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नई किताब 'ऑपरेशन खुखरी' अफ्रीका में भारतीय सेना के बहादुर मिशन की अनकही कहानी बताती है |
सितंबर 1999
मैं अभी हाल ही में उत्तर प्रदेश के झाँसी जिले में बेतवा नदी के तट पर बसे एक छोटे से शहर बबीना पहुँचा था। इससे पूर्व मैं जम्मू व कश्मीर में नियंत्रण रेखा (एल.ओ.सी.) से सटे ऊँचाईवाले इलाके तंगधार में तैनात था, जहाँ पर कम तीव्रतावाले संघर्ष बहुतायत में होते रहते थे। मैं सभी ऑपरेशनों को नियंत्रित करनेवाला ब्रिगेड मेजर था और मेरे काम में एल.ओ.सी. के उस पार होनेवाली भारी गोलीबारी, जो अकसर और बेहद तीव्र होती थी, का नियंत्रण करना भी शामिल था। हमारी ब्रिगेड पाकिस्तान में एक जेटी जैसी थी और हम लोगों को 'चटनी ब्रिगेड' कहकर बुलाया जाता था, क्योंकि पाकिस्तानी बंकरों को ऐसा लगता था कि वे जब चाहें, तब हमारी चटनी बना सकते हैं।
Operation Khukri Book In Hindi |
हम शमशाबारी पर्वत श्रृंखला के उस पार तैनात थे, जो आमतौर पर एल.ओ.सी. के लिए आधार रेखा मानी जाती थी। चूँकि आसपास की सभी चोटियों पर पाकिस्तानियों का कब्जा था और वे आसानी से हमें देख सकते थे, इसलिए हमारा ठिकाना बेहद जोखिम भरा था। संयोग से, सिर्फ हमारी ही ब्रिगेड इकलौती ऐसी ब्रिगेड थी, जो शमशाबारी पर्वत-श्रृंखला के उस पार तैनात थी और ऐसा प्रतीत होता था, जैसे मौत हर समय हमारे सिर पर मँडरा रही हो। कारगिल युद्ध जब अपने पूरे जोरों पर था, उस समय मैं वहाँ पर तैनात था और हमारे क्षेत्र में कारगिल ऑपरेशन की जवाबी प्रतिक्रिया की पूरी आशंका थी। मुझे याद है कि मैंने उस क्षेत्र में पूर्व की तीन बटालियनों के स्थान पर अतिरिक्त सैन्य सहायता के रूप में छह बटालियनों को तैनात किया था। इसके अलावा, मुझे बहुत अच्छे से याद है कि रिचमार' बटालियन के सहायक मुझसे वहाँ पर और सैनिकों को न भेजने की गुहार लगा रहे थे, क्योंकि बंकरों में खड़े होने तक की जगह नहीं बची थी।
मोटे तौर पर कहा जाए तो वे तीन साल ऊँचाईवाले क्षेत्र में बीते, जहाँ आतंकवादियों का मुकाबला करना और नियंत्रण रेखा पर होनेवाली गोलीबारी पर नियंत्रण रखना शामिल था, जिसके चलते एक मिनट की नींद लेना भी दूर के सपने जैसा हो गया था और आखिर में, कारगिल ऑपरेशन तो पराकाष्ठा ही था। इन सब घटनाओं ने बीते तीन वर्षों के समय को एक शानदार अनुभव में बदल दिया था, जिसने अंततः अपने आसपास की दुनिया को लेकर मेरे दृष्टिकोण को पूरी तरह से बदल दिया और वे यादें ताउम्र के लिए मेरी मोटे तौर पर कहा जाए तो जीवन-यात्रा में अंकित हो गईं। वे तीन साल ऊँचाईवाले जैसे व्यक्ति को जीवन में हर चीज की क्षेत्र में बीते, जहाँ कीमत चुकानी पड़ती है, वैसे ही इन तीन आतंकवादियों का मुकाबला वर्षों ने मेरे व्यक्तिगत जीवन पर भारी असर करना और नियंत्रण रेखा डाला।
मेरे हाथ कर्तव्य से बँधे हुए थे। मैंने पर होनेवाली गोलीबारी मिलनेवाले सभी आदेशों का पालन करने की पर नियंत्रण रखना शामिल शपथ ली थी, क्योंकि राष्ट्र सर्वोपरि होता था, जिसके चलते एक है-हमेशा और हर बार। वहीं दूसरी तरफ, मिनट की नींद लेना भी दूर मुझे अपने परिवार से दूर रहना था, जिसकी के सपने जैसा हो गया था |अपनी वेदना और पीड़ा थी। इसलिए उदासी और आखिर में, कारगिल की कुछ अंतहीन रातों और दिन के बाद ऑपरेशन तो पराकाष्ठा ही
