महाराष्ट्र की लोककथाएँ हिंदी में : दीपक हनुमंतराव जवान हिंदी पुस्तक - कहानी

महाराष्ट्र की लोककथाएँ हिंदी में : दीपक हनुमंतराव जवान हिंदी पुस्तक - कहानी  | Maharashtra Ki Lokkathayen in Hindi : Deepak Hanumantrao Jawane Hindi  Book – Story (Kahani) 

प्रत्येक राष्ट्र की अपनी एक अलग सांस्कृतिक पहचान होती है। राष्ट्र की इस सांस्कृतिक विविधता के माध्यम से ही राष्ट्र की अस्मिता का निर्माण होता है। यह विविधता सदियों से चली आ रही सांस्कृतिक विरासत और परंपरा से आकार लेती है। किसी भी देश की सांस्कृतिक अस्मिता उस देश के समाज की धारणाओं के माध्यम से अभिव्यक्त होती है। राष्ट्र की संस्कृति का दर्शन उस राष्ट्र के लोग कैसे रहते हैं, उनकी विचारधारा, उनकी मान्यताएँ कौन सी हैं, इसी के माध्यम से ही हो सकता है। इस संदर्भ में, यदि भारत के विभिन्न क्षेत्रों में प्रचलित रीति-रिवाजों, मान्यताओं आदि को देखते हैं, तो ऐसा प्रतीत होता है कि भारतीय मानसिकता का अवश्य ही एक विशेष निश्चित रूप है।

lok katha in hindi,भारत की लोक कथाएं,महाराष्ट्र की लोककथाएँ,Hindi books,प्राचीन लोककथाएँ,

महाराष्ट्र  की लोककथाएँ हिंदी में : दीपक हनुमंतराव जवान हिंदी पुस्तक - कहानी 


यदि हम भारत के सभी प्रांतों के समाज-जीवन में प्रचलित पारंपरिक रीति-रिवाजों और तीज-त्योहारों का अध्ययन करते हैं, तो ऐसा लगता है कि समाज कलात्मक आविष्कारों के माध्यम से अपनी मानसिक प्रतिक्रियाओं को प्रकट करता है। यदि खेत-खलिहान हरे-भरे हो जाते हैं, तो किसान नाचतागाता है। वह घर में समृद्धि आने पर रंगोलियाँ तथा दीवारों पर चित्र भी बनाता है। अर्थात् वह संगीत, नृत्य, नाटक, चित्रकला के माध्यम से अपनी मानसिक प्रतिक्रियाओं को व्यक्त करता है। जीवन की धारणा को व्यक्त करता है। यह उसकी मानसिकता का विशेष गुण है ।

महाराष्ट्र के संदर्भ में भी यही अनुभव आता है। यहाँ एक अनूठी संस्कृति, सांस्कृतिक वास्तविकता देखने को मिलती है। पारंपरिक लोककलाविष्कारों के माध्यम से महाराष्ट्र के सांस्कृतिक आशय और वास्तविकता का दर्शन होता है। प्रकृति और प्राणिमात्र के प्रति कृतज्ञता की अभिव्यक्ति, कृषि-जीवन के संदर्भ में होने वाली घटनाओं की मानसिक प्रतिक्रिया का प्रकटीकरण, सृष्टि की विभिन्न घटनाओं अपने तीज-त्योहारों में स्थान देना, इन सारी चीजों के माध्यम से हर प्रांत का सांस्कृतिक वास्तव हम देख सकते हैं।

'आहार निद्रा भय मैथुनं च' ये सभी प्राणिमात्र के जीवन की आवश्यकता होती हैं। अपितु मनुष्य अन्य जीवों से थोड़ा अलग होता है। इसे बुद्धि का वरदान मिला है और 'काव्यशास्त्रविनोदेन कालौ गच्छति धीमताम्' ऐसा भी कहा गया है। साहित्य की समीपता में जो काल व्यतीत होता है, वह मनुष्यप्राणी के जीवन का मौलिक अंग होता है। साहित्य का एक पहलू रंजन भी है। रंजन हेतु आधुनिक मानव ने जो नानाविध साधनों एवं संसाधनों का निर्माण किया है, उतनी विपुलता पुराने समय में नहीं थी। पुराने समय में कहानियाँ, गायन, तीज-त्योहार और उत्सव-ये रंजन का आधार बनते थे। कथाकथन यह सर्वप्रिय एवं सुलभ साधन होने के कारण मनोरंजन की दुनिया में उसका महत्त्वपूर्ण स्थान है।

