The power of positive thinking book in hindi - सकारात्मक सोच की शक्ति) Hindi PDF – Norman Vincent Peal

Title: The Power of Positive Thinking book in Hindi 

  ( सकारात्मक सोच की शक्ति  पुस्तक इन  हिंदी )

 Sakaratmak Soch Ki Shakti सकारात्मक सोच की शक्ति The Power of Positive Thinking book in Hindi (द पावर ऑफ़ पॉजिटिव थिंकिंग) Book by Norman Vincent Peale  सकारात्मक सोच की शक्ति नार्मन विन्सेन्ट पील द्वारा लिखित हिंदी पीडीऍफ़ पुस्तक मोटिवेशनल 

  • ह पुस्तक आपको उन तरीकों और उदाहरणों को बताने के लिए लिखी गई है, जो आपको यह बताते हैं कि जीवन में किसी भी चीज से हार मानने की आवश्यकता नहीं है। यह आपको बताती है कि आपको भी मन की शांति, अच्छा स्वास्थ्य और ऐसी ऊर्जा प्राप्त हो सकती है, जिसके प्रवाह का कभी अंत न हो।
  • संक्षेप में कहें तो आपकी जिंदगी हर्षोल्लास और संतोष से भर सकती है। इसमें मुझे कोई शंका नहीं है, क्योंकि मैंने अनगिनत व्यक्तियों को सामान्य-सी प्रक्रिया की प्रणाली को सीखकर लागू करते हुए देखा है, जिससे उनके जीवन में पूर्वगामी लाभों को लाया गया है। ये अभिकथन, जो संभवत: असाधारण प्रतीत हो सकते हैं, वास्तव में व्यक्तिगत अनुभव की वास्तविकता पर आधारित हैं।
  • पूर्ण रूप से बात करें तो बहुत से लोग अपनी रोजाना की परेशानियों से हार जाते हैं।
  • वे शायद शिकायतों के बावजूद संघर्ष करते रहते हैं। उनके दिन ऐसी निराशा के साथ गुजरते हैं, जहाँ वे यह सोचकर रह जाते हैं कि जीवन ने उन्हें कितने बुरे अवसर प्रदान किए हैं! एक तरह से समझा जाए तो हो सकता है कि इस जीवन में ‘बुरे अवसर’ जैसी चीज हो; लेकिन यहाँ उत्साह और ऐसी प्रणाली भी होती है, जिसके द्वारा हम उन अवसरों को सुनिश्चित व नियंत्रित कर सकते हैं और यहाँ तक कि उन अवसरों का निर्धारण भी कर सकते हैं। यह बहुत दयनीय है कि मनुष्य समस्याओं, परवाह और मानव के इस संसार में मौजूद होने से जुड़ी समस्याओं से स्वयं को हरा देता है; जबकि यह पूर्ण रूप से अनावश्यक होता है।
  • यह कहते हुए मैं संभवतः संसार की त्रासदियों एवं कठिनाइयों को कम और अनसुना नहीं करता; पर न ही मैं उन्हें हावी होने का अनुमति देता हूँ। आप बाधाओं को अपने मन के उस बिंदु को नियंत्रित करने की अनुमति दे सकते हैं, जहाँ वे सबसे ऊँचे स्थान पर स्थित होती हैं और इस प्रकार, वे आपके सोचने के तरीके पर हावी हो जाती हैं।
  • यह सीखकर कि उन्हें दूर कैसे किया जाए, मानसिक रूप से उनके अधीन न रहना सीखकर और अपनी आध्यात्मिक शक्ति को अपने विचारों के अनुरूप चरणबद्ध कर आप उन बाधाओं से ऊपर उठ सकते हैं, जो आपको सामान्यतः पराजित करती हैं। मैं जिन तरीकों को रेखांकित करना चाहता हूँ, बाधाओं को सामान्यत: आपकी खुशियों व शांति को तबाह करने की अनुमति नहीं होगी। आपको तभी हारना चाहिए, जब आप हारना चाहते हैं। यह पुस्तक आपको सिखाती है कि कैसे आप अपनी ‘इच्छा-शक्ति’ को बढ़ाएँ।
  • इस पुस्तक का उद्देश्य बहुत ही सीधा और सरल है। यह किसी भी प्रकार की साहित्यिक उत्कृष्टता का दावा नहीं करती, न ही यह मेरी ओर से किए गए किसी प्रकार के असामान्य शोध को प्रमाणित करती है। यह सामान्य तौर पर एक व्यावहारिक, प्रत्यक्ष तौर पर किए गए कार्य एवं व्यक्तिगत सुधार की नियम-पुस्तिका है।
 

