कर्नाटक की लोककथाएँ हिंदी में : प्रो. बी.वाई. ललिताम्बा हिंदी पुस्तक - कहानी | Karnataka Ki Lokkathayen in Hindi : Prof. B.Y. Lalithamba Hindi Book – Story (Kahani)
कर्नाटक प्रमुख रूप से प्रचीन मैसूर प्रांत; हैदराबाद-कर्नाटक जिला; उत्तर कर्नाटक/उत्तर कन्नड़ प्रदेश तथा दक्षिण कन्नड़ जिले में बँटा हुआ है।
कर्नाटक के चारों भागों में लोककथाओं का विपुल भंडार है। इस संग्रह में इन सबका प्रतिनिधित्व है। भूताराधम से संबंधित लोककथाएँ दक्षिण कन्नड़ जिले में खूब प्राप्त होती है। दक्षिण कन्नड़ जिले की तरह उत्तर कन्नड़ जिले की भी कई लोक-जीवन से जुड़ी कहानियाँ प्राप्त होती हैं। कारवार-गोकर्ण आदि की कहानियों पर कोंकण जिले का प्रभाव गहरा है। धारवाड़-हूली पर मराठी संस्कृति का भी प्रभाव है।
फिर प्राचीन मैसूर संस्थान पर महाराजा, राजघराने, भरतनाट्यम्, दशहरा, चामुंडी, पहाड़, महिषासुर, दुर्गा द्वारा राक्षस संस्कार आदि से जुड़ी लोकसंस्कृति का असर है।
इस संकलन में इन सभी क्षेत्रों में प्रचलित लोकजीवन का प्रतिनिधित्व करनेवाली कहानियाँ संकलित हैं।
कन्नड़ भाषा में लोक का समानवाची 'जन' शब्द है, जो हिंदी के लिए अपरिचित पर नहीं है। हिंदी में 'जन' जिस सामान्य 'लोक' के संदर्भ में प्रयुक्त होता है, कन्नड़ में भी उसी अर्थ में उसका प्रयोग होता है। इसके बावजूद उपर्युक्त अर्थ में कन्नड़ में 'जानपद' शब्द का इस्तेमाल होता है। 'जानपद' अंग्रेजी के Folk Literature का समानवाची शब्द है। हमारे यहाँ उसमें एक पर प्रत्यय भी जुड़ता है 'साहित्य'। 'पद'शब्द का अर्थ देता है, मगर इस संदर्भ में पद-गीत या कविता के अर्थ में संवेदित होता है। इस कारण संपूर्ण साहित्य के अर्थ में जानपद' होता है और साहित्य प्रकारों के विभेद में जनपद, जैसे-इस विशेषण के साथ संज्ञा कतेगलु (कहानियाँ); नाटकगलु-नाटक, गीतेगलु अथवा हाडुगलु-लोकगीतों के अर्थ में इस्तेमाल किया जाता है, हालाँकि पिछले कुछ दशकों में ही यह शब्द चलन में आया है। इस साहित्य का बहुत पुराना अस्तित्व है।
हम यहाँ लोककथाओं की चर्चा कर रहे हैं, तो कन्नड़ में कई प्रकार की लोककथाएँ मिलती हैं और ये बहुत पुरानी भी हैं।
संपूर्ण भारतीय साहित्य का अवलोकन करने पर हमारे यहाँ हर भाषा व बोली में पदगीत और कहानियाँ-कथाएँ प्रभूत मात्रा में उपलब्ध होती हैं। अंग्रेजी में जिस तरह Fairy Tales-परिकथाएँ उपलब्ध होती हैं। संस्कृत और प्राकृत भाषाओं में तथा अपभ्रंश में भी कई नीति-प्रधान कथाएँ लोकजीवन में और विभिन्न धर्माश्रित कथाएँ मिलती हैं।
रामायण और महाभारत में उपलब्ध होनेवाली उपकथाएँ लोक-जीवन से अर्थात् ग्रामीण, जंगल के निवासी-आदिवासी जीवन से संबद्ध हैं। मारीच, गुह, अंबा और अंबालिका की कहानी का उल्लेख यहाँ उदाहरण मात्र के लिए किया जा रहा है। जैन साहित्य में बड्डाराघम' नामक उन्नीस कथाओं का संकलन उपलब्ध होता है। अनुमानतः यह संकलन आठवीं या नौवीं शती का हो सकता है। उन कहानियों में से किसी कहानी को हमने इस संकलन में नहीं लिया है, फिर भी यह जैन लोक-जीवन से जुड़ी कहानियाँ हैं।
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