केरल की लोककथाएँ हिंदी में : डॉ. एस. थैंकमोनी अम्मा हिंदी पुस्तक - कहानी

केरल की लोककथाएँ हिंदी में : डॉ. एस. थैंकमोनी अम्मा  हिंदी पुस्तक - कहानी | Kerala Ki Lok kathayen in Hindi :   Dr. S. Thankamoni Amma Hindi Book – Story (Kahani)

मलयालम रामायणकार तुंचत्त् एषुत्तच्छन

केरल के भक्तकवियों में 
'अध्यात्मरामायण' के रचयिता तुंचत्त एषुत्तच्छ्वन का स्थान सर्वोपरि है। वे एक परम सात्त्विक, भक्त एवं ज्ञानी महात्मा थे। आदर के साथ केरलवासी उन्हें तुंचत्त आचार्य पुकारते हैं। उनकी ख्याति का यह श्लोक बहुत विख्यात है -
सानन्द रूपं सकल प्रबोधं
आनन्ददानामृत पारिजातं
मनुष्य पद्धेषु रवि स्वरूपं
प्रणौमि तुचन्तेषु आर्यपादं।
उस महान् भक्तकवि के जीवनवृत्त संबंधी अधिकांश बातें अभी अज्ञात हैं। ऐसा माना जाता है कि 'तुंचन्परंपु' में उनका जन्म हुआ था। मलाबार जिले के पोन्नानी तालुके में, तिरूर रेलवे स्टेशन से एक मील की दूरी पर तृक्कंटियूर नामक गाँव स्थित है। उस गाँव में एक प्रसिद्ध शिव मंदिर है। उस मंदिर के पश्चिमी ओर 'तुंचनपरंपु' नामक स्थान है। वहाँ के एक पुराने घराने में एषुत्तच्छान का जन्म हुआ था। कवि के आराधकों ने सरकार की सहायता से आजकल वहाँ एक स्मृति मंदिर स्थापित किया है। अब भी लोग उस महात्मा के जन्मस्थान के प्रति सम्मान का भाव रखते हैं तथा उस स्थान को परम पुनीत समझते हैं। अब भी विजयदशमी के दिन केरलवासी अपने बच्चों को तुंचनपरंपु ले जाकर वहाँ की पुण्यभूमि में बिठाकर विद्या का श्रीगणेश करने को अतीव मंगलकारी मानते हैं। कोई-कोई तुंचनपरंपु से रेत ले आते हैं और उस पुनीत रेत में अपने बच्चों को वर्णमाला लिखवाकर विद्यारंभ का मंगलकार्य निभाते हैं। तुंचनपरंपु में कुचलने का एक बड़ा सा पुराना पेड़ खड़ा है। लोगों का यही विश्वास है कि उसके नीचे बैठकर आचार्यवर ने अपनी कृतियों का प्रणयन किया है। बड़े ही आश्चर्य की बात है कि उस पेड़ के पत्ते सहज कड़आपन लिए हुए नहीं हैं।

मलयालम रामायणकार एषुत्तच्छन के पूर्व जन्म के बारे में एक कथा केरलीय जनता के बीच प्रचलित है। एक विष्णु भक्त ब्राह्मण के द्वारा ही 'अध्यात्मरामायणं' की रचना हुई थी। उस भक्तकवि के मन में यही आशा थी कि अपनी रचना में अन्य रामायणों की अपेक्षा भक्ति-भावना अधिक होने के कारण जनता इसे अधिक आदर के साथ देखेगी तथा यों इस कृति का अधिक प्रचार-प्रसार होगा। किंतु ग्रंथ के पूरे हो जाने पर उसका परिणाम उलटा ही निकला था। अपनी रचना की पूर्ति पर उसे लेकर वे कई विद्वानों के पास समीक्षा कराने के लिए गए। किंतु कोई भी विद्वान् उसकी समीक्षा के लिए तैयार नहीं हुआ। यही नहीं उन पर व्यंग्य बाण कसते हुए उन्होंने कहा, "जब ऋषिप्रोक्त अनेक रामायण हमारे सामने हैं, तब इस मूर्ख ने और एक ग्रंथ रचने का साहस क्यों कर दिखाया है ?" सभी विद्वानों ने उस रचना का अनादर किया और किसी ने भी उसकी समीक्षा नहीं की। विद्वानों के व्यंग्य बाण से परेशान उस भक्तकवि ने स्वदेश छोड़ दिया। घूमते-फिरते आखिर वे एक घोर वन पहुँच गए। संध्या समय निकट था। आसपास कहीं कोई बस्ती दिखाई नहीं दे रही थी। इसलिए रात में उसी वन में ठहरने का उन्होंने निर्णय लिया। उस घोर वन के मध्य में एक पगडंडी थी, जिसके पास एक तालाब और बरगद का चबूतरा दिखाई दिया। कवि ने तालाब में स्नान किया तथा तदनंतर पूजा-पाठ आदि करके उस चबूतरे पर अपनी कृति रामायण को सिर के नीचे रखकर लेट गए। भूख-प्यास और थकावट के मारे लेटते ही वे सो गए।

आधी रात बीत गई तो उधर एक तेजस्वी दिव्य पुरुष प्रकट हो गया। उस चबूतरे पर लेटे ब्राह्मण को देखकर उन्होंने पूछा, "अरे! आप कौन यहाँ लेटे हैं ?" यह प्रश्न सुनते ही ब्राह्मण उठ बैठे। दोनों के बीच बातचीत चली

दिव्य पुरुष, “अरे! आप कौन हैं ? इधर यों क्यों लेटे हैं ?"