 

स्वयं पर विश्वास रखें

स्व यं पर विश्वास रखें! अपनी क्षमताओं पर विश्वास रखें! अपनी स्वयं की शक्ति

में बिना अभिमान के, लेकिन नियत आत्मविश्वास के आप सफल या आनंदित नहीं हो सकते; लेकिन दृढ़ आत्मविश्वास के साथ आप सफल अवश्य हो सकते हैं। अपर्याप्तता और हीनता की भावना आपकी आशाओं की पूर्ति में बाधा डालती है; लेकिन आत्मविश्वास आत्मानुभूति और कार्य-सिद्धि का कारण बनता है। इस मानसिक भावना के महत्त्व के कारण यह पुस्तक आपको स्वयं पर विश्वास बनाए रखने में मदद करेगी और आपकी अंदरूनी शक्ति को प्रकाशित करेगी।

The Power Of Positive Thinking book in hindi
The Power Of Positive Thinking

दयनीय अवस्था में जी रहे लोगों की संख्या का आभास करना भयानक साबित होता है, जो कि आमतौर पर हीन-भावना के नाम से जानी जानेवाली बीमारी के सताए होते हैं और इसके कारण दयनीय स्थिति में पहुँच चुके होते हैं; लेकिन आपको इन परेशानियों से और परेशान होने की जरूरत नहीं है। इस संबंध में जब उचित कदम उठाए जाएँ तो इससे छुटकारा पाया जा सकता है। आप अपने भीतर रचनात्मक आस्था विकसित कर सकते हैं-आस्था, जो कि तर्कसंगत होती है। शहर के एक सभागार में व्यापारियों के एक सम्मेलन में बातचीत करने के पश्चात् मैं लोगों को संबोधित करते हुए मंच पर था। तब एक व्यक्ति मेरे पास आया और मुझसे प्रबल ढंग से पूछा, "क्या मैं आपसे उस विषय पर बात कर सकता हूँ, जो मेरे लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है?" __मैंने उससे कुछ देर ठहरने को कहा, जब तक दूसरे लोग चले जाएँ। फिर हम मंच के पीछे चले गए और बैठ गए। "मुझे स्वयं पर बिल्कुल भी विश्वास नहीं है।" उसने निराश होते हुए कहा। "मुझमें बिल्कुल भी आत्मविश्वास नहीं है। मुझे नहीं लगता कि मैं इसे कर सकता हूँ। मैं बहुत ही हतोत्साहित और उदास हूँ।" बल्कि उसने शोकाकुल होते हुए कहा, "मैं करीबकरीब बरबाद हो चुका हूँ। मैं चालीस वर्ष का हूँ। मेरी जिंदगी ऐसी क्यों है? क्यों मुझमें आत्मविश्वास की कमी है? मैं हीन-भावना और आत्म-संदेह से उत्पीड़ित क्यों हूँ? आज मैंने आपके संभाषण को सुना, जिसमें आपने सकारात्मक सोच की शक्ति के बारे में बात की थी और मैं यह पूछना चाहता हूँ कि मैं स्वयं में थोड़ा आत्मविश्वास कैसे प्राप्त कर सकता हूँ?"
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"इसके लिए दो कदम उठाने होते हैं।" मैंने उत्तर दिया, "पहले यह पता लगाने की आवश्यकता होती है कि आपके भीतर शक्तिहीनता की भावना कैसे उत्पन्न हुई? इसके लिए बहुत से विश्लेषणों की आवश्यकता है और इसमें समय लगेगा। हमें हमारे भावात्मक जीवन की बुराइयों के बारे में पता लगाना होगा, जिस प्रकार एक चिकित्सक शारीरिक रूप से हुए नुकसान को परखता है। इन्हें तत्काल नहीं किया जा सकता, संभवत: हमारी आज की संक्षिप्त बातचीत में तो बिल्कुल नहीं, और इसमें एक स्थायी निष्कर्ष पर पहुँचने के लिए जाँच की आवश्यकता होगी। लेकिन आपकी इस वर्तमान समस्या को जड़ से उखाड़ने के लिए मैं आपको एक नुस्खा दूँगा, जिसे यदि आप इस्तेमाल करेंगे तो काम करेगा। "आप आज रात जैसे ही रास्तों पर चलें तो आप मेरे दिए गए वाक्यों को दोहराएँ। आप अपने बिस्तर पर जाने से पहले उन्हें कई बार दोहराएँ। जब आप कल जागें तो जागने से पहले उन्हें तीन बार दोहराएँ। अपने अपॉइंटमेंट पर जाने के लिए इन्हें तीन बार और दोहराएँ। इन्हें निष्ठा की भावना से करेंगे तो आपको परेशानियों से सामना करने के लिए पर्याप्त शक्ति और क्षमता प्राप्त होगी। तत्पश्चात् यदि आप चाहें तो हम आपकी मूल परेशानियों का विश्लेषण कर सकते हैं; लेकिन अभी हमें जो कुछ प्राप्त होगा, वह उस शोध में काम आएगा। आपको एक सूत्र प्रदान करता हूँ, जो आपके उपचार में एक बड़ा घटक साबित हो सकता है।" यह निम्न कथन है, जो मैंने उसे दिया-“मैं प्रभु यीशु द्वारा वे सभी चीजें कर सकता हूँ, जो मुझे सुदृढ़ बनाती हैं।" (फिलिपीयन 4:13) वह इन शब्दों से अपरिचित था, इसलिए मैंने उन्हें एक कार्ड्स पर लिख दिया और उसे तीन बार जोर-जोर से पढ़ने को कहा।

