पंजाब की लोककथाएँ हिंदी में : फूलचंद मानव हिंदी पुस्तक - कहानी

पंजाब की लोककथाएँ हिंदी में : फूलचंद मानव हिंदी पुस्तक - कहानी  | Punjab Ki Lokkathayen in Hindi : Phulchand Manav   Hindi  Book – Story (Kahani) 

पंजाब की लोककथाएँ प्रेम और अनुराग के संबंधों में धड़कती शाश्वत कहानियाँ हैं। इसलिए कि भारत की आजादी से पहले, पाकिस्तान में स्थित क्षेत्रों में भी ये गूँज छोड़ रही हैं। लोकगीतों में इनके संदर्भ उभरते हैं—टप्पे, सिट्ठणियाँ, बोलियाँ, गिद्दे अथवा भाँगड़े के साथ हमें स्पंदित कर जाते हैं। 1966 में पंजाब से अलग होकर हरियाणा व हिमाचल के अस्तित्व में आने के बाद भी जो पंजाब आज है, उसमें लोककथाओं की भरपूर विरासत है। यहाँ मालवा, माँझा, दोआबा और पुआध अपनी मूल रंगत में दिपदिपा रहे हैं। सांस्कृतिक संपदा और पारंपरिक कथा-क्षेत्र में प्रेम-प्यार और लोक की लुभावनी गाथाएँ सुना रहे हैं। लोक-व्यवहार, लोक-परंपरा से लेकर लोक-गीतों में भी हमारे यहाँ कहानियों की भरमार है। हीर-रांझा, सस्सी-पुन्नू, शीरी-फरहाद या सोहनी-महिवाल से आगे कामकंदला जैसी सैकड़ों प्रेमकथाएँ हैं, जिनमें लोक-रंग गहरा उभरा है और इन्हें पीढ़ी-दर-पीढ़ी हम सुनते आए हैं। पंजाबी भाषा के किस्साकारों ने अपनी रचनाओं में काव्य कौतुक दिखाकर दर्जनों चिट्ठे-किस्से, प्यार-गाथाओं एवं लोककथाओं के छपवाएँ हैं। शिव कुमार बटालवी की लूणा पूर्ण भगत को बयान करती लोककथा ही तो है। हिंदी पाठक पंजाब की लोककथाओं का आनंद ले पाएँ, प्रस्तुत संकलन इसी उद्देश्य से तैयार हुआ है।

पंजाब  की लोककथाएँ


लोकहित  में साहित्य उभरता है तो लिखित या मौखिक गाथाएँ सामने 'आती हैं। कथाएँ बनती, बढ़ती और प्रचलित होकर लोकप्रिय कहलाती हैं। साहित्य में लोक या जन ही न हो तो स्पंदन, संवेदना, अनुभूति विहीन जीवन अप्राकृतिक या फिर मशीनी हो जाएगा या जन साहित्य अथवा लोक साहित्य में कहानी, गीत, कविताएँ, मुहावरे और लोकोक्तियाँ मनुष्य-जीवन के अस्तित्व के साथ हर उम्र, प्रत्येक पीढ़ी के लिए प्रेरणादायक, मनोरंजन का साधन और उत्साहवर्धक भी सिद्ध होती आई हैं। पेड़-पौधों की कहानियाँ, राजकुमारों की शौर्य-गाथाएँ, राजा-रानियों के प्रसंग ही नहीं, गाँव-देहात, जन-समूह, मेले-त्योहारों पर कहने-सुनने वाले चरित्र भी लोकसाहित्य का हिस्सा बनते आए हैं, लोककथा कहलाए हैं।

बात विश्व फलक पर हो या भारतीय परिवेश की, प्रांतीय चरित्र सामने आए या विरह तथा मिलन, उत्सर्ग-बलिदान की मिसालें, साहित्य में लोक के नाम पर जो और जितना पाठकों, श्रोताओं, दर्शकों के सामने आता है, उसमें मनोविनोद के अंश उपयोगी, सराहनीय कहलाए हैं। नानी-दादी की कहानी, पौराणिक या जातक कथाएँ, तिलिस्मी गाथाएँ, हमें कहीं-न-कहीं प्रभावित करती आई हैं। इनसान का बचपन, किशोरावस्था, यौवन, यहाँ तक कि प्रौढ़ावस्था या बुढ़ापे के कगार पर भी हम लोगों की चर्चा करते, सुनते ही जीवन व्यतीत कर जाते हैं। यों लोककथा, प्रणय गाथा संयोग-वियोग के साथ हमें समय, इतिहास, माहौल और स्थितियों का रेखांकन देते हुए हमारी भावनाओं को भी गति प्रदान करती हैं। रक्त संचार का यह प्रसंग मानव इतिहास के आदि, मध्यकाल से लेकर उत्तर-आधुनिक युग, वैज्ञानिक या विचार क्रांति के पहलुओं को भी समेटता हुआ लोककथाओं में ढलने लगता है, समय अपनी गति से चलने लगता है।

