न कहने की कला || ‎ Prabhat Prakashan || ‎ 9789355213730

 

पहले मैं लोगों को खुश करने में ही लगा रहता था


मैं  लोगों को खुश करने से बाहर निकल रहा हूँ। अगर आपने मुझे हाई स्कूल या कॉलेज के दिनों में देखा होता तो आपको किसी भी प्रकार की कोई मदद की जरूरत नहीं होती। मैं हमेशा ही मदद के लिए तैयार रहता था। सिर्फ आपको मुझसे पूछना ही था। मैं अपनी सारी जरूरतों को किनारे रख आपकी सारी जरूरतों को पूरा करता।


‘हाँ’ कहने की मेरी यह आदत मेरी परिस्थितियों और कई कारणों के कारण बनी। हम उसे ‘भाग-2 : नहीं कहने के कारणों से संघर्ष’ में कवर करेंगे। अभी के लिए इतना ही कहना काफी है कि मैं सर्वोत्कृष्ट तरह से लोगों को खुश कर सकता हूँ।

पर मेरी हालत बहुत खराब थी।


हर बार जब भी मैं किसी को ‘हाँ’ बोलता था, तो ऐसा लगता था कि मैं कुछ सही कर रहा हूँ। मैं दूसरे व्यक्ति को खुश कर रहा था। अतः ऐसा निर्णय कैसे पछतावा करने योग्य हो सकता है?

दूसरों को हमेशा ‘हाँ’ कहनेवाली आवाज असल में खुद को ‘न’ कह रही थी। 


हर बार जब भी मुझे किसी के लिए कुछ करने को कहा जाता तो मैं खुद के बारे में सोचे बिना हमेशा ‘हाँ’ बोलता, इसलिए दूसरों की मदद के लिए मैं इतना लगा रहता था। पर हर रजामंदी के बाद मेरे भीतर एक असंतुष्टि बढ़ती जाती, जिससे मेरे भीतर कटुता व निराशा आ जाती। समय के साथ मैंने दूसरों की मदद के चक्कर में अपने शौक का त्याग करना शुरू कर दिया; जबकि मैं जानता था कि इससे मेरे भीतर असंतोष बढ़ता जा रहा है।

खुद को आरोपित करने के अलावा मेरे पास कुछ नहीं था।


एक पॉइंट में, मैंने यह निश्चित कर लिया कि मैंने बहुत कर लिया है। मैंने फिर दोस्तों की मदद करने की सारी प्रार्थनाओं को दरकिनार करना शुरू कर दिया; यहाँ तक कि मैंने हर प्रकार के अनुरोध को अस्वीकार करना शुरू कर दिया।

‘नहीं कहने की कला’ में आप क्या सीखेंगे

नहीं कहने की कला’ चार चरणों में आयोजित होती है। मेरे विचार से, हर भाग बहुत जरूरी है। जीवन का हर भाग सीखने का एक नया व महत्त्वपूर्ण हिस्सा होता है, जैसे कि अपनी सीमाएँ कैसे बाँधनी चाहिए और पूरे आत्मविश्वास एवं तरीके से बोलना चाहिए।


इसके आगे हर भाग पहले वाले भाग से बनता है। हर भाग में इसके तत्त्व बढ़ते जाते हैं और इससे इसकी आधारशिला में उनमें ताकत आती है, जो इसे फॉलो करते हैं।

जब आप ‘नहीं कहने की कला’ नामक पुस्तक पढ़ना पूरी कर लेंगे, तब आप दो महत्त्वपूर्ण चीजों को सीख जाएँगे। पहला, आपको यह पता है कि किसी भी अन्य व्यक्ति की अपील को मना करना कितना मुश्किल होगा; दूसरा, आप यह जानेंगे कि स्वयं को दोषी माने बिना आप इसे कैसे कर सकते हैं और इससे दूसरों के मन में आपके प्रति सम्मान और बढ़ जाएगा।…..


Read more:न कहने की कला









एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