी यहाँ पर ही है, जो आज हजारों सालों के बाद भी समग्र विश्व का मार्गदर्शन करने की ताकत रखते हैं।

हमारी संस्कृति की यह एक खासियत है कि सिर्फ हजारों साल पहले ही ऐसी विभूतियों ने जन्म लिया था, ऐसा नहीं है, आज भी अगर 200 साल का इतिहास देखें तो एकनाथ, तुकाराम, रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद, महर्षि अरविंद, सत्यसाईं बाबा, पांडुरंग शास्त्रीजी, सहजानंद स्वामी, स्वामी दयानंद सरस्वती, गुरुनानक देव, महात्मा ज्योतिबा फुले, कबीरजी, चैतन्य महाप्रभु, जगद्गुरु शंकराचार्य, आचार्य विनोबा भावे, डॉ. हेडगेवार, जो अलग-अलग विचारों के माध्यम से विश्व का मार्गदर्शन करते आए हैं, ऐसी विभूतियों का जन्म भी यहीं भारत देश में ही हुआ। देश के लोगों को वीर रस सिखानेवाले योद्धा शिवाजी महाराज, राणा प्रताप, रानी लक्ष्मीबाई, बाजीराव पेशवा जैसे महान् व्यक्तियों का उद्भव स्थान भी यह भारत देश ही है। इतना ही नहीं, बल्कि नभग, नचिकेता और प्रह्लाद जैसे वीर बालकों का अवतरण भी यहीं पर हुआ। इसलिए तो हम सबको हमारी भारत भूमि और उसकी बेनमून संस्कृति हमेशा सर्वश्रेष्ठ लगती है। सुवर्ण नगरी लंका में रहते हए भी श्रीराम ने लक्ष्मण को एक बात कही थी, जो हृदयस्पर्शी है

नेयं स्वर्णपुरी लंका रोचते मम लक्ष्मण,

जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी।

अर्थात्, हे लक्ष्मण ! यह स्वर्णपुरी लंका मुझे अब अच्छी नहीं लगती। माँ और मातृभूमि स्वर्ग से भी बड़े होते हैं।


Sanjay Rai ‘Sherpuria

संजय राय ‘शेरपुरिया’ ने अपने जीवन के 30 महत्त्वपूर्ण साल एक बड़े उद्यमी बनने के अपने सपने को साकार करने में बिताए, आज वह एक सामाजिक उद्यमी बनकर समाज के सामने खड़े है। वैसे तो उनका सामाजिक कार्यों को करने का इतिहास 2001 के गुजरात में आए भयावह भूकंप से ही शुरू हो गया था और धीरे-धीरे ‘जीवन-प्रभात’ से लेकर अनगिनत मानवीय कार्यों में उनका महत्त्वपूर्ण योगदान रहा। अपने जन्मस्थान गाजीपुर जिले में पिछले साल से उनकी ‘मेरा रोजगार’ एवं ‘आत्मनिर्भर भारतीय’ की यात्रा शुरू हुई, जहाँ पर किसानों को अद्यतन तकनीक के माध्यम से उनकी आय को दुगुना करने का कार्य संपन्न हो रहा है। कोरोना की दूसरी लहर में सरकारी अस्पतालों में हो रही ऑक्सीजन की कमी को दूर कर ‘ऑक्सीजन मैन’ और श्मशान में हो रही लकडि़यों की कमी को ‘लकड़ी बैंक’ बनाकर पूरा किया तथा ‘लकड़ी मैन’ का सम्मान पाया। ‘हर साँस की आस’ बनकर गाजीपुर जिले में सेवा के कार्य किए। वह संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्य (एस.डी.जी. चौपाल) के ‘नेशनल ब्रांड एंबेसेडर’ हैं।



Title - हिंदू धर्म की धरोहर : भारतीय संस्कृति ISBN - 9789355212337 Author - संजय राय 'शेरपुरिया' / Sanjay Rai ‘Sherpuria’ To Buy - https://www.amazon.in/dp/935521233X/ To Read Hindu Dharma Ki Dharohar: Bharatiya Sanskriti Full Book in Hindi




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