“मैं इस शहर में अपने जीवन के सबसे महत्त्वपूर्ण समझौते को करने के लिए आया हूँ।" उसने बताया, “यदि मैं सफल होता हूँ तो यह मेरे लिए सबकुछ होगा। यदि मैं असफल होता हूँ तो समझो, मैं बरबाद हो गया।"

मैंने सुझाव दिया कि वह थोड़ा सा सहज हो जाए, क्योंकि अभी कुछ भी तय नहीं

द पावर ऑफ पॉजिटिव थिंकिंग हुआ है। अगर वह सफल हुआ तो ठीक है, अगर नहीं हुआ तो कल उसके लिए एक नया दिन होगा।

"मुझे स्वयं पर बिल्कुल भी विश्वास नहीं है।" उसने निराश होते हुए कहा। "मुझमें बिल्कुल भी आत्मविश्वास नहीं है। मुझे नहीं लगता कि मैं इसे कर सकता हूँ। मैं बहुत ही हतोत्साहित और उदास हूँ।" बल्कि उसने शोकाकुल होते हुए कहा, "मैं करीबकरीब बरबाद हो चुका हूँ। मैं चालीस वर्ष का हूँ। मेरी जिंदगी ऐसी क्यों है? क्यों मुझमें आत्मविश्वास की कमी है? मैं हीन-भावना और आत्म-संदेह से उत्पीड़ित क्यों हूँ? आज मैंने आपके संभाषण को सुना, जिसमें आपने सकारात्मक सोच की शक्ति के बारे में बात की थी और मैं यह पूछना चाहता हूँ कि मैं स्वयं में थोड़ा आत्मविश्वास कैसे प्राप्त कर सकता हूँ?"

"इसके लिए दो कदम उठाने होते हैं।" मैंने उत्तर दिया, "पहले यह पता लगाने की आवश्यकता होती है कि आपके भीतर शक्तिहीनता की भावना कैसे उत्पन्न हुई? इसके लिए बहुत से विश्लेषणों की आवश्यकता है और इसमें समय लगेगा। हमें हमारे भावात्मक जीवन की बुराइयों के बारे में पता लगाना होगा, जिस प्रकार एक चिकित्सक शारीरिक रूप से हुए नुकसान को परखता है। इन्हें तत्काल नहीं किया जा सकता, संभवत: हमारी आज की संक्षिप्त बातचीत में तो बिल्कुल नहीं, और इसमें एक स्थायी निष्कर्ष पर पहुँचने के लिए जाँच की आवश्यकता होगी। लेकिन आपकी इस वर्तमान समस्या को जड़ से उखाड़ने के लिए मैं आपको एक नुस्खा दूँगा, जिसे यदि आप इस्तेमाल करेंगे तो काम करेगा।

"आप आज रात जैसे ही रास्तों पर चलें तो आप मेरे दिए गए वाक्यों को दोहराएँ। आप अपने बिस्तर पर जाने से पहले उन्हें कई बार दोहराएँ। जब आप कल जागें तो जागने से पहले उन्हें तीन बार दोहराएँ। अपने अपॉइंटमेंट पर जाने के लिए इन्हें तीन बार

और दोहराएँ। इन्हें निष्ठा की भावना से करेंगे तो आपको परेशानियों से सामना करने के लिए पर्याप्त शक्ति और क्षमता प्राप्त होगी। तत्पश्चात् यदि आप चाहें तो हम आपकी मूल परेशानियों का विश्लेषण कर सकते हैं; लेकिन अभी हमें जो कुछ प्राप्त होगा, वह उस शोध में काम आएगा। आपको एक सूत्र प्रदान करता हूँ, जो आपके उपचार में एक बड़ा घटक साबित हो सकता है।"