भाषा-भूषा, रहन-सहन अथवा खान-पान में हमारे देश भारत के प्रांतों में विभिन्नता है तो कहीं समानता या एकता का प्रसंग भी उभरकर सामने आता है। पंजाब, सज-सिंधु की बात करें तो पाकिस्तान, हिंदुस्तान का पंजाब एक स्तर पर हमारे सम्मुख रहता है। वहीं सन् 1947 के युद्ध, 1966 की एक नवंबर को भारतीय पंजाब में से हिमाचल प्रदेश, हरियाणा के मानचित्र उभरते हैं तो सीमांत प्रांतों की छवि एक होकर भी बदलती, ढलती, विकसित होती है। पहाड़ों की शोभा-सुषमा, हरियाणा की सौंदर्य बोली-वाणी के साथ नई बहार प्रगति विकास की कहानियाँ कह रही है। प्रेम-रोमांस मनुष्य-जीवन का आदिम गुण है। इसके आधार पर नायिकाएँ, नायक स्थापित होते, किए जाते हैं। उनमें रंग भरा जाता है। लोकचरित पर साहित्यिकता सवार हो रही हो तो चरित्र-चित्रण में और भी निखार नजर आता है। सुनने-पढ़ने वाले को बहलाता है।

पंजाबी भाषा के किस्साकारों ने अपनी रचनाओं में कविता के कौतुक दिखाते हुए दर्जनों किस्से, चिट्टे, लोक-प्रसंग सुरक्षित किए हैं तो दीप कुमार बटलवी अथवा अन्य कई श्रेष्ठ रचनाकारों ने लूणा', 'पूर्ण भगत' के जीवनयौवन को रचना में समोकर कीर्ति अर्जित की है। इन्हीं और ऐसी लोककथाओं पर नाटक भी रचे गए हैं, फिल्मों का निर्माण हुआ है, धारावाहिक कई कार्यक्रम टेलीविजन पर दिखाए गए और प्रसारित हो रहे हैं। 'रामायण' या 'महाभारत' का जन-मन तक पहुँचना इसी श्रृंखला की देन नहीं है क्या? पंजाब की उर्वरा मिट्टी में मालवा, माझा, पुआध आदि क्षेत्र आते हैं। पूर्वी पंजाब से अलग जो अब पाकिस्तान में हैं, पश्चिमी पंजाब में भी पोठोहारी, मुलतानी बोली के साथ इनके लोकरंगों में भीगे अनेक किरदार विश्व में याद किए जाते हैं। यों लोकप्रिय पात्रों ने मानव-मानव के मन में गहरी जगह बनाई है। आज भी सस्सी-पुन्नू, हीर-राँझा, सोहनी-महिवाल या मिरजा साहिबों से लेकर लेकर लैला-मजनूँ, कुंजुआ, चंचलो, निहाल दे या चंद्रावल जैसे पात्रों के रूपाकार में जनमानस में साकार हैं। ये प्रतीक भी हैं और परंपरा के पुरोधा भी, आयु, देह, मन का अपना संसार है, ललक-लालसा भी। अंतरमन की लगन एक को भगवान या भगत बना देती है तो प्रेम पगे पलों से भरा जीवन भी कोई एक 'लगन' के नाम अर्पित कर बैठता है।

राज, धोबी, किसान, कामगार, संगीतप्रेमी ही नहीं, समाज के किसी भी वर्ग का युवक-युवती धड़कते दिल का इलाज चाहता है। इच्छाएँ, उम्मीदें उसका पीछा करती हैं। विपरीत निजी भावनाएँ भी मन-मंथन को हवा देती हैं। गति का परिणाम कोई एक दिशा में ले जाता है। वही दशा, स्थिति, मुकाम, लोकधर्म में नायिका या नायक को पात्र विशेष बनाकर किंवदंती का रूप दे जाता है, कहानी चलती है, रवानी चलती है, प्रसंग जुड़ते, टूटते, फिर आगे बढ़ते कथा, लोककथा के संस्करण, संस्मरण कहलाने लगते हैं।
इन या ऐसी कहानियों का अंडरकरंट अंतर्वस्ल मनुष्य को शिक्षा देता है, जो प्रेरणा भी प्रदान करता है। प्रभावोत्पादक सिद्ध हुआ है।