ब्राह्मण, "मैं एक ब्राह्मण हूँ। घूमते-फिरते विधिवश इधर पहुँच गया हूँ। आस-पास कोई बस्ती नहीं दिखाई दी तो यहीं विश्राम किया।"

दिव्य पुरुष, “आपके पास जो ग्रंथ पड़ा है, वह कौन सा है?" ब्राह्मण, "मैं बताऊँ तो आप भी मेरी हँसी उड़ाएँगे।" दिव्य पुरुष, "नहीं-नहीं, अरे, ऐसा कदापि नहीं होगा। बताइए तो, सुन लूँ।"

ब्राह्मण ने उस दिव्य पुरुष से सारी बातें बता दीं। तुरंत दिव्य पुरुष ने उनसे कहा, "आप इसकी चिंता से तनिक भी व्यथित न होवें। मैं आपको एक उपाय बता दूंगा। आप ऐसा करेंगे तो इस ग्रंथ का बड़ा आदर सम्मान होगा और इसका प्रचार भी होगा। आगामी शिवरात्रि के दिन आप इस ग्रंथ को लेकर सीधे गोकर्ण जाएँ। शाम की वेला में उधर के पूर्वी छोर पर जाकर खड़े हो जाएँ तो असंख्य लोगों की भीड़ में एक तेजस्वी ब्राह्मण आते हुए मिलेंगे। उनके पीछे चार कुत्तों को भी आप देखेंगे। उस तेजस्वी ब्राह्मण के हाथों में यह ग्रंथ सौंप दें और सारी बातें बता दें। आपकी समस्या को हल करने का उपाय वे जता देंगे। यदि वे पूछे कि यह उपाय किसने बताया तो कुछ भी मत कहना।" इतना कहते हुए वह दिव्य पुरुष तुरंत अप्रत्यक्ष हो गए।

दिव्य पुरुष की बातें सुनकर ब्राह्मण के आनंद का ठिकाना ही न रहा। प्रात:काल उठकर वे उधर से निकल पड़े। एक-एक देश होते हुए अंततः शिवरात्रि के दिन वे गोकर्ण पहुँच गए। संध्या समय हो गया। तभी उन्होंने पाया कि दिव्य पुरुष के कहे अनुसार ही एक तेजस्वी ब्राह्मण उस ओर आ रहा है। तुरंत उन्होंने अपने हाथ में रखे ग्रंथ को उनके हाथों सौंप दिया और सारी बातें कह सुनाईं। तब उस तेजस्वी ब्राह्मण ने पूछा, "यह ग्रंथ मुझे सौंप देने को किसने कहा है ?" ग्रंथकर्ता ब्राह्मण एकदम मौन रहे। तो तेजस्वी ब्राह्मण ने कहा, "जाने दीजिए, कहने की आवश्यकता नहीं। मैं सबकुछ समझ गया। जिन्होंने आपको यह उपदेश दिया, वे एक गंधर्व हैं। इस प्रकार जो छल उन्होंने किया है, उसके लिए मैं उनको शाप देता हूँ। वे एक शूद्र के रूप में इस पृथ्वी पर जन्म लें।" यों शाप देकर उन्होंने अपने हाथ की कमंडलु से थोड़ा सा जल लेकर ग्रंथ पर छिड़क दिया और ग्रंथ को उसके रचयिता के हाथों में लौटाकर कहा, “अब आप इस ग्रंथ को ले जाइए। आपकी सारी व्यथा दूर हो जाएगी। यही नहीं, इस ग्रंथ के कारण आपका आदर-सत्कार सब कहीं होगा।" इतना कहकर वह तेजस्वी ब्राह्मण मंदिर के अंदर चले गए।

इस घटना के बाद सारे लोग 'अध्यात्म रामायण' का पठन और पारायण बड़ी श्रद्धा के साथ करने लगे और ऋषिप्रोक्त रामायण की अपेक्षा उसका अधिक प्रचार भी होने लगा।

अध्यात्म रामायण के रचयिता की ख्याति पाने का उचित उपाय सुझानेवाले गंधर्व शापवश शूद्र होकर तुंचत्त् एषुत्तच्छन' के नाम से जन्म ले गए। अन्य रामायणों की अपेक्षा अध्यात्म रामायण पर एषुत्तच्छन की इतनी बड़ी आस्था रखने तथा उसी के आधार पर अपनी निजी शुक-गीत शैली में मलयालम में 'आध्यात्म रामायण' की रचना कर लेने का कारण, उस ग्रंथ से उनका जन्मजन्मांतर संबंध माना जाता है।

गोकण्र्ध पर शिवरात्रि के दिन चार कुत्तों के साथ जो तेजस्वी ब्राह्मण पधारे थे वे सचमुच ऋषिश्रेष्ठ वेदव्यास थे। उनके साथ जो चार कुत्ते थे वे चार वेद थे। जो भी हो, तुचत् एषुत्तच्छन द्वारा शुकगीत शैली में विरचित 'अध्यात्म रामायण' केरलीय जनता का कंठहार ही है। मलयालियों के लिए सर्वप्रिय रामायण यही 'अध्यात्मरामायणं' है। हिंदी में जिस प्रकार गोस्वामी तुलसीदास कृत 'रामचरितमानस' अथवा 'तुलसीदास रामायण' की प्रतिष्ठा है, उसी प्रकार मलयालम में एषुत्तच्छन कृत 'आध्यात्म रामायणं' की प्रतिष्ठा है।


Title - केरल की लोककथाएं ISBN - 9789355210289 Author - एस. थैंकमोनी अम्मा / S. Thankamoni Amma To Buy - https://www.amazon.in/dp/9355210280/

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