घर में अलग छोटे बालक हैं तो उनको कहानियाँ सुनना बहुत प्रिय लगता है। वैसे कहानियाँ तो बड़े-बूढ़ों के मन को भी रिझाती और लुभाती हैं। ये कहानियाँ अगर कच्ची उम्र में सुनाई जाती हैं तो वह बालमन पर एक अक्षय और अमिट छाप अंकित करती है। संस्कार प्रदान करने में बचपन में सुनी कहानियों का विलक्षण योगदान रहता है। अनेक महनीय व्यक्तियों पर उनके बचपन में जो कुछ कहानियाँ उन्होंने सुनी थीं, उनका विशिष्ट संस्कार था, यह हमने पाया है। महाराष्ट्र में छत्रपति शिवाजी महाराज ने हिंदवी स्वराज्य की स्थापना की थी। उनके मन में साहस, धैर्य इत्यादि गुणों का जागरण रामायण और महाभारत ऐसे ग्रंथों की कहानियाँ, जो उनकी माता जिजाबाई ने सुनाई थीं, इस माध्यम से ही हुआ था, ऐसा माना जाता है। यह एक ही उदाहरण लोकजीवन में कथा और कहानियों का महत्त्व स्थापित करने में पर्याप्त है।

भूतदया, परोपकार, प्रामाणिकता, शौर्य, धैर्य, कृतज्ञता, उद्योगी वृत्ति ऐसे कई गुणों का बीजारोपण दादा-दादी की कहानियों के माध्यम से कई बालकों में हुआ और वह आगे चलकर देश के इतिहास में महान् पुरुष सिद्ध हुए थे। जन-मानस पर कहानियों की एक मोहिनी सी हो जाती है। इसलिए महाराष्ट्र की संत-परंपरा हम देखते हैं तो हमें पता चलता है कि संतों ने समाज को उपदेश करते समय कथा एवं कहानियों का आधार लिया था। महाराष्ट्र में वारकरी और के समय अन्य लोगों को वह कथा सुनाई जाती है। इस तरह से वह कथा एक लोकसमूह से अन्य लोकसमूह तक प्रवाहित होती रहती है। इस मौखिक परंपरा को मराठी में 'सांगोवांगी' कहा जाता है। इसे ही हम लोककथा के रूप में जानते हैं। महाराष्ट्र के देहात में ऐसी बहुत सी कहानियाँ आज भी प्रचलित हैं। ये लोककथाएँ सुरस हैं और उद्बोधक भी। रेडियो और टेलीविजन का प्रसार होने के पूर्व जब बहुत से स्थानों पर बिजली का भी अभाव था, तब किसी मंदिर के अहाते में अथवा किसी छोटी सी चाय की दुकान के बाहर भी चार लोग इकट्ठा बैठकर गप्पे लड़ाते थे, इन गप्पों में राजनीति और अन्य बातचीत के साथ पुराने जमाने की कहानियाँ अथवा आपबीती भी सुनाई जाती थीं। साथ में अगर किसी पुरानी लोककथा पता होगी तो वह कथा भी सबको सुनने के लिए मिलती थी और सभी का समय अच्छा गुजरता था।

मैंने अपने बचपन में लोककथा, लोककला और लोकसाहित्य का बहुत ही अच्छा अनुभव लिया हुआ है। एक पत्रकार और लेखक के रूप में काम करते समय एक शैली का बहुत अच्छा लाभ मुझे हुआ है। बच्चे हों या बूढे, सभी कहानी सुनने के लिए लालायित रहते हैं। ह्यूमन इंटरेस्ट स्टोरीज पर तो अखबार और चैनल भी चलाए जाते हैं।

पुराने समय में 'लोककथा' यह अलग मायने में ह्यूमन इंटरेस्ट स्टोरीज ही थी और विश्व की सभी भाषाओं में लोककथाएँ पाई जाती हैं। इस पुस्तक में समाविष्ट कुछ लोककथाएँ लोकसाहित्य की महान् अध्येता डॉ. सरोजिनी बाबर द्वारा संपादित 'सांगोवांगी' लोककथा संग्रह से ली हुई हैं। यह संग्रह भी मैंने बचपन में पढ़ा था। मानवीय मूल्यपरंपरा, मनुष्य की वृत्ति एवं प्रवृत्ति, जीवन-व्यवहार आदि विषयों पर भाष्य करनेवाली ये लोककथाएँ सभी को भाती हैं। आज भी ऐसा साहित्य बिखरा हुआ है। यह लोकसाहित्य असल मायने में लोकसंपदा ही है। अगर इसका संरक्षण किया जाता है तो आनेवाली पीढ़ियों को यह साहित्य-संपदा का अवश्य लाभ हो पाएगा।