हम इस बात की उम्मीद कर रहे थे कि हमें था। आखिरकार एक परिवार के रूप में बबीना में रहने का अवसर मिलेगा, जहाँ पर मेरी बटालियन 14 मेकैनाइज्ड इन्फैंट्री (16 जम्मू व कश्मीर राइफल्स) स्थित थी। मैं हमेशा से 'होइहि सोइ जो राम रचि राखा' वाली कहावत में दृढ़ विश्वास रखता आया हूँ। जीवन में आपके सामने न जाने कितनी सरल योजनाएँ आ सकती हैं; लेकिन आखिरकार, हमारे नियंत्रण से बाहर की ताकतें ही हमारे भविष्य की राह को निर्धारित करती हैं। ईश्वर क्या चाहते हैं, इसका इशारा बबीना में मेरे काम के पहले ही दिन सामने आ गया, जब सेना मुख्यालय से एक संकेत आया कि पश्चिम अफ्रीका के सिएरा लिओन में संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन में प्रतिनियुक्ति के लिए मुझे चुना गया है। सामान्य परिस्थितियों में यह आनंद और जश्न मनाने का 27 मौका होता, क्योंकि सभी सैन्यकर्मी ऐसे अवसर की तलाश में रहते हैं,
क्योंकि इसमें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी काबिलीयत दिखाने का मौका मिलता है और साथ ही डॉलरों में वेतन प्राप्त करने का अवसर भी होता है। किंतु इसके बावजूद इस संकेत को पढ़ते ही मेरा दिल डूब गया, क्योंकि मैं इस खबर को सुनते ही अपने परिवार द्वारा की जानेवाली प्रतिक्रिया के बारे में सोच रहा था। सच कहूँ तो पिछली शाम को ही मैंने अपनी चार साल की बेटी को उसकी माँ से कहते सुना था, "आशा है कि पापा अब हमें अकेला नहीं छोड़ेंगे।" अपनी बेटी की छोटी जिज्ञासु आँखों की कल्पना करते हुए मेरा गला सूख गया, इस तमाम बंदों से बेखबर जो यह पूछ रही थी कि क्या अब हम सब मेरे साथियों ने घर जाने से एक साथ रहेंगे? पापा उसके जन्मदिन और पहले अधिकारियों के मेस स्कूल के कार्यक्रमों में शामिल होंगे या नहीं? में एक गिलास बीयर पीने और उसके दिल की प्रत्येक धड़कन एक के लिए जोर डाला और सकारात्मक उत्तर की आशा लिये बैठी थी। मैं यह सोचते हुए सहमत इस तमाम द्वंद्वों से बेखबर मेरे साथियों हो गया कि ठंडी बीयर मेरे ने घर जाने से पहले अधिकारियों के मेस में आत्मविश्वास को बढ़ाएगी! एक गिलास बीयर पीने के लिए जोर डाला अधिकारियों के मेस में मैंने और मैं यह सोचते हुए सहमत हो गया कि अपने साथी अधिकारियों से ठंडी बीयर मेरे आत्मविश्वास को बढ़ाएगी! कहा कि आज की बीयर अधिकारियों के मेस में मैंने अपने साथी अधिकारियों से कहा कि आज की बीयर मेरी मेरी तरफ से; लेकिन मैंने तरफ से; लेकिन मैंने फैसला किया है कि मैं फैसला किया है कि मैं इस मिशन पर नहीं जाऊँगा। इस मिशन पर नहीं जाऊँगा। मेरे इस मिशन पर जाने से इनकार करते ही उनमें से किसी को उस काम के लिए नामित कर दिया जाएगा, क्योंकि हमारी मेकैनाइज्ड इन्फैंट्री कंपनी को हमारी अपनी ही बटालियन के किसी अधिकारी द्वारा निर्देशित किया जाना था। यह बटालियन के लिए गर्व का क्षण था और इसलिए इस खबर पर जश्न मनाना पूरी तरह से लाजिमी भी था।
घर वापस लौटते समय मैं इस बात पर विचार कर रहा था कि क्या मुझे अपने परिवार को इस खबर के बारे में बता देना चाहिए? आखिरकार, मैंने उन्हें इस बारे में कुछ नहीं बताया और ऐसा सिर्फ इसलिए, क्योंकि मैं इस विषय पर बात करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था; हालाँकि, मुझे यह जानकर बेहद आश्चर्य |
Operation Khukri book written by Major General Rajpal Punia & Damini Punia
ISBN - 978-9355620163
Author - Major General Rajpal Punia & Damini Punia
To Buy - https://www.amazon.in/dp/9355620160/
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