राजा, रानी, राजकुमार भले उस रूप में आज न हों, उनकी प्रतिच्छाया, छवि, आभा, किरदार के बहाने, देश-समाज में कहीं-न-कहीं उभरती है। पंजाब की मिट्टी उर्वरा है, देश में कृषि के आधार पर भी धन-धान्य का भंडार इसे माना जाता रहा है। जलवायु और प्रकृति की देन यहाँ की संस्कृति ने लोहड़ी, होली, दीवाली के साथ पीरों-पैगंबरों के जन्म और स्मृति दिवस यहाँ मुखरता के साथ मनाए जाते हैं। तिथि-त्योहारों के साथ ही उत्साहवर्धन होता है। खान-पान में विविधता पाई जाती है। ढोल-नगाड़े बजते हैं। संगीत संध्याएँ आयोजित की जाती हैं। गिद्धा-गिद्धा मुटियारों द्वारा लड़कियों द्वारा और भंगड़ा पंजाब के युवाओं का शीर्ष सांस्कृतिक संगम कहलाता है। इन्हीं क्षणों पर अतीत में झाँकते हुए इन प्रेमिकाओं-प्रेमियों की रागात्मक कथाओं का स्मरण करते आए हैं।

पाँच दरियाओं की धरती पंजाब हमें वीरता, शौर्य, बलिदान और प्रेमासक्ति का संदेश तें भी देती आई है। पड़ोसी राज्यों को हमने सम्माचारक, सांस्कृतिक धरातल पर यदि कुछ प्रदान किया है, तो इनसे हमने, आसपास से बहुत कुछ लिया भी है। पुन्नू, राँझा, महिवाल, मिरजा या मजनूं के साथ सभी हीर, सोहनी, साहिबा या लैला के रूप में प्यार के प्रति समर्पण के अद्वितीय, अनूठे किरदार मिलते हैं, जो आंतरिक अलौकिक और लौकिक दर्शन को भी साकार करने वाले हैं। उम्र में बड़ों-छोटों के लिए समवयस्क आयु के नागरिकों के इन्हीं प्रीत पगे पात्रों ने प्रेरित करके जीवन को प्रवाहित कर दिखाया है। पद्मश्री देवेंद्र सत्यार्थी, डॉ. एम.एस. रंधावा, नरेंद्र धीर आदि वरिष्ठ बुद्धिजीवी इस दिशा में सक्रिय रहे हैं। लोकगीत, लोककथाएँ, राग-रागिनी में रसपान होकर हमारे प्रेमी युगलों की अमर गाथाएँ इन्होंने तलाश करके लिपिबद्ध करवाई हैं। रक्त-मांस के जिन पात्रों में दिल धड़कता दिखाई दिया, जहाँ प्रेम के अंकुर फूटते मिले, वहीं हमारे कलमकारों ने कथा-कहन शैली को अपनाया और कथानक को नया रूप प्रदान किया। ये किस्से, कहानियाँ, लोककथाएँ, एक गुजरे-बीते वक्त की दास्तान ही नहीं कह रहीं, मन-से-मन को जोड़ती, झिंझोड़ती भी रही हैं।
आज समय है, एक बार फिर से उन्हें पढ़ने, सुनने या इनके केंद्रीय भावों को ग्रहण करने का। पंजाब का युवक जहाँ एक ओर नशे से ग्रस्त होकर अकर्मण्य कहलाने लगा है, वहीं कर्मठ युवा पीढ़ी के सैकड़ों ताजा चेहरे कनाडा, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड के साथ दर्जनों अन्यान्य देशों में नाम भी कमा रहे हैं। प्रवीणता प्रतिभा के अपने जौहर भी दिखा रहे हैं, ऐसी हर पीढ़ी के लिए पंजाब की ये लोककथाएँ, बँधे-बँधाए अपने रूप में पंजाबी लहजे को अपना आनंद प्रदान करने वाली भी सिद्ध हो सकती हैं।

दुष्यंत कुमार के बोल यों उभर रहे हैं

मेरे गीत तुम्हारे पास सहारा पाने जाएँगे

मेरे नाद तुम्हें ये मेरी याद दिलाने जाएंगे,

हौले-हौले पाँव हिलाओ, जल सोया है छेड़ो मत

हम सब अपने-अपने दीपक यहीं सिराने आएँगे।

और कुछ यों ही इन पात्रों के लिए प्रतीकात्मक ढंग से कहूँ तो कह सकूँगा

तुमको निहारता हूँ सुबह से ऋतंभरा

अब शाम हो रही है मगर मन नहीं भरा,

पौधे झुलस गए हैं मगर एक बात है

मेरी नजर में अब भी चमन है हरा-भरा।



Punjab Ki Lokkathayen in Hindi


ISBN9789355210395
Author - फूलचंद मानव / Phulchand Manav 


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