ऐसी कहानियाँ पुराने समय में सभी को हर किसी के दादा-दादी अथवा नाना-नानी ने शायद बताई होती हैं। जब रोजमर्रा के जीवन में कोई घटना अथवा प्रसंग घटित होते थे, तब उस को देखकर उत्स्फूर्त रूप से पुरानी पीढ़ियों का

प्रतिनिधित्व करनेवाले, इन बड़े-बूढ़ों के मुख से उस संदर्भ में कोई बात अपने आप प्रकट होती थी। कोई वाक्प्रचार अथवा कहावत के रूप में वे ऐसा कुछ कहते थे। जब किसी मक्खीचूस को देखते थे तो ऐसा कहा जाता था-'बहुत गलत है! जब भगवान् ने इतना दिया है तो दानधरम करना चाहिए, नहीं तो आखिर 'धरम कर गे माई, हातात काही नाही' (धरम करो मैया, हाथ में कुछ भी नहीं है!) ऐसी बात हो जाएगी। इस वाक्य से कोई न कोई लोककथा अवश्य जुड़ी रहती थी और रात को भोजन होने के पश्चात् सोने से पहले वह लोककथा अवश्य सुनने मिलती थी।

ऐसी लोककथाओं ने केवल मनोरंजन ही नहीं किया बल्कि अच्छे संस्कार भी अवश्य दिए हैं। छोटे बालकों का भावविश्व अपरिपक्व रहता है, उनको अगर ऐसा साहित्य सुनने मिलता है तो वह उनके भावविश्व को प्रभावित अवश्य करता पुराने समय में जब ठंड के मौसम में अंगीठियाँ जलाई जाती थीं, तब लोगों को गरमी का एहसास तो प्यारा लगता था, मगर कोई कहानियाँ सुनानेवाला उनके बीच में हो तो अच्छा मजा आता था।

महाराष्ट्र के ग्रमीण इलाके में सभी के मुख में 'कहानी', 'कानी' अथवा 'कायनी' ऐसा शब्द अवश्य निकलता है, इन कहानियों बहुत से बार 'आटपाट' नामक एक नगर अवश्य होता था। उस नगर के बाद घना जंगल' अवश्य रहता था। संस्कृत भाषा में अट्ट' शब्द का अर्थ होता है बाजार। इसी शब्द से 'आट' शब्द बना है। पाट का अर्थ रास्ता अथवा मार्ग भी लिया जाता है, अर्थात् जहाँ बहुत बड़ा बाजार और बड़े-बड़े रास्ते हैं, ऐसी सुख-सुविधाओं से युक्त नगर होता था 'आटपाट' नगर। कहानी सुनानेवाला मनुष्य कई गुणों से युक्त होता था। कथाकथन की कुशलता उसमें कूट-कूट कर भरी होगी तो ही इस कहानी में रंग उतरता था। सुननेवालों के मनचक्षुओं के सामने वह घटना अथवा प्रसंग खड़ा करने का सामर्थ्य ऐसे वक्ता के अंदर होता था। प्रसंग के अनुसार वाणी में उतार-चढ़ाव लाते हुए वह प्रसंग श्रोताओं के सामने साकार हो जाता था।

महाराष्ट्र में चातुर्मास का बहुत बड़ा महत्त्व है। इस चातुर्मास में ढेर सारी कहानियाँ सुनाई जाती हैं। नागपंचमी, मंगलागौर, हरितालिका, ऋषिपंचमी, सोमवार-बृहस्पतिवार इत्यादि कहानियाँ तो व्रतों के अनुसार बताई जाती हैं।

Maharashtra Ki Lokkathayen in Hindi ISBN - 9789355210401 Author - Deepak Hanumantrao Jawane / दीपक हनुमंतराव जेवणे To Buy - https://www.amazon.in/dp/935521040X/ To Read Full Book




एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