यह निम्न कथन है, जो मैंने उसे दिया-“मैं प्रभु यीशु द्वारा वे सभी चीजें कर सकता हूँ, जो मुझे सुदृढ़ बनाती हैं।" (फिलिपीयन 4:13) वह इन शब्दों से अपरिचित था, इसलिए मैंने उन्हें एक कार्ड्स पर लिख दिया और उसे तीन बार जोर-जोर से पढ़ने को कहा।

"अब मेरे परामर्श का अनुसरण करो। मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि सबकुछ ठीक हो जाएगा।"

वह जोर लगाकर उठा और कुछ देर के लिए चुपचाप खड़ा हो गया। फिर कुछ विचार करके कहा, "ठीक है डॉक्टर, ठीक है।"

मैंने उसको अपना कंधा सीधा करके रात के अंधेरे में वहाँ से जाते हुए देखा। वह बहुत दयनीय स्थिति में दिख रहा था। उस समय वह जिस प्रकार स्वयं को सँभालते हुए विलुप्त हुआ, उससे यह पता चल रहा था कि इस विचारधारा ने पहले से ही उसके मन में अपना काम कर दिया है।

तदंतर उसने मुझे सूचित किया कि इस सामान्य से नुस्खे ने 'उसे आश्चर्यजनक परिणाम दिए हैं' और वैसे 'यह अविश्वसनीय है कि 'बाइबल' के कुछ शब्दों ने एक व्यक्ति के लिए इतना कुछ किया!'

कुछ समय बाद उस व्यक्ति ने अपनी हीन-भावना की प्रवृत्ति के कारण का अध्ययन किया। उसे वैज्ञानिक सलाह और धार्मिक आस्था के प्रयोग द्वारा समझाया गया। उसे यह सिखाया गया कि आस्था कैसे रखी जाए? उसे कुछ विशेष निर्देशों का पालन करने के लिए कहा गया। (उन्हें इस अध्याय के अगले भाग में दिया गया है।) धीरे-धीरे उसने एक दृढ़ व स्थायी आत्मविश्वास प्राप्त कर लिया।

उसने कभी भी उस आश्चर्यचकित करनेवाली अभिव्यक्ति को व्यक्त करने से स्वयं को नहीं रोका, जो पहले चीजों के दूर होने के बजाय अब उनके स्वतः ही समीप चले आने के कारण उसे होती थी। उसका व्यक्तित्व नकारात्मकता के बजाय सकारात्मक दिशा में बढ़ता चला गया, जिससे कि वह सफलता से दूर होने के बजाय उसकी नई ऊँचाइयों को स्पर्श करे। उसे अब अपनी ताकत पर पूरा विश्वास हो गया था।

यहाँ पर हीन-भावना होने के बहुत से कारक हैं। यह केवल बचपन से सुने गए कुछ शब्द मात्र नहीं हैं। किसी कंपनी में एक उच्च पद पर आसीन एक कर्मचारी मेरे पास सलाह के लिए आया कि वह अपने अधीनस्थ एक युवा कर्मचारी को पदोन्नति देना चाहता है। लेकिन उसने बताया कि वह अपनी गोपनीय जानकारी को लेकर उस पर विश्वास नहीं कर सकता, "पर मुझे माफ करना, मैं उसे अपना प्रशासनिक सहायक बनाना चाहता हूँ, क्योंकि उसके पास सभी जरूरी योग्यताएँ हैं। लेकिन वह बहुत अधिक बोलता है, बिना इसकी परवाह किए कि कोई विषय कितना व्यक्तिगत और महत्त्वपूर्ण प्रवृत्ति का है। वह भेद खोलने से नहीं बचता।"

अपना विश्लेषण करते समय मैंने पाया कि वह सामान्यतः अपनी हीन भावना के कारण अधिक बोलता है। अपनी इस कमी की क्षतिपूर्ति के लिए वह अपनी जानकारी का प्रदर्शन बढ़-चढ़कर करता है, जिससे लोगों को अभिभूत कर सके।

द पावर ऑफ पॉजिटिव थिंकिंग हुआ है। अगर वह सफल हुआ तो ठीक है, अगर नहीं हुआ तो कल उसके लिए एक नया दिन होगा।


इससे आगे The power of positive thinking book in Hindi पढ़ने के लिए -


This is one of the best books for positive thinking


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Author - Norman Vincent Peale




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